प्रिय दोस्तों! हमारा उद्देश्य आपके लिए किसी भी पाठ्य को सरलतम रूप देकर प्रस्तुत करना है, हम इसको बेहतर बनाने पर कार्य कर रहे है, हम आपके धैर्य की प्रशंसा करते है| मुक्त ज्ञानकोष, वेब स्रोतों और उन सभी पाठ्य पुस्तकों का मैं धन्यवाद देना चाहता हूँ, जहाँ से जानकारी प्राप्त कर इस लेख को लिखने में सहायता हुई है | धन्यवाद!

Friday, September 27, 2019

अक़ायद वहम है मज़हब ख़याल-ए-ख़ाम है साक़ी - aqaayad vaham hai mazahab khayaal-e-khaam hai saaqee - -साहिर लुधियानवी -Sahir Ludhianvi

September 27, 2019 0 Comments
अक़ायद वहम है मज़हब ख़याल-ए-ख़ाम है साक़ी अज़ल से ज़हन-ए-इन्सां बस्त-ए-औहाम है साक़ी हक़ीक़त-आशनाई अस्ल में गुम-कदर्ह-राही है उरूस-ए-आगही परवरदह-ए-अबहाम है साक़ी मुबारक हो जाईफ़ी को ख़िरद की फ़लसफ़ादानी जवानी बेनियाज़-ए-इब्रत-ए-अन्जाम है साक़ी अभी तक रास्ते के पेच-ओ-ख़म से दिल धड़कता है मेरा ज़ौक़-ए-तलब...

Tuesday, September 10, 2019

आख़िर कब तक इश्क - aakhir kab tak ishk -- ashok chakradhar -अशोक चक्रधर

September 10, 2019 0 Comments
आख़िर कब तक इश्कइकतरफ़ा करते रहोगे,उसने तुम्हारे दिल कोचोट पहुँचाईतो क्या करोगे?-ऐसा हुआ तोलात मारूँगाउसके दिल को।-फिर तो पैर में भीचोट आएगी तुमको।- ashok chakradhar -अशोक चक्रध...

ये घर है दर्द का घर, परदे हटा के देखो - ye ghar hai dard ka ghar, parade hata ke dekho -- ashok chakradhar -अशोक चक्रधर

September 10, 2019 0 Comments
ये घर है दर्द का घर, परदे हटा के देखो,ग़म हैं हंसी के अंदर, परदे हटा के देखो।लहरों के झाग ही तो, परदे बने हुए हैं,गहरा बहुत समंदर, परदे हटा के देखो।चिड़ियों का चहचहाना, पत्तों का सरसराना,सुनने की चीज़ हैं पर, परदे हटा के देखो।नभ में उषा की रंगत, सूरज का मुस्कुरानाये ख़ुशगवार मंज़र, परदे हटा के देखो।अपराध और सियासत का...

एक रुपए के सिक्के - ek rupe ke sikke -- ashok chakradhar -अशोक चक्रधर

September 10, 2019 0 Comments
एक बारबरखुरदार!एक रुपए के सिक्के,और पाँच पैसे के सिक्के में,लड़ाई हो गई,पर्स के अंदरहाथापाई हो गई।जब पाँच का सिक्कादनदना गयातो रुपया झनझना गयापिद्दी न पिद्दी की दुमअपने आपकोक्या समझते हो तुम!मुझसे लड़ते हो,औक़ात देखी हैजो अकड़ते हो!इतना कहकर मार दिया धक्का,सुबकते हुए बोलापाँच का सिक्का-हमें छोटा समझकरदबाते हैं,कुछ भी...

सुदूर कामना- sudoor kaamana- - ashok chakradhar -अशोक चक्रधर

September 10, 2019 0 Comments
सुदूर कामनासारी ऊर्जाएंसारी क्षमताएं खोने पर,यानि किबहुत बहुतबहुत बूढ़ा होने पर,एक दिन चाहूंगाकि तू मर जाए।(इसलिए नहीं बतायाकि तू डर जाए।)हां उस दिनअपने हाथों सेतेरा संस्कार करुंगा,उसके ठीक एक महीने बादमैं मरूंगा।उस दिन मैंतुझ मरी हुई कासौंदर्य देखूंगा,तेरे स्थाई मौन से सुनूंगा।क़रीब,और क़रीब जाते हुएपहले मस्तकऔर अंतिम...

तू गर दरिन्दा है तो ये मसान तेरा है - too gar darinda hai to ye masaan tera hai- - ashok chakradhar -अशोक चक्रधर

September 10, 2019 0 Comments
तू गर दरिन्दा है तो ये मसान तेरा है,अगर परिन्दा है तो आसमान तेरा है।तबाहियां तो किसी और की तलाश में थींकहां पता था उन्हें ये मकान तेरा है।छलकने मत दे अभी अपने सब्र का प्याला,ये सब्र ही तो असल इम्तेहान तेरा है।भुला दे अब तो भुला दे कि भूल किसकी थीन भूल प्यारे कि हिन्दोस्तान तेरा है।न बोलना है तो मत बोल ये तेरी मरज़ीहै,...

Thursday, September 5, 2019

पत्थर नहीं हैं आप तो पसीजिए हुज़ूर - patthar nahin hain aap to paseejie huzoor - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar -

September 05, 2019 0 Comments
दुष्यंत कुमार टू धर्मयुग संपादकपत्थर नहीं हैं आप तो पसीजिए हुज़ूर ।संपादकी का हक़ तो अदा कीजिए हुज़ूर ।अब ज़िंदगी के साथ ज़माना बदल गया,पारिश्रमिक भी थोड़ा बदल दीजिए हुज़ूर ।कल मयक़दे में चेक दिखाया था आपका,वे हँस के बोले इससे ज़हर पीजिए हुज़ूर ।शायर को सौ रुपए तो मिलें जब ग़ज़ल छपे,हम ज़िन्दा रहें ऐसी जुगत कीजिए हुज़ूर...

