प्रिय दोस्तों! हमारा उद्देश्य आपके लिए किसी भी पाठ्य को सरलतम रूप देकर प्रस्तुत करना है, हम इसको बेहतर बनाने पर कार्य कर रहे है, हम आपके धैर्य की प्रशंसा करते है| मुक्त ज्ञानकोष, वेब स्रोतों और उन सभी पाठ्य पुस्तकों का मैं धन्यवाद देना चाहता हूँ, जहाँ से जानकारी प्राप्त कर इस लेख को लिखने में सहायता हुई है | धन्यवाद!

Friday, August 30, 2019

तू इस तरह से मेरी ज़िन्दगी में शामिल है - too is tarah se meree zindagee mein shaamil hai - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 30, 2019 0 Comments
तू इस तरह से मेरी ज़िन्दगी में शामिल है
जहाँ भी जाऊँ ये लगता है तेरी महफ़िल है

हर एक फूल किसी याद-सा महकता है
तेरे ख़याल से जागी हुई फिजाएँ हैं
ये सब्ज़ पेड़ हैं या प्यार की दुआएँ हैं
तू पास हो के नहीं फिर भी तू मुक़ाबिल है

हर एक शय है मोहब्बत के नूर से रोशन
ये रोशनी जो ना हो ज़िन्दगी अधूरी है
राह-ए-वफ़ा में कोई हमसफ़र ज़रूरी है
ये रास्ता कहीं तनहा कटे तो मुश्किल है

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

तेरे पैरों चला नहीं जो - tere pairon chala nahin jo - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 30, 2019 0 Comments
तेरे पैरों चला नहीं जो 
धूप छाँव में ढला नहीं जो 
वह तेरा सच कैसे, 
जिस पर तेरा नाम नहीं?

तुझसे पहले बीत गया जो 
वह इतिहास है तेरा 
तुझको हीं पूरा करना है 
जो बनवास है तेरा 
तेरी साँसें जिया नहीं जो 
घर आँगन का दिया नहीं जो 
वो तुलसी की रामायण है 
तेरा राम नहीं.

तेरा हीं तन पूजा घर है 
कोई मूरत गढ़ ले 
कोई पुस्तक साथ न देगी 
चाहे जितना पढ़ ले 
तेरे सुर में सजा नहीं जो 
इकतारे पर बजा नहीं जो 
वो मीरा की संपत्ति है 
तेरा श्याम नहीं.
- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

मलाला मलाला - malaala malaala - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 30, 2019 0 Comments
मलाला मलाला
आँखें तेरी चाँद और सूरज
तेरा ख़्वाब हिमाला...

वक़्त की पेशानी पे अपना नाम जड़ा है तूने
झूटे मकतब में सच्चा क़ुरान पढ़ा है तूने 
अंधियारों से लड़ने वाली
तेरा नाम उजाला.... मलाला मलाला

स्कूलों को जाते रस्ते ऊंचे नीचे थे
जंगल के खूंख्वार दरिन्दे आगे पीछे थे
मक्के का एक उम्मी* तेरी लफ़्ज़ों का रखवाला....मलाला मलाला

तुझ पे चलने वाली गोली हर धड़कन में है
एक ही चेहरा है तू लेकिन हर दर्पण में है
तेरे रस्ते का हमराही, नीली छतरी वाला, मलाला मलाला

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

यक़ीन चाँद पे सूरज में ऐतबार भी रख - yaqeen chaand pe sooraj mein aitabaar bhee rakh - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 30, 2019 0 Comments
यक़ीन चाँद पे सूरज में ऐतबार भी रख
मगर निगाह में थोड़ा सा इंतिज़ार भी रख.

ख़ुदा के हाथ में मत सौंप सारे कामों को
बदलते वक़्त पे कुछ अपना इख़्तियार भी रख.

ये ही लहू है शहादत ये ही लहू पानी
ख़िज़ाँ नसीब सही ज़ेहन में बहार भी रख.

घरों के ताक़ों में गुल-दस्ते यूँ नहीं सजते
जहाँ हैं फूल वहीं आस-पास ख़ार भी रख.

पहाड़ गूँजें नदी गाए ये ज़रूरी है
सफ़र कहीं का हो दिल में किसी का प्यार भी रख.

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

वक़्त बंजारा-सिफ़त लम्हा ब लम्हा अपना - vaqt banjaara-sifat lamha ba lamha apana - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 30, 2019 0 Comments
वक़्त बंजारा-सिफ़त लम्हा ब लम्हा अपना
किस को मालूम यहाँ कौन है कितना अपना.‍‌

जो भी चाहे वो बना ले उसे अपने जैसा
किसी आईने का होता नहीं चेहरा अपना.

ख़ुद से मिलने का चलन आम नहीं है वरना
अपने अंदर ही छुपा होता है रस्ता अपना.

यूँ भी होता है वो ख़ूबी जो है हम से मंसूब
उस के होने में नहीं होता इरादा अपना.

ख़त के आख़िर में सभी यूँ ही रक़म करते हैं
उस ने रसमन ही लिखा होगा तुम्हारा अपना

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

नज़दीकियों में दूर का मंज़र तलाश कर - nazadeekiyon mein door ka manzar talaash kar - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 30, 2019 0 Comments
नज़दीकियों में दूर का मंज़र तलाश कर
जो हाथ में नहीं है वो पत्थर तलाश कर.

सूरज के इर्द-गिर्द भटकने से फ़ाएदा
दरिया हुआ है गुम तो समुंदर तलाश कर.

तारीख़ में महल भी है हाकिम भी तख़्त भी
गुम-नाम जो हुए हैं वो लश्कर तलाश कर.

रहता नहीं है कुछ भी यहाँ एक सा सदा
दरवाज़ा घर का खोल के फिर घर तलाश कर.

कोशिश भी कर उमीद भी रख रास्ता भी चुन
फिर उस के बाद थोड़ा मुक़द्दर तलाश कर.

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

मैं अपने इख़्तियार में हूँ भी नहीं भी हूँ- main apane ikhtiyaar mein hoon bhee nahin bhee hoon - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 30, 2019 0 Comments
मैं अपने इख़्तियार में हूँ भी नहीं भी हूँ
दुनिया के कारोबार में हूँ भी नहीं भी हूँ.

तेरी ही जुस्तुजू में लगा है कभी कभी
मैं तेरे इंतिज़ार में हूँ भी नहीं भी हूँ.

फ़हरिस्त मरने वालों की क़ातिल के पास है
मैं अपने ही मज़ार में हूँ भी नहीं भी हूँ.

औरों के साथ ऐसा कोई मसअला नहीं
इक मैं ही इस दयार में हूँ भी नहीं भी हूँ.

मुझ से ही है हर एक सियासत का ऐतबार
फिर भी किसी शुमार में हूँ भी नहीं भी हूँ.

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

Thursday, August 29, 2019

किसी भी शहर में जाओ कहीं क़याम करो - kisee bhee shahar mein jao kaheen qayaam karo - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 29, 2019 0 Comments
किसी भी शहर में जाओ कहीं क़याम करो
कोई फ़ज़ा कोई मंज़र किसी के नाम करो.

दुआ सलाम ज़रूरी है शहर वालों से
मगर अकेले में अपना भी एहतराम करो.

हमेशा अमन नहीं होता फ़ाख़्ताओं में
कभी कभार ओक़ाबों से भी कलाम करो.

हर एक बस्ती बदलती है रंग रूप कई
जहाँ भी सुब्ह गुज़ारो उधर ही शाम करो.

ख़ुदा के हुक्म से शैतान भी है आदम भी
वो अपना काम करेगा तुम अपना काम करो.

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

कठ-पुतली है या जीवन है जीते जाओ सोचो मत - kath-putalee hai ya jeevan hai jeete jao socho mat - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 29, 2019 0 Comments
कठ-पुतली है या जीवन है जीते जाओ सोचो मत
सोच से ही सारी उलझन है जीते जाओ सोचो मत.

लिखा हुआ किरदार कहानी में ही चलता फिरता है
कभी है दूरी कभी मिलन है जीते जाओ सोचो मत.

नाच सको तो नाचो जब थक जाओ तो आराम करो
टेढ़ा क्यूँ घर का आँगन है जीते जाओ सोचो मत.

हर मज़हब का एक ही कहना जैसा मालिक रक्खे रहना
जब तक साँसों का बंधन है जीते जाओ सोचो मत.

