ज़हानतों को कहाँ कर्ब से फ़रार मिला - zahaanaton ko kahaan karb se faraar mila - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli
ज़हानतों को कहाँ कर्ब से फ़रार मिला
जिसे निगाह मिली उसको इंतज़ार मिला
वो कोई राह का पत्थर हो या हसीं मंज़र
जहाँ से रास्ता ठहरा वहीं मज़ार मिला
कोई पुकार रहा था खुली फ़िज़ाओं से
नज़र उठाई तो चारो तरफ़ हिसार मिला
हर एक साँस न जाने थी जुस्तजू किसकी
हर एक दयार मुसाफ़िर को बेदयार मिला
ये शहर है कि नुमाइश लगी हुई है कोई
जो आदमी भी मिला बनके इश्तहार मिला
- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli
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