होने लगी है जिस्म में जुंबिश तो देखिये- hone lagee hai jism mein jumbish to dekhiye- - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
होने लगी है जिस्म में जुंबिश तो देखियेइस पर कटे परिंदे की कोशिश तो देखियेगूँगे निकल पड़े हैं, ज़ुबाँ की तलाश मेंसरकार के ख़िलाफ़ ये साज़िश तो देखियेबरसात आ गई तो दरकने लगी ज़मीनसूखा मचा रही है ये बारिश तो देखियेउनकी अपील है कि उन्हें हम मदद करेंचाकू की पसलियों से गुज़ारिश तो देखियेजिसने नज़र उठाई वही शख़्स गुम हुआइस...

पाँवों से सिर तक जैसे एक जनून- paanvon se sir tak jaise ek janoon - - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
पाँवों से सिर तक जैसे एक जनूनबेतरतीबी से बढ़े हुए नाख़ूनकुछ टेढ़े-मेढ़े बैंगे दाग़िल पाँवजैसे कोई एटम से उजड़ा गाँवटखने ज्यों मिले हुए रक्खे हों बाँसपिण्डलियाँ कि जैसे हिलती-डुलती काँसकुछ ऐसे लगते हैं घुटनों के जोड़जैसे ऊबड़-खाबड़ राहों के मोड़गट्टों-सी जंघाएँ निष्प्राण मलीनकटि, रीतिकाल की सुधियों से भी क्षीणछाती के...

किन्तु जो तिमिर-पान- Kintu jō timira-pāna - - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
किन्तु जो तिमिर-पानऔ' ज्योति-दानकरता करता बह गयाउसे क्या कहूँकि वह सस्पन्द नहीं था ?और जो मन की मूक कराहज़ख़्म की आहकठिन निर्वाहव्यक्त करता करता रह गयाउसे क्या कहूँगीत का छन्द नहीं था ?पगों कि संज्ञा में हैगति का दृढ़ आभास,किन्तु जो कभी नहीं चल सकादीप सा कभी नहीं जल सकाकि यूँही खड़ा खड़ा ढह गयाउसे क्या कहूँजेल में बन्द...

तूने ये हरसिंगार हिलाकर बुरा किया - toone ye harasingaar hilaakar bura kiya- - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
तूने ये हरसिंगार हिलाकर बुरा कियापांवों की सब जमीन को फूलों से ढंक लियाकिससे कहें कि छत की मुंडेरों से गिर पड़ेहमने ही ख़ुद पतंग उड़ाई थी शौकियाअब सब से पूछता हूं बताओ तो कौन थावो बदनसीब शख़्स जो मेरी जगह जियामुँह को हथेलियों में छिपाने की बात हैहमने किसी अंगार को होंठों से से छू लियाघर से चले तो राह में आकर ठिठक गयेपूरी...

मेरी प्रगति या अगति का - meree pragati ya agati ka - - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
मेरी प्रगति या अगति कायह मापदण्ड बदलो तुम,जुए के पत्ते-सामैं अभी अनिश्चित हूँ ।मुझ पर हर ओर से चोटें पड़ रही हैं,कोपलें उग रही हैं,पत्तियाँ झड़ रही हैं,मैं नया बनने के लिए खराद पर चढ़ रहा हूँ,लड़ता हुआनई राह गढ़ता हुआ आगे बढ़ रहा हूँ ।अगर इस लड़ाई में मेरी साँसें उखड़ गईं,मेरे बाज़ू टूट गए,मेरे चरणों में आँधियों के समूह...

लफ़्ज़ एहसास—से छाने लगे, ये तो हद है - lafz ehasaas—se chhaane lage, ye to had hai - - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
लफ़्ज़ एहसास—से छाने लगे, ये तो हद हैलफ़्ज़ माने भी छुपाने लगे, ये तो हद हैआप दीवार उठाने के लिए आए थेआप दीवार उठाने लगे, ये तो हद हैख़ामुशी शोर से सुनते थे कि घबराती हैख़ामुशी शोर मचाने लगे, ये तो हद हैआदमी होंठ चबाए तो समझ आता हैआदमी छाल चबाने लगे, ये तो हद हैजिस्म पहरावों में छुप जाते थे, पहरावों में—जिस्म नंगे नज़र...

अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार - ab kisee ko bhee nazar aatee nahin koee daraar - - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरारघर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तहारआप बच कर चल सकें ऐसी कोई सूरत नहींरहगुज़र घेरे हुए मुर्दे खड़े हैं बेशुमाररोज़ अखबारों में पढ़कर यह ख़्याल आया हमेंइस तरफ़ आती तो हम भी देखते फ़स्ले—बहारमैं बहुत कुछ सोचता रहता हूँ पर कहता नहींबोलना भी है मना सच बोलना तो दरकिनारइस सिरे से उस...

मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ - main jise odhata-bichhaata hoon - - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँवो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँएक जंगल है तेरी आँखों मेंमैं जहाँ राह भूल जाता हूँतू किसी रेल-सी गुज़रती हैमैं किसी पुल-सा थरथराता हूँहर तरफ़ ऐतराज़ होता हैमैं अगर रौशनी में आता हूँएक बाज़ू उखड़ गया जबसेऔर ज़्यादा वज़न उठाता हूँमैं तुझे भूलने की कोशिश मेंआज कितने क़रीब पाता हूँकौन ये फ़ासला निभाएगामैं...