घूम रहे हैं बाज़ारों में सरमायों के आतिश-दान
किस भट्टी में कौन ईंधन है जीते जाओ सोचो मत.

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

जितनी बुरी कही जाती है उतनी बुरी नहीं है दुनिया - jitanee buree kahee jaatee hai utanee buree nahin hai duniya- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 29, 2019 0 Comments
जितनी बुरी कही जाती है उतनी बुरी नहीं है दुनिया
बच्चों के स्कूल में शायद तुम से मिली नहीं है दुनिया.

चार घरों के एक मोहल्ले के बाहर भी है आबादी
जैसी तुम्हें दिखाई दी है सब की वही नहीं है दुनिया.

घर में ही मत उसे सजाओ इधर उधर भी ले के जाओ
यूँ लगता है जैसे तुम से अब तक खुली नहीं है दुनिया.

भाग रही है गेंद के पीछे जाग रही है चाँद के नीचे
शोर भरे काले नारों से अब तक डरी नहीं है दुनिया.

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

जब भी किसी ने ख़ुद को सदा दी - jab bhee kisee ne khud ko sada dee - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 29, 2019 0 Comments
जब भी किसी ने ख़ुद को सदा दी
सन्नाटों में आग लगा दी

मिट्टी उस की पानी उस का
जैसी चाही शक्ल बना दी

छोटा लगता था अफ़साना
मैं ने तेरी बात बढ़ा दी

जब भी सोचा उस का चेहरा
अपनी ही तस्वीर बना दी

तुझ को तुझ में ढूँड के हम ने
दुनिया तेरी शान बढ़ा दी

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

हर एक बात को चुप-चाप क्यूँ सुना जाए - har ek baat ko chup-chaap kyoon suna jae - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 29, 2019 0 Comments
हर एक बात को चुप-चाप क्यूँ सुना जाए
कभी तो हौसला कर के नहीं कहा जाए

तुम्हारा घर भी इसी शहर के हिसार में है
लगी है आग कहाँ क्यूँ पता किया जाए

जुदा है हीर से राँझा कई ज़मानों से
नए सिरे से कहानी को फिर लिखा जाए

कहा गया है सितारों को छूना मुश्किल है
कितना सच है कभी तजरबा किया जाए

किताबें यूँ तो बहुत सी हैं मेरे बारे में
कभी अकेले में ख़ुद को भी पढ़ लिया जाए

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

बृन्दाबन के कृष्ण कन्हैय्या अल्लाह हू - Br̥ndābana kē kr̥ṣṇa kanhaiyyā allāha hū - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 29, 2019 0 Comments
बृन्दाबन के कृष्ण कन्हैय्या अल्लाह हू
बँसी राधा गीता गैय्या अल्लाह हू

थोड़े तिनके थोड़े दाने थोड़ा जल
एक ही जैसी हर गौरय्या अल्लाह हू

जैसा जिस का बर्तन वैसा उस का तन
घटती बढ़ती गंगा मैय्या अल्लाह हू

एक ही दरिया नीला पीला लाल हरा
अपनी अपनी सब की नैय्या अल्लाह हू

मौलवियों का सजदा पंडित की पूजा
मज़दूरों की हैय्या हैय्या अल्लाह हू

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

आज ज़रा फ़ुर्सत पाई थी आज उसे फिर याद किया - aaj zara fursat paee thee aaj use phir yaad kiya - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 29, 2019 0 Comments
आज ज़रा फ़ुर्सत पाई थी आज उसे फिर याद किया
बंद गली के आख़िरी घर को खोल के फिर आबाद किया

खोल के खिड़की चाँद हँसा फिर चाँद ने दोनों हाथों से
रंग उड़ाए फूल खिलाए चिड़ियों को आज़ाद किया

बड़े बड़े ग़म खड़े हुए थे रस्ता रोके राहों में
छोटी छोटी ख़ुशियों से ही हम ने दिल को शाद किया

बात बहुत मामूली सी थी उलझ गई तकरारों में
एक ज़रा सी ज़िद ने आख़िर दोनों को बर्बाद किया

दानाओं की बात न मानी काम आई नादानी ही
सुना हवा को पढ़ा नदी को मौसम को उस्ताद किया

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

इक़रारनामा- ikaraaranaama - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 29, 2019 0 Comments
ये सच है

जब तुम्हारे जिस्म के कपड़े

भरी महफ़िल में छीने जा रहे थे

उस तमाशे का तमाशाई था मैं भी

और मैं चुप था



ये सच है

जब तुम्हारी बेगुनाही को

हमेशा की तरह सूली पे टांगा जा रहा था

उस अंधेरे में

तुम्हारी बेजुबानी ने पुकारा था मुझे भी

और मैं चुप था



ये सच है

जब सुलगती रेत पर तुम

सर बरहना

अपने बेटे भाइयों को तनहा बैठी रो रही थीं

मैं किसी महफ़ूज गोशे में

तुम्हारी बेबसी का मर्सिया था

और मैं चुप था



ये सच है

आज भी जब

शेर चीतों से भरी जंगल से टकराती

तुम्हारी चीख़ती साँसें

मुझे आवाज़ देती हैं



मेरी इज्ज़त, मेरी शोहरत

मेरी आराम की आदत

मेरे घर बार की ज़ीनत

मेरी चाहत, मेरी वहशत

मेरे बढ़ते हुए क़दमों को बढ़कर रोक लेती है



मैं मुजरिम था

मैं मुजरिम हूँ

मेरी ख़ामोशी मेरे जुर्म की जिंदा शहादत है

मैं उनके साथ था



जो जुल्म को ईजाद करते हैं

मैं उनके साथ हूँ

जो हँसती गाती बस्तियाँ

बर्बाद करते हैं

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

सूरज एक नटखट बालक सा - sooraj ek natakhat baalak sa - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 29, 2019 0 Comments
सूरज एक नटखट बालक सा
दिन भर शोर मचाए
इधर उधर चिड़ियों को बिखेरे
किरणों को छितराये
कलम, दरांती, बुरुश, हथोड़ा
जगह जगह फैलाये
शाम
थकी हारी मां जैसी
एक दिया मलकाए
धीरे धीरे सारी
बिखरी चीजें चुनती जाये।

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

हुआ सवेरा - hua savera - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 29, 2019 0 Comments
हुआ सवेरा 
ज़मीन पर फिर अदब 
से आकाश 
अपने सर को झुका रहा है 
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं 
नदी में स्नान करने सूरज
सुनारी मलमल की 
पगड़ी बाँधे 
सड़क किनारे 
खड़ा हुआ मुस्कुरा रहा है 
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं 
हवाएँ सर-सब्ज़ डालियों में 
दुआओं के गीत गा रही हैं 
महकते फूलों की लोरियाँ 
सोते रास्तों को जगा रही 
घनेरा पीपल,
गली के कोने से हाथ अपने 
हिला रहा है 
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं 
फ़रिश्ते निकले रोशनी के 
हर एक रस्ता चमक रहा है 
ये वक़्त वो है 
ज़मीं का हर ज़र्रा 
माँ के दिल सा धड़क रहा है 
पुरानी इक छत पे वक़्त बैठा
कबूतरों को उड़ा रहा है
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं 
बच्चे स्कूल जा रहे हैं.....

