प्रिय दोस्तों! हमारा उद्देश्य आपके लिए किसी भी पाठ्य को सरलतम रूप देकर प्रस्तुत करना है, हम इसको बेहतर बनाने पर कार्य कर रहे है, हम आपके धैर्य की प्रशंसा करते है| मुक्त ज्ञानकोष, वेब स्रोतों और उन सभी पाठ्य पुस्तकों का मैं धन्यवाद देना चाहता हूँ, जहाँ से जानकारी प्राप्त कर इस लेख को लिखने में सहायता हुई है | धन्यवाद!

Tuesday, August 27, 2019

कहीं छत थी दीवार-ओ-दर थे कहीं - kaheen chhat thee deevaar-o-dar the kaheen - - निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

कहीं छत थी दीवार-ओ-दर थे कहीं 
मिला मुझको घर का पता देर से 
दिया तो बहुत ज़िन्दगी ने मुझे 
मगर जो दिया वो दिया देर से


हुआ न कोई काम मामूल से 
गुज़ारे शब-ओ-रोज़ कुछ इस तरह 
कभी चाँद चमका ग़लत वक़्त पर 
कभी घर में सूरज उगा देर से


कभी रुक गये राह में बेसबब 
कभी वक़्त से पहले घिर आई शब 
हुये बंद दरवाज़े खुल खुल के सब 
जहाँ भी गया मैं गया देर से


ये सब इत्तिफ़ाक़ात का खेल है 
यही है जुदाई यही मेल है 
मैं मुड़ मुड़ के देखा किया दूर तक 
बनी वो ख़ामोशी सदा देर से


सजा दिन भी रौशन हुई रात भी 
भरे जाम लहराई बरसात भी 
रहे साथ कुछ ऐसे हालात भी 
जो होना था जल्दी हुआ देर से


भटकती रही यूँ ही हर बंदगी 
मिली न कहीं से कोई रौशनी 
छुपा था कहीं भीड़ में आदमी 
हुआ मुझ में रौशन ख़ुदा देर से

- निदा फ़ाज़ली - Nida Fazli

No comments:

Post a Comment

Describe the difference between a public network and a private network @PoemGazalShayari.in

 Describe the difference between a public network and a private network Topic Coverd: Private Network: Access Restriction Security Scalabili...