अगर ख़ुदा न करे सच ये ख़्वाब हो जाए - agar khuda na kare sach ye khvaab ho jae- - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
अगर ख़ुदा न करे सच ये ख़्वाब हो जाएतेरी सहर हो मेरा आफ़ताब हो जाएहुज़ूर! आरिज़ो-ओ-रुख़सार क्या तमाम बदनमेरी सुनो तो मुजस्सिम गुलाब हो जाएउठा के फेंक दो खिड़की से साग़र-ओ-मीनाये तिशनगी जो तुम्हें दस्तयाब हो जाएवो बात कितनी भली है जो आप करते हैंसुनो तो सीने की धड़कन रबाब हो जाएबहुत क़रीब न आओ यक़ीं नहीं होगाये आरज़ू भी...

ये धुएँ का एक घेरा कि मैं जिसमें रह रहा हूँ - ye dhuen ka ek ghera ki main jisamen rah raha hoon - - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
ये धुएँ का एक घेरा कि मैं जिसमें रह रहा हूँमुझे किस क़दर नया है, मैं जो दर्द सह रहा हूँये ज़मीन तप रही थी ये मकान तप रहे थेतेरा इंतज़ार था जो मैं इसी जगह रहा हूँमैं ठिठक गया था लेकिन तेरे साथ—साथ था मैंतू अगर नदी हुई तो मैं तेरी सतह रहा हूँतेरे सर पे धूप आई तो दरख़्त बन गया मैंतेरी ज़िन्दगी में अक्सर मैं कोई वजह रहा...

वो निगाहें सलीब है - vo nigaahen saleeb hai - - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
वो निगाहें सलीब हैहम बहुत बदनसीब हैंआइये आँख मूँद लेंये नज़ारे अजीब हैंज़िन्दगी एक खेत हैऔर साँसे जरीब हैंसिलसिले ख़त्म हो गएयार अब भी रक़ीब हैहम कहीं के नहीं रहेघाट औ’ घर क़रीब हैंआपने लौ छुई नहींआप कैसे अदीब हैंउफ़ नहीं की उजड़ गएलोग सचमुच ग़रीब हैं.  - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kuma...

जिंदगी ने कर लिया स्वीकार- jindagee ne kar liya sveekaar - - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
जिंदगी ने कर लिया स्वीकार,अब तो पथ यही है|अब उभरते ज्वार का आवेग मद्धिम हो चला है,एक हलका सा धुंधलका था कहीं, कम हो चला है,यह शिला पिघले न पिघले, रास्ता नम हो चला है,क्यों करूँ आकाश की मनुहार ,अब तो पथ यही है |क्या भरोसा, कांच का घट है, किसी दिन फूट जाए,एक मामूली कहानी है, अधूरी छूट जाए,एक समझौता हुआ था रौशनी से, टूट...

रोज़ जब रात को बारह का गजर होता है- roz jab raat ko baarah ka gajar hota hai - - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
रोज़ जब रात को बारह का गजर होता हैयातनाओं के अँधेरे में सफ़र होता हैकोई रहने की जगह है मेरे सपनों के लिएवो घरौंदा ही सही, मिट्टी का भी घर होता हैसिर से सीने में कभी पेट से पाओं में कभीइक जगह हो तो कहें दर्द इधर होता हैऐसा लगता है कि उड़कर भी कहाँ पहुँचेंगेहाथ में जब कोई टूटा हुआ पर होता हैसैर के वास्ते सड़कों पे निकल...

सँभल सँभल के’ बहुत पाँव धर रहा हूँ मैं - sanbhal sanbhal ke’ bahut paanv dhar raha hoon main - - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
सँभल सँभल के’ बहुत पाँव धर रहा हूँ मैंपहाड़ी ढाल से जैसे उतर रहा हूँ मैंक़दम क़दम पे मुझे टोकता है दिल ऐसेगुनाह कोई बड़ा जैसे कर रहा हूँ मैं।(२)तरस रहा है मन फूलों की नई गंध पाने कोखिली धूप में, खुली हवा में, गाने मुसकाने कोतुम अपने जिस तिमिरपाश में मुझको क़ैद किए होवह बंधन ही उकसाता है बाहर आ जाने को।(३)गीत गाकर चेतना...

ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो- ye jo shahateer hai palakon pe utha lo yaaro- - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारोअब कोई ऐसा तरीका भी निकालो यारोदर्दे—दिल वक़्त पे पैग़ाम भी पहुँचाएगाइस क़बूतर को ज़रा प्यार से पालो यारोलोग हाथों में लिए बैठे हैं अपने पिंजरेआज सैयाद को महफ़िल में बुला लो यारोआज सीवन को उधेड़ो तो ज़रा देखेंगेआज संदूक से वो ख़त तो निकालो यारोरहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनियाइस...

तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं - tumhaare paanv ke neeche koee zameen nahin - - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहींकमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यक़ीन नहींमैं बेपनाह अँधेरों को सुब्ह कैसे कहूँमैं इन नज़ारों का अँधा तमाशबीन नहींतेरी ज़ुबान है झूठी ज्म्हूरियत की तरहतू एक ज़लील-सी गाली से बेहतरीन नहींतुम्हीं से प्यार जतायें तुम्हीं को खा जाएँअदीब यों तो सियासी हैं पर कमीन नहींतुझे क़सम है ख़ुदी को...

एक तीखी आँच ने - ek teekhee aanch ne -- दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
एक तीखी आँच नेइस जन्म का हर पल छुआ,आता हुआ दिन छुआहाथों से गुजरता कल छुआहर बीज, अँकुआ, पेड़-पौधा,फूल-पत्ती, फल छुआजो मुझे छूने चलीहर उस हवा का आँचल छुआ... प्रहर कोई भी नहीं बीता अछूताआग के संपर्क सेदिवस, मासों और वर्षों के कड़ाहों मेंमैं उबलता रहा पानी-सापरे हर तर्क सेएक चौथाई उमरयों खौलते बीती बिना अवकाशसुख कहाँयों...