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

कच्चे बखिए की तरह रिश्ते उधड़ जाते हैं - kachche bakhie kee tarah rishte udhad jaate hain- - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 29, 2019 0 Comments
कच्चे बखिए की तरह रिश्ते उधड़ जाते हैं 
हर नए मोड़ पर कुछ लोग बिछड़ जाते हैं

यूँ हुआ दूरियाँ कम करने लगे थे दोनों
रोज़ चलने से तो रस्ते भी उखड़ जाते हैं 

छाँव में रख के ही पूजा करो ये मोम के बुत 
धूप में अच्छे भले नक़्श बिगड़ जाते हैं 

भीड़ से कट के न बैठा करो तन्हाई में 
बेख़्याली में कई शहर उजड़ जाते हैं

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

बात कम कीजे ज़ेहानत को छुपाए रहिए - baat kam keeje zehaanat ko chhupae rahie- - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 29, 2019 0 Comments
बात कम कीजे ज़ेहानत को छुपाए रहिए 
अजनबी शहर है ये, दोस्त बनाए रहिए

दुश्मनी लाख सही, ख़त्म न कीजे रिश्ता
दिल मिले या न मिले हाथ मिलाए रहिए 

ये तो चेहरे की शबाहत हुई तक़दीर नहीं 
इस पे कुछ रंग अभी और चढ़ाए रहिए 

ग़म है आवारा अकेले में भटक जाता है 
जिस जगह रहिए वहाँ मिलते मिलाते रहिए

कोई आवाज़ तो जंगल में दिखाए रस्ता
अपने घर के दर-ओ-दीवार सजाए रहिए

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

Wednesday, August 28, 2019

उठ के कपड़े बदल - uth ke kapade badal- - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 28, 2019 0 Comments
उठ के कपड़े बदल 
घर से बाहर निकल 
जो हुआ सो हुआ॥

जब तलक साँस है 
भूख है प्यास है 
ये ही इतिहास है
रख के कांधे पे हल 
खेत की ओर चल 
जो हुआ सो हुआ॥

खून से तर-ब-तर
कर के हर राहगुज़र 
थक चुके जानवर 
लकड़ियों की तरह 
फिर से चूल्हे में जल
जो हुआ सो हुआ॥

जो मरा क्यों मरा
जो जला क्यों जला
जो लुटा क्यों लुटा
मुद्दतों से हैं गुम 
इन सवालों के हल 
जो हुआ सो हुआ॥

मंदिरों में भजन 
मस्ज़िदों में अज़ाँ 
आदमी है कहाँ 
आदमी के लिए
एक ताज़ा ग़ज़ल
जो हुआ सो हुआ।।

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

ये दिल कुटिया है संतों की यहाँ राजा भिकारी क्या - ye dil kutiya hai santon kee yahaan raaja bhikaaree kya - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 28, 2019 0 Comments
ये दिल कुटिया है संतों की यहाँ राजा भिकारी क्या
वो हर दीदार में ज़रदार है गोटा किनारी क्या

ये काटे से नहीं कटते ये बांटे से नहीं बंटते
नदी के पानियों के सामने आरी कटारी क्या

उसी के चलने-फिरने, हंसने-रोने की हैं तस्वीरें 
घटा क्या, चाँद क्या, संगीत क्या, बाद-ए-बहारी क्या

किसी घर के किसी बुझते हुए चूल्हे में ढूँढ उसको 
जो चोटी और दाढ़ी में रहे वो दीनदारी क्या

हमारा मीर जी से मुत्तफ़िक़ होना है नामुमकिन
उठाना है जो पत्थर इश्क़ का तो हल्का-भारी क्या

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

नज्म बहुत आसान थी पहले- najm bahut aasaan thee pahale- - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 28, 2019 0 Comments
नज्म बहुत आसान थी पहले
घर के आगे
पीपल की शाखों से उछल के
आते-जाते बच्चों के बस्तों से
निकल के
रंग बरंगी
चिडयों के चेहकार में ढल के
नज्म मेरे घर जब आती थी
मेरे कलम से जल्दी-जल्दी
खुद को पूरा लिख जाती थी,
अब सब मंजर बदल चुके हैं
छोटे-छोटे चौराहों से
चौडे रस्ते निकल चुके हैं
बडे-बडे बाजार
पुराने गली मुहल्ले निगल चुके हैं
नज्म से मुझ तक
अब मीलों लंबी दूरी है
इन मीलों लंबी दूरी में
कहीं अचानक बम फटते हैं
कोख में माओं के सोते बच्चे डरते हैं
मजहब और सियासत मिलकर
नये-नये नारे रटते हैं
बहुत से शहरों-बहुत से मुल्कों से अब होकर
नज्म मेरे घर जब आती है
इतनी ज्यादा थक जाती है
मेरी लिखने की टेबिल पर
खाली कागज को खाली ही छोड के 
रुख्ासत हो जाती है
और किसी फुटपाथ पे जाकर
शहर के सब से बूढे शहरी की पलकों पर
आँसू बन कर
सो जाती है।

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

मस्जिद का गुम्बद सूना है - masjid ka gumbad soona hai - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 28, 2019 0 Comments
मस्जिद का गुम्बद सूना है 
मंदिर की घंटी खामोश 
जुज्दानो मे लिपटे सारे आदर्शों को 
दीमक कब की चाट चुकी है 
रंग !
गुलाबी
नीले
पीले कहीं नहीं हैं 
तुम उस जानिब 
मैं इस जानिब 
बीच में मीलों गहरा गार 
लफ़्ज़ों का पुल टूट चुका है 
तुम भी तनहा 
मैं भी तनहा।

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

जाने वालों से राब्ता रखना - jaane vaalon se raabta rakhana - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 28, 2019 0 Comments
जाने वालों से राब्ता रखना
दोस्तो रस्म-ए-फातिहा रखना

घर की तामीर चाहे जैसी हो
इसमें रोने की कुछ जगह रखना

मस्जिदें हैं नमाजियों के लिए
अपने घर में कहीं खुदा रखना

जिस्म में फैलने लगा है शहर
अपनी तन्हाईयाँ बचा रखना

उमर करने को है पचास को पार
कौन है किस जगह पता रखना

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

नहीं यह भी नहीं - nahin yah bhee nahin - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 28, 2019 0 Comments
नहीं यह भी नहीं

यह भी नहीं

यह भी नहीं, वोह तो

न जाने कौन थे

यह सब के सब तो मेरे जैसे हैं

सभी की धड़कनों में नन्हे नन्हे चांद रोशन हैं

सभी मेरी तरह वक़्त की भट्टी के ईंधन हैं

जिन्होंने मेरी कुटिया में अंधेरी रात में घुस कर

मेरी आंखों के आगे

मेरे बच्चों को जलाया था

वोह तो कोई और थे

वोह चेहरे तो कहाँ अब ज़ेहन में महफूज़ जज साहब

मगर हाँ

पास हो तो सूँघ कर पहचान सकती हूँ

वो उस जंगल से आये थे

जहाँ की औरतों की गोद में

बच्चे नहीं हँसते

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

वो शोख शोख नज़र सांवली सी एक लड़की - vo shokh shokh nazar saanvalee see ek ladakee - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 28, 2019 0 Comments
वो शोख शोख नज़र सांवली सी एक लड़की 
जो रोज़ मेरी गली से गुज़र के जाती है 
सुना है 
वो किसी लड़के से प्यार करती है 
बहार हो के, तलाश-ए-बहार करती है 
न कोई मेल न कोई लगाव है लेकिन न जाने क्यूँ 
बस उसी वक़्त जब वो आती है 
कुछ इंतिज़ार की आदत सी हो गई है 
मुझे 
एक अजनबी की ज़रूरत हो गई है मुझे 
मेरे बरांडे के आगे यह फूस का छप्पर 
गली के मोड पे खडा हुआ सा 
एक पत्थर 
वो एक झुकती हुई बदनुमा सी नीम की शाख 
और उस पे जंगली कबूतर के घोंसले का निशाँ 
यह सारी चीजें कि जैसे मुझी में शामिल हैं 
मेरे दुखों में मेरी हर खुशी में शामिल हैं 
मैं चाहता हूँ कि वो भी यूं ही गुज़रती रहे 
अदा-ओ-नाज़ से लड़के को प्यार करती रहे

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

बेसन की सोंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ - besan kee sondhee rotee par khattee chatanee jaisee maan - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 28, 2019 0 Comments
बेसन की सोंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ ,

याद आता है चौका-बासन, चिमटा फुँकनी जैसी माँ ।


बाँस की खुर्री खाट के ऊपर हर आहट पर कान धरे ,

आधी सोई आधी जागी थकी दुपहरी जैसी माँ ।


चिड़ियों के चहकार में गूँजे राधा-मोहन अली-अली ,

मुर्गे की आवाज़ से खुलती, घर की कुंड़ी जैसी माँ ।


बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन थोड़ी-थोड़ी सी सब में ,

दिन भर इक रस्सी के ऊपर चलती नटनी जैसी मां ।


बाँट के अपना चेहरा, माथा, आँखें जाने कहाँ गई ,

फटे पुराने इक अलबम में चंचल लड़की जैसी माँ ।

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

Tuesday, August 27, 2019

तुम्हारी कब्र पर मैं - tumhaaree kabr par main - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 27, 2019 0 Comments
तुम्हारी कब्र पर मैं
फ़ातेहा पढ़ने नही आया,