ज़िंदगानी का कोई मक़सद नहीं है - zindagaanee ka koee maqasad nahin hai -- दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
ज़िंदगानी का कोई मक़सद नहीं हैएक भी क़द आज आदमक़द नहीं हैराम जाने किस जगह होंगे क़बूतरइस इमारत में कोई गुम्बद नहीं हैआपसे मिल कर हमें अक्सर लगा हैहुस्न में अब जज़्बा—ए—अमज़द नहीं हैपेड़—पौधे हैं बहुत बौने तुम्हारेरास्तों में एक भी बरगद नहीं हैमैकदे का रास्ता अब भी खुला हैसिर्फ़ आमद—रफ़्त ही ज़ायद नहींइस चमन को देख कर...

अफ़वाह है या सच है ये कोई नही बोला- afavaah hai ya sach hai ye koee nahee bola - - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
अफ़वाह है या सच है ये कोई नही बोलामैंने भी सुना है अब जाएगा तेरा डोलाइन राहों के पत्थर भी मानूस थे पाँवों सेपर मैंने पुकारा तो कोई भी नहीं बोलालगता है ख़ुदाई में कुछ तेरा दख़ल भी हैइस बार फ़िज़ाओं ने वो रंग नहीं घोलाआख़िर तो अँधेरे की जागीर नहीं हूँ मैंइस राख में पिन्हा है अब भी वही शोलासोचा कि तू सोचेगी, तूने किसी शायर...

सब बियाबान, सुनसान अँधेरी राहों में - sab biyaabaan, sunasaan andheree raahon mein - - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 1 Comments
सब बियाबान, सुनसान अँधेरी राहों मेंखंदकों खाइयों मेंरेगिस्तानों में, चीख कराहों मेंउजड़ी गलियों मेंथकी हुई सड़कों में, टूटी बाहों मेंहर गिर जाने की जगहबिखर जाने की आशंकाओं मेंलोहे की सख्त शिलाओं सेदृढ़ औ’ गतिमयहम तीन दोस्तरोशनी जगाते हुए अँधेरी राहों परसंगीत बिछाते हुए उदास कराहों परप्रेरणा-स्नेह उन निर्बल टूटी बाहों...

हालाते जिस्म, सूरती—जाँ और भी ख़राब -haalaate jism, sooratee—jaan aur bhee kharaab - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar -

September 05, 2019 0 Comments
हालाते जिस्म, सूरती—जाँ और भी ख़राबचारों तरफ़ ख़राब यहाँ और भी ख़राबनज़रों में आ रहे हैं नज़ारे बहुत बुरेहोंठों पे आ रही है ज़ुबाँ और भी ख़राबपाबंद हो रही है रवायत से रौशनीचिमनी में घुट रहा है धुआँ और भी ख़राबमूरत सँवारने से बिगड़ती चली गईपहले से हो गया है जहाँ और भी ख़राबरौशन हुए चराग तो आँखें नहीं रहींअंधों को रौशनी...

बाएँ से उड़के दाईं दिशा को गरुड़ गया - baen se udake daeen disha ko garud gaya - - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
बाएँ से उड़के दाईं दिशा को गरुड़ गयाकैसा शगुन हुआ है कि बरगद उखड़ गयाइन खँडहरों में होंगी तेरी सिसकियाँ ज़रूरइन खँडहरों की ओर सफ़र आप मुड़ गयाबच्चे छलाँग मार के आगे निकल गयेरेले में फँस के बाप बिचारा बिछुड़ गयादुख को बहुत सहेज के रखना पड़ा हमेंसुख तो किसी कपूर की टिकिया-सा उड़ गयालेकर उमंग संग चले थे हँसी—खुशीपहुँचे...

मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आयेंगे - mere svapn tumhaare paas sahaara paane aayenge - - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आयेंगेइस बूढे पीपल की छाया में सुस्ताने आयेंगेहौले-हौले पाँव हिलाओ जल सोया है छेडो मतहम सब अपने-अपने दीपक यहीं सिराने आयेंगेथोडी आँच बची रहने दो थोडा धुँआ निकलने दोतुम देखोगी इसी बहाने कई मुसाफिर आयेंगेउनको क्या मालूम निरूपित इस सिकता पर क्या बीतीवे आये तो यहाँ शंख सीपियाँ उठाने आयेंगेफिर...

घंटियों की आवाज़ कानों तक पहुँचती है- ghantiyon kee aavaaz kaanon tak pahunchatee hai-- दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
घंटियों की आवाज़ कानों तक पहुँचती हैएक नदी जैसे दहानों तक पहुँचती हैअब इसे क्या नाम दें, ये बेल देखो तोकल उगी थी आज शानों तक पहुँचती हैखिड़कियां, नाचीज़ गलियों से मुख़ातिब हैअब लपट शायद मकानों तक पहुँचती हैआशियाने को सजाओ तो समझ लेना,बरक कैसे आशियानों तक पहुँचती हैतुम हमेशा बदहवासी में गुज़रते हो,बात अपनों से बिगानों...

ये ज़ुबाँ हमसे सी नहीं जाती - ye zubaan hamase see nahin jaatee -- दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
ये ज़ुबाँ हमसे सी नहीं जातीज़िन्दगी है कि जी नहीं जातीइन सफ़ीलों में वो दरारे हैंजिनमें बस कर नमी नहीं जातीदेखिए उस तरफ़ उजाला हैजिस तरफ़ रौशनी नहीं जातीशाम कुछ पेड़ गिर गए वरनाबाम तक चाँदनी नहीं जातीएक आदत-सी बन गई है तूऔर आदत कभी नहीं जातीमयकशो मय ज़रूर है लेकिनइतनी कड़वी कि पी नहीं जातीमुझको ईसा बना दिया तुमनेअब शिकायत...