मुझे मालूम था, तुम मर नही सकते
तुम्हारी मौत की सच्ची खबर
जिसने उड़ाई थी, वो झूठा था,
वो तुम कब थे?
कोई सूखा हुआ पत्ता, हवा मे गिर के टूटा था ।

मेरी आँखे
तुम्हारी मंज़रो मे कैद है अब तक
मैं जो भी देखता हूँ, सोचता हूँ
वो, वही है
जो तुम्हारी नेक-नामी और बद-नामी की दुनिया थी ।

कहीं कुछ भी नहीं बदला,
तुम्हारे हाथ मेरी उंगलियों में सांस लेते हैं,
मैं लिखने के लिये जब भी कागज कलम उठाता हूं,
तुम्हे बैठा हुआ मैं अपनी कुर्सी में पाता हूं |

बदन में मेरे जितना भी लहू है,
वो तुम्हारी लगजिशों नाकामियों के साथ बहता है,
मेरी आवाज में छुपकर तुम्हारा जेहन रहता है,
मेरी बीमारियों में तुम मेरी लाचारियों में तुम |

तुम्हारी कब्र पर जिसने तुम्हारा नाम लिखा है,
वो झूठा है, वो झूठा है, वो झूठा है,
तुम्हारी कब्र में मैं दफन तुम मुझमें जिन्दा हो,
कभी फुरसत मिले तो फातहा पढनें चले आना |


- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

ज़हानतों को कहाँ कर्ब से फ़रार मिला - zahaanaton ko kahaan karb se faraar mila - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 27, 2019 0 Comments
ज़हानतों को कहाँ कर्ब से फ़रार मिला 
जिसे निगाह मिली उसको इंतज़ार मिला


वो कोई राह का पत्थर हो या हसीं मंज़र 
जहाँ से रास्ता ठहरा वहीं मज़ार मिला


कोई पुकार रहा था खुली फ़िज़ाओं से 
नज़र उठाई तो चारो तरफ़ हिसार मिला


हर एक साँस न जाने थी जुस्तजू किसकी 
हर एक दयार मुसाफ़िर को बेदयार मिला


ये शहर है कि नुमाइश लगी हुई है कोई 
जो आदमी भी मिला बनके इश्तहार मिला

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

ये ज़िन्दगी - ye zindagee - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 27, 2019 0 Comments
ये ज़िन्दगी 
आज जो तुम्हारे 
बदन की छोटी-बड़ी नसों में 
मचल रही है 
तुम्हारे पैरों से चल रही है 
तुम्हारी आवाज़ में ग़ले से निकल रही है 
तुम्हारे लफ़्ज़ों में ढल रही है

ये ज़िन्दगी 
जाने कितनी सदियों से 
यूँ ही शक्लें 
बदल रही है

बदलती शक्लों 
बदलते जिस्मों में 
चलता-फिरता ये इक शरारा 
जो इस घड़ी 
नाम है तुम्हारा 
इसी से सारी चहल-पहल है 
इसी से रोशन है हर नज़ारा

सितारे तोड़ो या घर बसाओ 
क़लम उठाओ या सर झुकाओ

तुम्हारी आँखों की रोशनी तक 
है खेल सारा

ये खेल होगा नहीं दुबारा 
ये खेल होगा नहीं दुबारा

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

तुम ये कैसे जुदा हो गये- tum ye kaise juda ho gaye - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 27, 2019 0 Comments
तुम ये कैसे जुदा हो गये
हर तरफ़ हर जगह हो गये 

अपना चेहरा न बदला गया
आईने से ख़फ़ा हो गये 

जाने वाले गये भी कहाँ
चाँद सूरज घटा हो गये 

बेवफ़ा तो न वो थे न हम
यूँ हुआ बस जुदा हो गये 

आदमी बनना आसाँ न था
शेख़ जी पारसा हो गये


- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

तेरा हिज्र मेरा नसीब है तेरा ग़म ही मेरी हयात है - tera hijr mera naseeb hai tera gam hee meree hayaat hai - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 27, 2019 0 Comments
तेरा हिज्र मेरा नसीब है तेरा ग़म ही मेरी हयात है 
मुझे तेरी दूरी का ग़म हो क्यों तू कहीं भी हो मेरे साथ है


मेरे वास्ते तेरे नाम पर कोई हर्फ़ आये नहीं नहीं 
मुझे ख़ौफ़-ए-दुनिया नहीं मगर मेरे रू-ब-रू तेरी ज़ात है


तेरा वस्ल ऐ मेरी दिलरुबा नहीं मेरी किस्मत तो क्या हुआ 
मेरी महजबीं यही कम है क्या तेरी हसरतों का तो साथ है


तेरा इश्क़ मुझ पे है मेहरबाँ मेरे दिल को हासिल है दो जहाँ 
मेरी जान-ए-जाँ इसी बात पर मेरी जान जाये तो बात है


- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

तन्हा तन्हा हम रो लेंगे महफ़िल महफ़िल गायेंगे - tanha tanha ham ro lenge mahafil mahafil gaayenge - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 27, 2019 0 Comments
तन्हा तन्हा हम रो लेंगे महफ़िल महफ़िल गायेंगे 
जब तक आँसू पास रहेंगे तब तक गीत सुनायेंगे


तुम जो सोचो वो तुम जानो हम तो अपनी कहते हैं 
देर न करना घर जाने में वरना घर खो जायेंगे


बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो 
चार किताबें पढ़ कर वो भी हम जैसे हो जायेंगे


किन राहों से दूर है मंज़िल कौन सा रस्ता आसाँ है
हम जब थक कर रुक जायेंगे औरों को समझायेंगे


अच्छी सूरत वाले सारे पत्थर-दिल हो मुमकिन है 
हम तो उस दिन रो देंगे जिस दिन धोखा खायेंगे

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

सब की पूजा एक सी, अलग अलग हर रीत - sab kee pooja ek see, alag alag har reet - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 27, 2019 0 Comments
सब की पूजा एक सी, अलग अलग हर रीत 
मस्जिद जाये मौलवी, कोयल गाये गीत 

पूजा घर में मूर्ती, मीरा के संग श्याम 
जितनी जिसकी चाकरी, उतने उसके दाम 

सीता, रावण, राम का, करें विभाजन लोग 
एक ही तन में देखिये, तीनों का संजोग 

मिट्टी से माटी मिले, खो के सभी निशां 
किस में कितना कौन है, कैसे हो पहचान


- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

मुहब्बत में वफ़ादारी से बचिये - muhabbat mein vafaadaaree se bachiye - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 27, 2019 0 Comments
मुहब्बत में वफ़ादारी से बचिये 
जहाँ तक हो अदाकारी से बचिये 

हर एक सूरत भली लगती है कुछ दिन 
लहू की शोबदाकारी[1] से बचिये 

शराफ़त आदमियत दर्द-मन्दी 
बड़े शहरों में बीमारी से बचिये 

ज़रूरी क्या हर एक महफ़िल में आना 
तक़ल्लुफ़ की रवादारी[2] से बचिये 

बिना पैरों के सर चलते नहीं हैं 
बुज़ुर्गों की समझदारी से बचिये


- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

मस्जिदों-मन्दिरों की दुनिया में - masjidon-mandiron kee duniya mein -- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 27, 2019 0 Comments
मस्जिदों-मन्दिरों की दुनिया में 
मुझको पहचानते कहाँ हैं लोग 

रोज़ मैं चांद बन के आता हूँ
दिन में सूरज सा जगमगाता हूँ 

खनखनाता हूँ माँ के गहनों में
हँसता रहता हूँ छुप के बहनों में 

मैं ही मज़दूर के पसीने में
मैं ही बरसात के महीने में 

मेरी तस्वीर आँख का आँसू
मेरी तहरीर जिस्म का जादू 

मस्जिदों-मन्दिरों की दुनिया में 
मुझको पहचानते नहीं जब लोग 

मैं ज़मीनों को बे-ज़िया करके 
आसमानों में लौट जाता हूँ 

मैं ख़ुदा बन के क़हर ढाता हूँ 

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार - मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 27, 2019 0 Comments
मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार 
दुख ने दुख से बात की बिन चिठ्ठी बिन तार 
छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार 
आँखों भर आकाश है बाहों भर संसार