लफ़्ज़ एहसास-से छाने लगे, ये तो हद है - lafz ehasaas-se chhaane lage, ye to had hai-- दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
लफ़्ज़ एहसास-से छाने लगे, ये तो हद हैलफ़्ज़ माने भी छुपाने लगे, ये तो हद हैआप दीवार उठाने के लिए आए थेआप दीवार उठाने लगे, ये तो हद हैख़ामुशी शोर से सुनते थे कि घबराती हैख़ामुशी शोर मचाने लगे, ये तो हद हैआदमी होंठ चबाए तो समझ आता हैआदमी छाल चबाने लगे, ये तो हद हैजिस्म पहरावों में छुप जाते थे, पहरावों में-जिस्म नंगे नज़र...

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए - ho gaee hai peer parvat-see pighalanee chaahie - - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिएइस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिएआज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगीशर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिएहर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव मेंहाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिएसिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहींमेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिएमेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने...

किसी को क्या पता था इस अदा पर मर मिटेंगे हम - kisee ko kya pata tha is ada par mar mitenge ham- - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
किसी को क्या पता था इस अदा पर मर मिटेंगे हमकिसी का हाथ उठ्ठा और अलकों तक चला आयावो बरगश्ता थे कुछ हमसे उन्हें क्योंकर यक़ीं आताचलो अच्छा हुआ एहसास पलकों तक चला आयाजो हमको ढूँढने निकला तो फिर वापस नहीं लौटातसव्वुर ऐसे ग़ैर—आबाद हलकों तक चला आयालगन ऐसी खरी थी तीरगी आड़े नहीं आईये सपना सुब्ह के हल्के धुँधलकों तक चला आया...

हर उभरी नस मलने का अभ्यास - har ubharee nas malane ka abhyaas - - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
हर उभरी नस मलने का अभ्यासरुक रुककर चलने का अभ्यासछाया में थमने की आदतयह क्यों ?जब देखो दिल में एक जलनउल्टे उल्टे से चाल-चलनसिर से पाँवों तक क्षत-विक्षतयह क्यों ?जीवन के दर्शन पर दिन-रातपण्डित विद्वानों जैसी बातलेकिन मूर्खों जैसी हरकतयह क्यों ? - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kuma...

गडरिए कितने सुखी हैं - gadarie kitane sukhee hain- - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
गडरिए कितने सुखी हैं ।न वे ऊँचे दावे करते हैंन उनको ले करएक दूसरे को कोसते या लड़ते-मरते हैं।जबकिजनता की सेवा करने के भूखेसारे दल भेडियों से टूटते हैं ।ऐसी-ऐसी बातेंऔर ऐसे-ऐसे शब्द सामने रखते हैंजैसे कुछ नहीं हुआ हैऔर सब कुछ हो जाएगा ।जबकिसारे दलपानी की तरह धन बहाते हैं,गडरिए मेंड़ों पर बैठे मुस्कुराते हैं... भेडों को...

मेरी कुंठा - meree kuntha- - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
मेरी कुंठारेशम के कीड़ों सीताने-बाने बुनतीतड़प-तड़पकरबाहर आने को सिर धुनती,स्वर सेशब्दों सेभावों सेऔ' वीणा से कहती-सुनती,गर्भवती हैमेरी कुंठा – कुँवारी कुंती!बाहर आने दूँतो लोक-लाज-मर्यादाभीतर रहने दूँतो घुटन, सहन से ज़्यादा,मेरा यह व्यक्तित्वसिमटने पर आमादा ।  - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kuma...

बहुत सँभाल के रक्खी तो पाएमाल हुई - bahut sanbhaal ke rakkhee to paemaal huee - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
बहुत सँभाल के रक्खी तो पाएमाल हुईसड़क पे फेंक दी तो ज़िंदगी निहाल हुईबड़ा लगाव है इस मोड़ को निगाहों सेकि सबसे पहले यहीं रौशनी हलाल हुईकोई निजात की सूरत नहीं रही, न सहीमगर निजात की कोशिश तो एक मिसाल हुईमेरे ज़ेह्न पे ज़माने का वो दबाब पड़ाजो एक स्लेट थी वो ज़िंदगी सवाल हुईसमुद्र और उठा, और उठा, और उठाकिसी के वास्ते ये...

आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख - aaj sadakon par likhe hain saikadon naare na dekh -- दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख,पर अन्धेरा देख तू आकाश के तारे न देख ।एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआ,आज अपने बाज़ुओं को देख पतवारें न देख ।अब यकीनन ठोस है धरती हक़ीक़त की तरह,यह हक़ीक़त देख लेकिन ख़ौफ़ के मारे न देख ।वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझे,कट चुके जो हाथ उन हाथों में तलवारें न देख ।ये धुन्धलका...

तेज़ी से एक दर्द - tezee se ek dard -- दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
तेज़ी से एक दर्दमन में जागामैंने पी लिया,छोटी सी एक ख़ुशीअधरों में आईमैंने उसको फैला दिया,मुझको सन्तोष हुआऔर लगा –-हर छोटे कोबड़ा करना धर्म है ।  - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kuma...

नज़र-नवाज़ नज़ारा बदल न जाए कहीं- nazar-navaaz nazaara badal na jae kaheen- - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
नज़र-नवाज़ नज़ारा बदल न जाए कहींजरा-सी बात है मुँह से निकल न जाए कहींवो देखते है तो लगता है नींव हिलती हैमेरे बयान को बंदिश निगल न जाए कहींयों मुझको ख़ुद पे बहुत ऐतबार है लेकिनये बर्फ आंच के आगे पिघल न जाए कहींचले हवा तो किवाड़ों को बंद कर लेनाये गरम राख़ शरारों में ढल न जाए कहींतमाम रात तेरे मैकदे में मय पी हैतमाम उम्र...