लेके तन के नाप को घूमे बस्ती गाँव 
हर चादर के घेर से बाहर निकले पाँव 
सबकी पूजा एक सी अलग-अलग हर रीत 
मस्जिद जाये मौलवी कोयल गाये गीत 
पूजा घर में मूर्ती मीर के संग श्याम 
जिसकी जितनी चाकरी उतने उसके दाम


सातों दिन भगवान के क्या मंगल क्या पीर 
जिस दिन सोए देर तक भूखा रहे फ़कीर 
अच्छी संगत बैठकर संगी बदले रूप 
जैसे मिलकर आम से मीठी हो गई धूप


सपना झरना नींद का जागी आँखें प्यास 
पाना खोना खोजना साँसों का इतिहास 
चाहे गीता बाचिये या पढ़िये क़ुरान 
मेरा तेरा प्यार ही हर पुस्तक का ज्ञान

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

कहीं छत थी दीवार-ओ-दर थे कहीं - kaheen chhat thee deevaar-o-dar the kaheen - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 27, 2019 0 Comments
कहीं छत थी दीवार-ओ-दर थे कहीं 
मिला मुझको घर का पता देर से 
दिया तो बहुत ज़िन्दगी ने मुझे 
मगर जो दिया वो दिया देर से


हुआ न कोई काम मामूल से 
गुज़ारे शब-ओ-रोज़ कुछ इस तरह 
कभी चाँद चमका ग़लत वक़्त पर 
कभी घर में सूरज उगा देर से


कभी रुक गये राह में बेसबब 
कभी वक़्त से पहले घिर आई शब 
हुये बंद दरवाज़े खुल खुल के सब 
जहाँ भी गया मैं गया देर से


ये सब इत्तिफ़ाक़ात का खेल है 
यही है जुदाई यही मेल है 
मैं मुड़ मुड़ के देखा किया दूर तक 
बनी वो ख़ामोशी सदा देर से


सजा दिन भी रौशन हुई रात भी 
भरे जाम लहराई बरसात भी 
रहे साथ कुछ ऐसे हालात भी 
जो होना था जल्दी हुआ देर से


भटकती रही यूँ ही हर बंदगी 
मिली न कहीं से कोई रौशनी 
छुपा था कहीं भीड़ में आदमी 
हुआ मुझ में रौशन ख़ुदा देर से

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

कभी कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया है - kabhee kabhee yoon bhee hamane apane jee ko bahalaaya hai- - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 27, 2019 0 Comments
कभी कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया है 
जिन बातों को ख़ुद नहीं समझे औरों को समझाया है


हमसे पूछो इज़्ज़त वालों की इज़्ज़त का हाल कभी
हमने भी इस शहर में रह कर थोड़ा नाम कमाया है


उससे बिछड़े बरसों बीते लेकिन आज न जाने क्यों 
आँगन में हँसते बच्चों को बे-कारण धमकाया है


कोई मिला तो हाथ मिलाया कहीं गए तो बातें की 
घर से बाहर जब भी निकले दिन भर बोझ उठाया है

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

Sunday, August 25, 2019

जीवन क्या है चलता फिरता एक खिलौना है - jeevan kya hai chalata phirata ek khilauna hai - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 25, 2019 0 Comments
जीवन क्या है चलता फिरता एक खिलौना है 
दो आँखों में एक से हँसना एक से रोना है

जो जी चाहे वो मिल जाये कब ऐसा होता है 
हर जीवन जीवन जीने का समझौता है 
अब तक जो होता आया है वो ही होना है

रात अँधेरी भोर सुहानी यही ज़माना है 
हर चादर में दुख का ताना सुख का बाना है 
आती साँस को पाना जाती साँस को खोना है


- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

जहाँ न तेरी महक हो उधर न जाऊँ मैं - jahaan na teree mahak ho udhar na jaoon main - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 25, 2019 0 Comments
जहाँ न तेरी महक हो उधर न जाऊँ मैं 
मेरी सरिश्त सफ़र है गुज़र न जाऊँ मैं 

मेरे बदन में खुले जंगलों की मिट्टी है 
मुझे सम्भाल के रखना बिखर न जाऊँ मैं 

मेरे मिज़ाज में बे-मानी उलझनें हैं बहुत 
मुझे उधर से बुलाना जिधर न जाऊँ मैं 

कहीं पुकार न ले गहरी वादियों का सबूत 
किसी मक़ाम पे आकर ठहर न जाऊँ मैं 

न जाने कौन से लम्हे की बद-दुआ है ये 
क़रीब घर के रहूँ और घर न जाऊँ मैं


- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

जब किसी से कोई गिला रखना - jab kisee se koee gila rakhana - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 25, 2019 0 Comments
जब किसी से कोई गिला रखना 
सामने अपने आईना रखना 

यूँ उजालों से वास्ता रखना 
शम्मा के पास ही हवा रखना 

घर की तामीर[1] चाहे जैसी हो 
इस में रोने की जगह रखना 

मस्जिदें हैं नमाज़ियों के लिये 
अपने घर में कहीं ख़ुदा रखना 

मिलना जुलना जहाँ ज़रूरी हो 
मिलने-जुलने का हौसला रखना

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

होश वालों को ख़बर क्या बेख़ुदी क्या चीज़ है - hosh vaalon ko khabar kya bekhudee kya cheez hai - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 25, 2019 0 Comments
होश वालों को ख़बर क्या बेख़ुदी क्या चीज़ है 
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िन्दगी क्या चीज़ है

उन से नज़रें क्या मिली रोशन फिजाएँ हो गईं 
आज जाना प्यार की जादूगरी क्या चीज़ है

ख़ुलती ज़ुल्फ़ों ने सिखाई मौसमों को शायरी 
झुकती आँखों ने बताया मयकशी क्या चीज़ है

हम लबों से कह न पाये उन से हाल-ए-दिल कभी 
और वो समझे नहीं ये ख़ामोशी क्या चीज़ है

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा - har ghadee khud se ulajhana hai muqaddar mera - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 25, 2019 0 Comments
हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा 
मैं ही कश्ती हूँ मुझी में है समंदर मेरा 

किससे पूछूँ कि कहाँ गुम हूँ बरसों से 
हर जगह ढूँढता फिरता है मुझे घर मेरा 

एक से हो गए मौसमों के चेहरे सारे 
मेरी आँखों से कहीं खो गया मंज़र मेरा 

मुद्दतें बीत गईं ख़्वाब सुहाना देखे 
जागता रहता है हर नींद में बिस्तर मेरा 

आईना देखके निकला था मैं घर से बाहर 
आज तक हाथ में महफ़ूज़ है पत्थर मेरा

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है - duniya jise kahate hain jaadoo ka khilauna hai - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 25, 2019 0 Comments
दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है 
मिल जाये तो मिट्टी है खो जाये तो सोना है


अच्छा-सा कोई मौसम तन्हा-सा कोई आलम 
हर वक़्त का रोना तो बेकार का रोना है


बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने 
किस राह से बचना है किस छत को भिगोना है


ग़म हो कि ख़ुशी दोनों कुछ देर के साथी हैं 
फिर रस्ता ही रस्ता है हँसना है न रोना है


ये वक्त जो तेरा है, ये वक्त जो मेरा 
हर गाम पर पहरा है, फिर भी इसे खोना है


आवारा मिज़ाजी ने फैला दिया आंगन को 
आकाश की चादर है धरती का बिछौना है

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो - dhoop mein nikalo ghataon mein naha kar dekho - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 25, 2019 0 Comments
धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो 
ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो


वो सितारा है चमकने दो यूँ ही आँखों में 
क्या ज़रूरी है उसे जिस्म बनाकर देखो


पत्थरों में भी ज़ुबाँ होती है दिल होते हैं 
अपने घर की दर-ओ-दीवार सजा कर देखो


फ़ासला नज़रों का धोखा भी तो हो सकता है 
वो मिले या न मिले हाथ बढा़ कर देखो

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

दीवार-ओ-दर से उतर के परछाइयाँ बोलती हैं - deevaar-o-dar se utar ke parachhaiyaan bolatee hain - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 25, 2019 1 Comments
दीवार-ओ-दर से उतर के परछाइयाँ बोलती हैं 
कोई नहीं बोलता जब तनहाइयाँ बोलती हैं

परदेस के रास्ते में लुटते कहाँ हैं मुसाफ़िर 
हर पेड़ कहता है क़िस्सा पुरवाईयाँ बोलती हैं

मौसम कहाँ मानता है तहज़ीब की बन्दिशों को 
जिस्मों से बाहर निकल के अंगड़ाइयाँ बोलती हैं

सुन ने की मोहलत मिले तो आवाज़ है पतझरों में 
उजड़ी हुई बस्तियों में आबादियाँ बोलती हैं

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

दिन सलीक़े से उगा रात ठिकाने से रही - din saleeqe se uga raat thikaane se rahee - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 25, 2019 0 Comments
दिन सलीक़े से उगा रात ठिकाने से रही 
दोस्ती अपनी भी कुछ रोज़ ज़माने से रही 

चंद लम्हों को ही बनती हैं मुसव्विर आँखें 
ज़िन्दगी रोज़ तो तस्वीर बनाने से रही 

इस अँधेरे में तो ठोकर ही उजाला देगी 
रात जंगल में कोई शम्मा जलाने से रही 

फ़ासला चाँद बना देता है हर पत्थर को 
दूर की रौशनी नज़दीक तो आने से रही 

शहर में सब को कहाँ मिलती है रोने की फ़ुरसत 
अपनी इज़्ज़त भी यहाँ हँसने-हँसाने से रही

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

Friday, August 23, 2019

देखा हुआ सा कुछ है तो सोचा हुआ सा कुछ - dekha hua sa kuchh hai to socha hua sa kuchh- - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 23, 2019 0 Comments
देखा हुआ सा कुछ है तो सोचा हुआ सा कुछ 
हर वक़्त मेरे साथ है उलझा हुआ सा कुछ


होता है यूँ भी रास्ता खुलता नहीं कहीं 
जंगल-सा फैल जाता है खोया हुआ सा कुछ


साहिल की गिली रेत पर बच्चों के खेल-सा 
हर लम्हा मुझ में बनता बिखरता हुआ सा कुछ


फ़ुर्सत ने आज घर को सजाया कुछ इस तरह 
हर शय से मुस्कुराता है रोता हुआ सा कुछ


धुँधली सी एक याद किसी क़ब्र का दिया 
और मेरे आस-पास चमकता हुआ सा कुछ

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

चांद से फूल से या मेरी ज़ुबाँ से सुनिए - chaand se phool se ya meree zubaan se sunie - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 23, 2019 0 Comments
चांद से फूल से या मेरी ज़ुबाँ से सुनिए
हर तरफ आपका क़िस्सा हैं जहाँ से सुनिए

सबको आता नहीं दुनिया को सता कर जीना 
ज़िन्दगी क्या है मुहब्बत की ज़बां से सुनिए

क्या ज़रूरी है कि हर पर्दा उठाया जाए 
मेरे हालात भी अपने ही मकाँ से सुनिए

मेरी आवाज़ ही पर्दा है मेरे चेहरे का 
मैं हूँ ख़ामोश जहाँ, मुझको वहाँ से सुनिए

कौन पढ़ सकता हैं पानी पे लिखी तहरीरें 
किसने क्या लिक्ख़ा हैं ये आब-ए-रवाँ से सुनिए

चांद में कैसे हुई क़ैद किसी घर की ख़ुशी 
ये कहानी किसी मस्ज़िद की अज़ाँ से सुनिए

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

बदला न अपने आप को जो थे वही रहे - badala na apane aap ko jo the vahee rahe - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 23, 2019 0 Comments
बदला न अपने आप को जो थे वही रहे 
मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे 

दुनिया न जीत पाओ तो हारो न ख़ुद को तुम 
थोड़ी बहुत तो ज़हन में नाराज़गी रहे 

अपनी तरह सभी को किसी की तलाश थी 
हम जिसके भी क़रीब रहे दूर ही रहे 

गुज़रो जो बाग़ से तो दुआ माँगते चलो 
जिसमें खिले हैं फूल वो डाली हरी रहे

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं - apanee marzee se kahaan apane safar ke ham hain - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 23, 2019 0 Comments
अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं 
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं 

पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है 
अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं 

वक़्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियों तक 
किसको मालूम कहाँ के हैं किधर के हम हैं 

चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफ़िर का नसीब 
सोचते रहते हैं कि किस राहगुज़र के हम हैं 

गिनतियों में ही गिने जाते हैं हर दौर में हम 
हर क़लमकार की बेनाम ख़बर के हम हैं

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

अपना ग़म लेके कहीं और न जाया जाये - apana gam leke kaheen aur na jaaya jaaye - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 23, 2019 0 Comments
अपना ग़म लेके कहीं और न जाया जाये 
घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाये 

जिन चिराग़ों को हवाओं का कोई ख़ौफ़ नहीं
उन चिराग़ों को हवाओं से बचाया जाये 

बाग में जाने के आदाब हुआ करते हैं 
किसी तितली को न फूलों से उड़ाया जाये 

ख़ुदकुशी करने की हिम्मत नहीं होती सब में 
और कुछ दिन यूँ ही औरों को सताया जाये 

घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें 
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

अब खुशी है न कोई ग़म रुलाने वाला - ab khushee hai na koee gam rulaane vaala- - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 23, 2019 0 Comments
अब खुशी है न कोई ग़म रुलाने वाला
हमने अपना लिया हर रंग ज़माने वाला

अब खुशी है न कोई ग़म रुलाने वाला
हमने अपना लिया हर रंग ज़माने वाला

हर बे-चेहरा सी उम्मीद है चेहरा चेहरा
जिस तरफ़ देखिए आने को है आने वाला

उसको रुखसत तो किया था मुझे मालूम न था
सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला

दूर के चांद को ढूंढ़ो न किसी आँचल में
ये उजाला नहीं आंगन में समाने वाला

इक मुसाफ़िर के सफ़र जैसी है सबकी दुनिया
कोई जल्दी में कोई देर में जाने वाला

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

कुछ तबीयत ही मिली थी ऐसी चैन से जीने की सूरत ना हुई - kuchh tabeeyat hee milee thee aisee chain se jeene kee soorat na huee - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 23, 2019 0 Comments
कुछ तबीयत ही मिली थी ऐसी चैन से जीने की सूरत ना हुई
जिसको चाहा उसे अपना ना सके जो मिला उससे मुहब्बत ना हुई

जिससे जब तक मिले दिल ही से मिले दिल जो बदला तो फसाना बदला
रस्में दुनिया की निभाने के लिए हमसे रिश्तों की तिज़ारत[1] ना हुई

दूर से था वो कई चेहरों में पास से कोई भी वैसा ना लगा
बेवफ़ाई भी उसी का था चलन फिर किसीसे भी शिकायत ना हुई

वक्त रूठा रहा बच्चे की तरह राह में कोई खिलौना ना मिला
दोस्ती भी तो निभाई ना गई दुश्मनी में भी अदावत[2] ना हुई


- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

दिल में ना हो ज़ुर्रत तो मोहब्बत नहीं मिलती - dil mein na ho zurrat to mohabbat nahin milatee - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 23, 2019 0 Comments
दिल में ना हो ज़ुर्रत तो मोहब्बत नहीं मिलती
ख़ैरात में इतनी बड़ी दौलत नहीं मिलती

कुछ लोग यूँ ही शहर में हमसे भी ख़फा हैं
हर एक से अपनी भी तबीयत नहीं मिलती

देखा था जिसे मैंने कोई और था शायद
वो कौन है जिससे तेरी सूरत नहीं मिलती

हँसते हुए चेहरों से है बाज़ार की ज़ीनत
रोने को यहाँ वैसे भी फुरसत नहीं मिलती


- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

नयी-नयी पोशाक बदलकर, मौसम आते-जाते हैं,- nayee-nayee poshaak badalakar, mausam aate-jaate hain,- - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 23, 2019 0 Comments
नयी-नयी पोशाक बदलकर, मौसम आते-जाते हैं,
फूल कहॉ जाते हैं जब भी जाते हैं लौट आते हैं।

शायद कुछ दिन और लगेंगे, ज़ख़्मे-दिल के भरने में,
जो अक्सर याद आते थे वो कभी-कभी याद आते हैं।

चलती-फिरती धूप-छॉव से, चहरा बाद में बनता है,
पहले-पहले सभी ख़यालों से तस्वीर बनाते हैं।

आंखों देखी कहने वाले, पहले भी कम-कम ही थे,
अब तो सब ही सुनी-सुनाई बातों को दोहराते हैं ।