पक गई हैं आदतें बातों से सर होंगी नहीं - pak gaee hain aadaten baaton se sar hongee nahin- - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 1 Comments
पक गई हैं आदतें बातों से सर होंगी नहींकोई हंगामा करो ऐसे गुज़र होगी नहींइन ठिठुरती उँगलियों को इस लपट पर सेंक लोधूप अब घर की किसी दीवार पर होगी नहींबूँद टपकी थी मगर वो बूँदो—बारिश और हैऐसी बारिश की कभी उनको ख़बर होगी नहींआज मेरा साथ दो वैसे मुझे मालूम हैपत्थरों में चीख़ हर्गिज़ कारगर होगी नहींआपके टुकड़ों के टुकड़े कर...

ये शफ़क़ शाम हो रही है अब - ye shafaq shaam ho rahee hai ab -- दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
ये शफ़क़ शाम हो रही है अबऔर हर गाम हो रही है अबजिस तबाही से लोग बचते थेवो सरे आम हो रही है अबअज़मते—मुल्क इस सियासत केहाथ नीलाम हो रही है अबशब ग़नीमत थी, लोग कहते हैंसुब्ह बदनाम हो रही है अबजो किरन थी किसी दरीचे कीमरक़ज़े बाम हो रही है अबतिश्ना—लब तेरी फुसफुसाहट भीएक पैग़ाम हो रही है अब - दुष्यंत कुमार - Dushyant Ku...

एक गुड़िया की कई कठपुतलियों में जान है - ek gudiya kee kaee kathaputaliyon mein jaan hai - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
एक गुड़िया की कई कठपुतलियों में जान हैआज शायर यह तमाशा देखकर हैरान हैख़ास सड़कें बंद हैं तब से मरम्मत के लिएयह हमारे वक़्त की सबसे सही पहचान हैएक बूढ़ा आदमी है मुल्क़ में या यों कहो—इस अँधेरी कोठरी में एक रौशनदान हैमस्लहत—आमेज़ होते हैं सियासत के क़दमतू न समझेगा सियासत, तू अभी नादान हैइस क़दर पाबन्दी—ए—मज़हब कि सदक़े...

सूरज जब - sooraj jab -- दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
सूरज जबकिरणों के बीज-रत्नधरती के प्रांगण मेंबोकरहारा-थकास्वेद-युक्तरक्त-वदनसिन्धु के किनारेनिज थकन मिटाने कोनए गीत पाने कोआया,तब निर्मम उस सिन्धु ने डुबो दिया,ऊपर से लहरों की अँधियाली चादर ली ढाँपऔर शान्त हो रहा।लज्जा से अरुण हुईतरुण दिशाओं नेआवरण हटाकर निहारा दृश्य निर्मम यह!क्रोध से हिमालय के वंश-वर्त्तियों नेमुख-लाल...

जा तेरे स्वप्न बड़े हों - ja tere svapn bade hon -- दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
जा तेरे स्वप्न बड़े हों।भावना की गोद से उतर करजल्द पृथ्वी पर चलना सीखें।चाँद तारों सी अप्राप्य ऊचाँइयों के लियेरूठना मचलना सीखें।हँसेंमुस्कुराएँगाएँ।हर दीये की रोशनी देखकर ललचायेंउँगली जलाएँ।अपने पाँव पर खड़े हों।जा तेरे स्वप्न बड़े हों। - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kuma...

सूने घर में किस तरह सहेजूँ मन को - soone ghar mein kis tarah sahejoon man ko - - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

September 05, 2019 0 Comments
सूने घर में किस तरह सहेजूँ मन को।पहले तो लगा कि अब आईं तुम, आकरअब हँसी की लहरें काँपी दीवारों परखिड़कियाँ खुलीं अब लिये किसी आनन को।पर कोई आया गया न कोई बोलाखुद मैंने ही घर का दरवाजा खोलाआदतवश आवाजें दीं सूनेपन को।फिर घर की खामोशी भर आई मन मेंचूड़ियाँ खनकती नहीं कहीं आँगन मेंउच्छ्वास छोड़कर ताका शून्य गगन को।पूरा घर...

Wednesday, September 4, 2019

आओ, प्यारे तारो आओ - aao, pyaare taaro aao -- महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

September 04, 2019 0 Comments
आओ, प्यारे तारो आओ तुम्हें झुलाऊँगी झूले में, तुम्हें सुलाऊँगी फूलों में, तुम जुगनू से उड़कर आओ, मेरे आँगन को चमकाओ। - महादेवी वर्मा -mahadevi Verma ...

डाल हिलाकर आम बुलाता - daal hilaakar aam bulaata - - महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

September 04, 2019 0 Comments
डाल हिलाकर आम बुलाता तब कोयल आती है। नहीं चाहिए इसको तबला, नहीं चाहिए हारमोनियम, छिप-छिपकर पत्तों में यह तो गीत नया गाती है! चिक्-चिक् मत करना रे निक्की, भौंक न रोजी रानी, गाता एक, सुना करते हैं सब तो उसकी बानी। आम लगेंगे इसीलिए यह गाती मंगल गाना, आम मिलेंगे सबको, इसको नहीं एक भी खाना। सबके सुख के...

ठंडे पानी से नहलातीं, - thande paanee se nahalaateen,- - महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

September 04, 2019 0 Comments
ठंडे पानी से नहलातीं, ठंडा चंदन इन्हें लगातीं, इनका भोग हमें दे जातीं, फिर भी कभी नहीं बोले हैं। माँ के ठाकुर जी भोले हैं। - महादेवी वर्मा -mahadevi Verma ...