इस धरती पर आकर सबका, अपना कुछ खो जाता है,
कुछ रोते हैं, कुछ इस ग़म से अपनी ग़ज़ल सजाते हैं।


- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

हमको कब जुड़ने दिया - hamako kab judane diya -- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 23, 2019 0 Comments
हमको कब जुड़ने दिया 
जब भी जुड़े बाँटा गया
रास्ते से मिलने वाला 
हर रास्ता काटा गया

कौन बतलाए 
सभी अल्लाह के धन्धों में हैं
किस तरफ़ दालें हुईं रुख़सत 
किधर आटा गया
लड़ रहे हैं उसके घर की 
चहारदीवारी पर सब

बोलिए, रैदास जी ! 
जूता कहाँ गाँठा गया
मछलियाँ नादान हैं 
मुमकिन हैं खा जाएँ फ़रेब
फिर मछेरे का 
भरे तालाब में काँटा गया
वह लुटेरा था मगर 
उसका मुसलमाँ नाम था
बस, इसी एक जुर्म पर 
सदियों उसे डाँटा गया

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

सरहदों पर फ़तह का ऐलान हो जाने के बाद - sarahadon par fatah ka ailaan ho jaane ke baad - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 23, 2019 0 Comments
सरहदों पर फ़तह का ऐलान हो जाने के बाद
जंग!
बे-घर बे-सहारा
सर्द ख़ामोशी की आँधी में बिखर के
ज़र्रा-ज़र्रा फैलती है
तेल
घी
आटा
खनकती चूड़ियों का रूप भर के
बस्ती-बस्ती डोलती है

दिन-दहाड़े
हर गली-कूचे में घुसकर
बंद दरवाजों की साँकल खोलती है
मुद्दतों तक
जंग!
घर-घर बोलती है
सरहदों पर फ़तह का ऐलान हो जाने के बाद

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

सूरज एक नटखट बालक सा - sooraj ek natakhat baalak sa - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 23, 2019 0 Comments
सूरज एक नटखट बालक सा
दिन भर शोर मचाए
इधर-उधर चिड़ियों को बिखेरे
किरनों को छितराए
क़लम, दराँती, ब्रश, हथौड़ा
जगह-जगह फैलाए

शाम! 
थकी-हारी माँ जैसी
एक दिया जिलाए
धीमे-धीमे
सारी बिखरी चीज़ें चुनती जाए

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

हर कविता मुकम्मल होती है - har kavita mukammal hotee hai - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 23, 2019 0 Comments
हर कविता मुकम्मल होती है
लेकिन वह क़लम से काग़ज़ पर जब आती है
थोड़ी सी कमी रह जाती है

हर प्रीत मुकम्मल होती है
लेकिन वह गगन से धरती पर जब आती है
थोड़ी सी कमी रह जाती है

हर जीत मुकम्मल होती है
सरहद से वह लेकिन आँगन में जब आती है
थोड़ी सी कमी रह जाती है

फिर कविता नई
फिर प्रीत नई
फिर जीत नई बहलाती है
हर बार मगर लगता है यूँ ही
थोड़ी सी कमी रह जाती है

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

मुँह की बात सुने हर कोई - munh kee baat sune har koee - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 23, 2019 0 Comments
मुँह की बात सुने हर कोई
दिल के दर्द को जाने कौन
आवाज़ों के बाज़ारों में
ख़ामोशी पहचाने कौन।

सदियों-सदियों वही तमाशा
रस्ता-रस्ता लम्बी खोज
लेकिन जब हम मिल जाते हैं
खो जाता है जाने कौन।

जाने क्या-क्या बोल रहा था
सरहद, प्यार, किताबें, ख़ून
कल मेरी नींदों में छुपकर
जाग रहा था जाने कौन।

मैं उसकी परछाई हूँ या
वो मेरा आईना है
मेरे ही घर में रहता है
मेरे जैसा जाने कौन।

किरन-किरन अलसाता सूरज
पलक-पलक खुलती नींदें
धीमे-धीमे बिखर रहा है
ज़र्रा-ज़र्रा जाने कौन।


- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

नयी-नयी आँखें हों तो हर मंज़र अच्छा लगता है - nayee-nayee aankhen hon to har manzar achchha lagata hai - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 23, 2019 0 Comments
नयी-नयी आँखें हों तो हर मंज़र अच्छा लगता है
कुछ दिन शहर में घूमे लेकिन, अब घर अच्छा लगता है ।

मिलने-जुलनेवालों में तो सारे अपने जैसे हैं
जिससे अब तक मिले नहीं वो अक्सर अच्छा लगता है ।

मेरे आँगन में आये या तेरे सर पर चोट लगे
सन्नाटों में बोलनेवाला पत्थर अच्छा लगता है ।

चाहत हो या पूजा सबके अपने-अपने साँचे हैं
जो मूरत में ढल जाये वो पैकर अच्छा लगता है ।

हमने भी सोकर देखा है नये-पुराने शहरों में
जैसा भी है अपने घर का बिस्तर अच्छा लगता है ।


- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

वो शोख शोख नज़र सांवली सी एक लड़की - vo shokh shokh nazar saanvalee see ek ladakee - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 23, 2019 0 Comments
वो शोख शोख नज़र सांवली सी एक लड़की
जो रोज़ मेरी गली से गुज़र के जाती है
सुना है
वो किसी लड़के से प्यार करती है
बहार हो के, तलाश-ए-बहार करती है
न कोई मेल न कोई लगाव है लेकिन न जाने क्यूँ
बस उसी वक़्त जब वो आती है
कुछ इंतिज़ार की आदत सी हो गई है
मुझे
एक अजनबी की ज़रूरत हो गई है मुझे
मेरे बरांडे के आगे यह फूस का छप्पर
गली के मोड पे खडा हुआ सा
एक पत्थर
वो एक झुकती हुई बदनुमा सी नीम की शाख
और उस पे जंगली कबूतर के घोंसले का निशाँ
यह सारी चीजें कि जैसे मुझी में शामिल हैं
मेरे दुखों में मेरी हर खुशी में शामिल हैं
मैं चाहता हूँ कि वो भी यूं ही गुज़रती रहे
अदा-ओ-नाज़ से लड़के को प्यार करती रहे

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

कभी बादल, कभी कश्ती, कभी गर्दाब लगे - kabhee baadal, kabhee kashtee, kabhee gardaab lage -निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 23, 2019 0 Comments
कभी बादल, कभी कश्ती, कभी गर्दाब लगे
वो बदन जब भी सजे कोई नया ख्वाब लगे

एक चुप चाप सी लड़की, न कहानी न ग़ज़ल
याद जो आये कभी रेशम-ओ-किम्ख्वाब लगे

अभी बे-साया है दीवार कहीं लोच न ख़म
कोई खिड़की कहीं निकले कहीं मेहराब लगे

घर के आँगन मैं भटकती हुई दिन भर की थकन
रात ढलते ही पके खेत सी शादाब लगे

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

गरज बरस प्यासी धरती पर फिर पानी दे मौला - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 23, 2019 0 Comments
गरज बरस प्यासी धरती पर फिर पानी दे मौला 
चिड़ियों को दाना, बच्चों को गुड़धानी दे मौला 

दो और दो का जोड़ हमेशा चार कहाँ होता है 
सोच समझवालों को थोड़ी नादानी दे मौला 

फिर रोशन कर ज़हर का प्याला चमका नई सलीबें 
झूठों की दुनिया में सच को ताबानी दे मौला 

फिर मूरत से बाहर आकर चारों ओर बिखर जा 
फिर मंदिर को कोई मीरा दीवानी दे मौला 

तेरे होते कोई किसी की जान का दुश्मन क्यों हो 
जीने वालों को मरने की आसानी दे मौला

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

बेसन की सोंधी रोटी पर - besan kee sondhee rotee par - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 23, 2019 0 Comments
बेसन की सोंधी रोटी पर 
खट्टी चटनी जैसी माँ 

याद आती है चौका-बासन 
चिमटा फुकनी जैसी माँ 

बाँस की खुर्री खाट के ऊपर 
हर आहट पर कान धरे 

आधी सोई आधी जागी 
थकी दोपहरी जैसी माँ 

चिड़ियों के चहकार में गूंजे
राधा-मोहन अली-अली 

मुर्ग़े की आवाज़ से खुलती 
घर की कुंडी जैसी माँ 

बिवी, बेटी, बहन, पड़ोसन 
थोड़ी थोड़ी सी सब में 

दिन भर इक रस्सी के ऊपर 
चलती नटनी जैसी माँ 

बाँट के अपना चेहरा, माथा, 
आँखें जाने कहाँ गई 

फटे पुराने इक अलबम में 
चंचल लड़की जैसी माँ

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता - kabhee kisee ko mukammal jahaan nahin milata - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

August 23, 2019 0 Comments
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता

बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले
ये ऐसी आग है जिसमें धुआँ नहीं मिलता

तमाम शहर में ऐसा नहीं ख़ुलूस न हो
जहाँ उमीद हो सकी वहाँ नहीं मिलता

कहाँ चिराग़ जलायें कहाँ गुलाब रखें
छतें तो मिलती हैं लेकिन मकाँ नहीं मिलता

ये क्या अज़ाब है सब अपने आप में गुम हैं
ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलता

चिराग़ जलते ही बीनाई बुझने लगती है
खुद अपने घर में ही घर का निशाँ नहीं मिलता

जिसे भी देखिये वो अपने आप में गुम है
ज़ुबाँ मिली है मगर हमज़ुबा नहीं मिलता

तेरे जहान में ऐसा नहीं कि प्यार न हो
जहाँ उम्मीद हो इस की वहाँ नहीं मिलता

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

Wednesday, August 21, 2019

जियो जियो अय हिन्दुस्तान - jiyo jiyo ay hindustaan - -raamadhaaree sinh "dinakar" -रामधारी सिंह "दिनकर"

August 21, 2019 0 Comments
जाग रहे हम वीर जवान,
जियो जियो अय हिन्दुस्तान !
हम प्रभात की नई किरण हैं, हम दिन के आलोक नवल,
हम नवीन भारत के सैनिक, धीर,वीर,गंभीर, अचल ।
हम प्रहरी उँचे हिमाद्रि के, सुरभि स्वर्ग की लेते हैं ।
हम हैं शान्तिदूत धरणी के, छाँह सभी को देते हैं।
वीर-प्रसू माँ की आँखों के हम नवीन उजियाले हैं
गंगा, यमुना, हिन्द महासागर के हम रखवाले हैं।
तन मन धन तुम पर कुर्बान,
जियो जियो अय हिन्दुस्तान !

हम सपूत उनके जो नर थे अनल और मधु मिश्रण,
जिसमें नर का तेज प्रखर था, भीतर था नारी का मन !
एक नयन संजीवन जिनका, एक नयन था हालाहल,
जितना कठिन खड्ग था कर में उतना ही अंतर कोमल।
थर-थर तीनों लोक काँपते थे जिनकी ललकारों पर,
स्वर्ग नाचता था रण में जिनकी पवित्र तलवारों पर
हम उन वीरों की सन्तान ,
जियो जियो अय हिन्दुस्तान !

हम शकारि विक्रमादित्य हैं अरिदल को दलनेवाले,
रण में ज़मीं नहीं, दुश्मन की लाशों पर चलनेंवाले।
हम अर्जुन, हम भीम, शान्ति के लिये जगत में जीते हैं
मगर, शत्रु हठ करे अगर तो, लहू वक्ष का पीते हैं।
हम हैं शिवा-प्रताप रोटियाँ भले घास की खाएंगे,
मगर, किसी ज़ुल्मी के आगे मस्तक नहीं झुकायेंगे।
देंगे जान , नहीं ईमान,
जियो जियो अय हिन्दुस्तान।

जियो, जियो अय देश! कि पहरे पर ही जगे हुए हैं हम।
वन, पर्वत, हर तरफ़ चौकसी में ही लगे हुए हैं हम।
हिन्द-सिन्धु की कसम, कौन इस पर जहाज ला सकता ।
सरहद के भीतर कोई दुश्मन कैसे आ सकता है ?
पर की हम कुछ नहीं चाहते, अपनी किन्तु बचायेंगे,
जिसकी उँगली उठी उसे हम यमपुर को पहुँचायेंगे।
हम प्रहरी यमराज समान
जियो जियो अय हिन्दुस्तान!
-raamadhaaree sinh "dinakar"  -रामधारी सिंह "दिनकर"

माथे में सेंदूर पर छोटी - maathe mein sendoor par chhotee - -raamadhaaree sinh "dinakar" -रामधारी सिंह "दिनकर"

August 21, 2019 0 Comments
माथे में सेंदूर पर छोटी
दो बिंदी चमचम-सी, 
पपनी पर आँसू की बूँदें 
मोती-सी, शबनम-सी। 
लदी हुई कलियों में मादक
टहनी एक नरम-सी,
यौवन की विनती-सी भोली,
गुमसुम खड़ी शरम-सी।
पीला चीर, कोर में जिसके 
चकमक गोटा-जाली, 
चली पिया के गांव उमर के 
सोलह फूलों वाली। 
पी चुपके आनंद, उदासी
भरे सजल चितवन में,
आँसू में भींगी माया
चुपचाप खड़ी आंगन में।
आँखों में दे आँख हेरती 
हैं उसको जब सखियाँ, 
मुस्की आ जाती मुख पर,
हँस देती रोती अँखियाँ। 
पर, समेट लेती शरमाकर
बिखरी-सी मुस्कान,
मिट्टी उकसाने लगती है
अपराधिनी-समान।
भींग रहा मीठी उमंग से 
दिल का कोना-कोना, 
भीतर-भीतर हँसी देख लो,
बाहर-बाहर रोना। 
तू वह, जो झुरमुट पर आयी
हँसती कनक-कली-सी,
तू वह, जो फूटी शराब की
निर्झरिणी पतली-सी।
तू वह, रचकर जिसे प्रकृति 
ने अपना किया सिंगार, 
तू वह जो धूसर में आयी 
सुबज रंग की धार। 
मां की ढीठ दुलार! पिता की
ओ लजवंती भोली,
ले जायेगी हिय की मणि को
अभी पिया की डोली।
कहो, कौन होगी इस घर की 
तब शीतल उजियारी? 
किसे देख हँस-हँस कर 
फूलेगी सरसों की क्यारी? 
वृक्ष रीझ कर किसे करेंगे
पहला फल अर्पण-सा?
झुकते किसको देख पोखरा
चमकेगा दर्पण-सा?
किसके बाल ओज भर देंगे 
खुलकर मंद पवन में? 
पड़ जायेगी जान देखकर 
किसको चंद्र-किरन में? 
महँ-महँ कर मंजरी गले से
मिल किसको चूमेगी?
कौन खेत में खड़ी फ़सल
की देवी-सी झूमेगी?
बनी फिरेगी कौन बोलती 
प्रतिमा हरियाली की? 
कौन रूह होगी इस धरती 
फल-फूलों वाली की? 
हँसकर हृदय पहन लेता जब
कठिन प्रेम-ज़ंजीर,
खुलकर तब बजते न सुहागिन,
पाँवों के मंजीर।
घड़ी गिनी जाती तब निशिदिन 
उँगली की पोरों पर, 
प्रिय की याद झूलती है 
साँसों के हिंडोरों पर। 
पलती है दिल का रस पीकर
सबसे प्यारी पीर,
बनती है बिगड़ती रहती
पुतली में तस्वीर।
पड़ जाता चस्का जब मोहक 
प्रेम-सुधा पीने का, 
सारा स्वाद बदल जाता है 
दुनिया में जीने का। 
मंगलमय हो पंथ सुहागिन,
यह मेरा वरदान;
हरसिंगार की टहनी-से
फूलें तेरे अरमान।
जगे हृदय को शीतल करने-
वाली मीठी पीर, 
निज को डुबो सके निज में, 
मन हो इतना गंभीर। 
छाया करती रहे सदा
तुझको सुहाग की छाँह,
सुख-दुख में ग्रीवा के नीचे
रहे पिया की बाँह।
पल-पल मंगल-लग्न, ज़िंदगी 
के दिन-दिन त्यौहार, 
उर का प्रेम फूटकर हो 
आँचल में उजली धार। 
-raamadhaaree sinh "dinakar"  -रामधारी सिंह "दिनकर"

लिनक्स OS क्या है ? लिनेक्स कई विशेषता और उसके प्रकारों के बारे में विस्तार समझाइए ?

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