मेह बरसने वाला है - meh barasane vaala hai - - महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

September 04, 2019 0 Comments
मेह बरसने वाला है मेरी खिड़की में आ जा तितली। बाहर जब पर होंगे गीले, धुल जाएँगे रंग सजीले, झड़ जाएगा फूल, न तुझको बचा सकेगा छोटी तितली, खिड़की में तू आ जा तितली! नन्हे तुझे पकड़ पाएगा, डिब्बी में रख ले जाएगा, फिर किताब में चिपकाएगा मर जाएगी तब तू तितली, खिड़की में तू छिप जा तितली। - महादेवी वर्मा...

बया हमारी चिड़िया रानी - baya hamaaree chidiya raanee - - महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

September 04, 2019 0 Comments
बया हमारी चिड़िया रानी! तिनके लाकर महल बनाती, ऊँची डाली पर लटकाती, खेतों से फिर दाना लाती, नदियों से भर लाती पानी। तुझको दूर न जाने देंगे, दानों से आँगन भर देंगे, और हौज़ में भर देंगे हम- मीठा-मीठा ठंडा पानी। फिर अंडे सेयेगी तू जब, निकलेंगे नन्हे बच्चे तब, हम आकर बारी-बारी से कर लेंगे उनकी निगरानी। फिर...

मधुरिमा के, मधु के अवतार- madhurima ke, madhu ke avataar-- - महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

September 04, 2019 0 Comments
मधुरिमा के, मधु के अवतार सुधा से, सुषमा से, छविमान, आंसुओं में सहमे अभिराम तारकों से हे मूक अजान! सीख कर मुस्काने की बान कहां आऎ हो कोमल प्राण! स्निग्ध रजनी से लेकर हास रूप से भर कर सारे अंग, नये पल्लव का घूंघट डाल अछूता ले अपना मकरंद, ढूढं पाया कैसे यह देश? स्वर्ग के हे मोहक संदेश! रजत किरणों से नैन...

क्या पूजन क्या अर्चन रे - kya poojan kya archan re -- महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

September 04, 2019 0 Comments
क्या पूजन क्या अर्चन रे! उस असीम का सुंदर मंदिर मेरा लघुतम जीवन रे! मेरी श्वासें करती रहतीं नित प्रिय का अभिनंदन रे! पद रज को धोने उमड़े आते लोचन में जल कण रे! अक्षत पुलकित रोम मधुर मेरी पीड़ा का चंदन रे! स्नेह भरा जलता है झिलमिल मेरा यह दीपक मन रे! मेरे दृग के तारक में नव उत्पल का उन्मीलन रे! धूप बने उड़ते...

वे मुस्काते फूल, नहीं - ve muskaate phool, nahin- - महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

September 04, 2019 0 Comments
वे मुस्काते फूल, नहीं  जिनको आता है मुर्झाना,  वे तारों के दीप, नहीं  जिनको भाता है बुझ जाना;  वे नीलम के मेघ, नहीं  जिनको है घुल जाने की चाह  वह अनन्त रितुराज,नहीं  जिसने देखी जाने की राह|  वे सूने से नयन,नहीं  जिनमें बनते आँसू मोती,  वह प्राणों की सेज,नही  जिसमें...

उर तिमिरमय घर तिमिरमय - ur timiramay ghar timiramay - - महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

September 04, 2019 0 Comments
उर तिमिरमय घर तिमिरमय चल सजनि दीपक बार ले! राह में रो रो गये हैं रात और विहान तेरे काँच से टूटे पड़े यह  स्वप्न, भूलें, मान तेरे; फूलप्रिय पथ शूलमय पलकें बिछा सुकुमार ले! तृषित जीवन में घिर घन- बन; उड़े जो श्वास उर से; पलक-सीपी में हुए मुक्ता सुकोमल और बरसे; मिट रहे नित धूलि में  तू गूँथ इनका...

शलभ मैं शपमय वर हूँ - shalabh main shapamay var hoon - - महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

September 04, 2019 0 Comments
शलभ मैं शपमय वर हूँ! किसी का दीप निष्ठुर हूँ! ताज है जलती शिखा; चिनगारियाँ शृंगारमाला; ज्वाल अक्षय कोष सी अंगार मेरी रंगशाला ; नाश में जीवित किसी की साध सुन्दर हूँ! नयन में रह किन्तु जलती पुतलियाँ आगार होंगी; प्राण में कैसे बसाऊँ कठिन अग्नि समाधि होगी; फिर कहाँ पालूँ तुझे मैं मृत्यु-मन्दिर हूँ! हो रहे...

क्या जलने की रीति शलभ समझा दीपक जाना- kya jalane kee reeti shalabh samajha deepak jaana - - महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

September 04, 2019 0 Comments
क्या जलने की रीति शलभ समझा दीपक जाना घेरे हैं बंदी दीपक को  ज्वाला की वेला दीन शलभ भी दीप शिखा से सिर धुन धुन खेला इसको क्षण संताप भोर उसको भी बुझ जाना इसके झुलसे पंख धूम की उसके रेख रही इसमें वह उन्माद न उसमें  ज्वाला शेष रही जग इसको चिर तृप्त कहे या समझे पछताना प्रिय मेरा चिर दीप जिसे छू जल...

सजनि कौन तम में परिचित सा, सुधि सा, छाया सा, आता - sajani kaun tam mein parichit sa, sudhi sa, chhaaya sa, aata - - महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

September 04, 2019 0 Comments
सजनि कौन तम में परिचित सा, सुधि सा, छाया सा, आता? सूने में सस्मित चितवन से जीवन-दीप जला जाता! छू स्मृतियों के बाल जगाता, मूक वेदनायें दुलराता, हृततंत्री में स्वर भर जाता, बंद दृगों में, चूम सजल सपनों के चित्र बना जाता! पलकों में भर नवल नेह-कन प्राणों में पीड़ा की कसकन, श्वासों में आशा की कम्पन सजनि! मूक...

अलि अब सपने की बात- ali ab sapane kee baat-- महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

September 04, 2019 0 Comments
अलि अब सपने की बात- हो गया है वह मधु का प्रात! जब मुरली का मृदु पंचम स्वर, कर जाता मन पुलकित अस्थिर, कम्पित हो उठता सुख से भर, नव लतिका सा गात! जब उनकी चितवन का निर्झर, भर देता मधु से मानस-सर, स्मित से झरतीं किरणें झर झर, पीते दृग - जलजात! मिलन-इन्दु बुनता जीवन पर, विस्मृति के तारों से चादर, विपुल कल्पनाओं...

वे मधु दिन जिनकी स्मृतियों की - ve madhu din jinakee smrtiyon kee- - महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

September 04, 2019 0 Comments
वे मधु दिन जिनकी स्मृतियों की धुँधली रेखायें खोईं, चमक उठेंगे इन्द्रधनुष से मेरे विस्मृति के घन में! झंझा की पहली नीरवता- सी नीरव मेरी साधें, भर देंगी उन्माद प्रलय का मानस की लघु कम्पन में! सोते जो असंख्य बुदबुद् से बेसुध सुख मेरे सुकुमार; फूट पड़ेंगे दुख सागर की सिहरी धीमी स्पन्दन में! मूक हुआ जो शिशिर-निशा...

क्यों इन तारों को उलझाते - kyon in taaron ko ulajhaate -- महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

September 04, 2019 0 Comments
क्यों इन तारों को उलझाते? अनजाने ही प्राणों में क्यों आ आ कर फिर जाते? पल में रागों को झंकृत कर, फिर विराग का अस्फुट स्वर भर, मेरी लघु जीवन वीणा पर क्या यह अस्फुट गाते? लय में मेरा चिर करुणा-धन कम्पन में सपनों का स्पन्दन गीतों में भर चिर सुख चिर दुख कण कण में बिखराते! मेरे शैशव के मधु में घुल मेरे यौवन...

जो मुखरित कर जाती थीं - jo mukharit kar jaatee theen - - महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

September 04, 2019 0 Comments
जो मुखरित कर जाती थीं मेरा नीरव आवाहन, मैं नें दुर्बल प्राणों की वह आज सुला दी कंपन! थिरकन अपनी पुतली की भारी पलकों में बाँधी निस्पंद पड़ी हैं आँखें बरसाने वाली आँधी! जिसके निष्फल जीवन नें जल जल कर देखी राहें निर्वाण हुआ है देखो वह दीप लुटा कर चाहें! निर्घोष घटाओं में छिप तड़पन चपला सी सोती झंझा के उन्मादों...

मै अनंत पथ में लिखती जो - mai anant path mein likhatee jo - - महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

September 04, 2019 0 Comments
मै अनंत पथ में लिखती जो सस्मित सपनों की बाते उनको कभी न धो पायेंगी अपने आँसू से रातें! उड़् उड़ कर जो धूल करेगी मेघों का नभ में अभिषेक अमिट रहेगी उसके अंचल- में मेरी पीड़ा की रेख! तारों में प्रतिबिम्बित हो मुस्कायेंगी अनंत आँखें, हो कर सीमाहीन, शून्य में मँडरायेगी अभिलाषें! वीणा होगी मूक बजाने- वाला...

आँधी आई जोर शोर से - aandhee aaee jor shor se -- महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

September 04, 2019 0 Comments
आँधी आई जोर शोर से, डालें टूटी हैं झकोर से। उड़ा घोंसला अंडे फूटे, किससे दुख की बात कहेगी! अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी? हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं बेचारी को। पर वो चीं-चीं कर्राती है घर में तो वो नहीं रहेगी! घर में पेड़ कहाँ से लाएँ, कैसे यह घोंसला बनाएँ! कैसे फूटे अंडे जोड़े, किससे यह सब बात कहेगी! अब...

धूप सा तन दीप सी मैं - dhoop sa tan deep see main -- महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

September 04, 2019 0 Comments
धूप सा तन दीप सी मैं!  उड़ रहा नित एक सौरभ-धूम-लेखा में बिखर तन, खो रहा निज को अथक आलोक-सांसों में पिघल मन अश्रु से गीला सृजन-पल, औ' विसर्जन पुलक-उज्ज्वल, आ रही अविराम मिट मिट स्वजन ओर समीप सी मैं! सघन घन का चल तुरंगम चक्र झंझा के बनाये, रश्मि विद्युत ले प्रलय-रथ पर भले तुम श्रान्त आये, पंथ में मृदु...

स्वप्न से किसने जगाया - svapn se kisane jagaaya -- महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

September 04, 2019 0 Comments
स्वप्न से किसने जगाया? मैं सुरभि हूं।  छोड कोमल फूल का घर, ढूंढती हूं निर्झर। पूछती हूं नभ धरा से- क्या नहीं र्त्रतुराज आया? ंमैं र्त्रतुओं में न्यारा वसंत, मैं अग-जग का प्यारा वसंत। मेरी पगध्वनी सुन जग जागा, कण-कण ने छवि मधुरस मांगा। नव जीवन का संगीत बहा, पुलकों से भर आया दिगंत। मेरी स्वप्नों...

अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है - ashru yah paanee nahin hai, yah vyatha chandan nahin hai - - महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

September 04, 2019 0 Comments
अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है! यह न समझो देव पूजा के सजीले उपकरण ये, यह न मानो अमरता से माँगने आए शरण ये, स्वाति को खोजा नहीं है औ' न सीपी को पुकारा, मेघ से माँगा न जल, इनको न भाया सिंधु खारा! शुभ्र मानस से छलक आए तरल ये ज्वाल मोती, प्राण की निधियाँ अमोलक बेचने का धन नहीं है। अश्रु यह पानी नहीं...

प्रिय चिरंतन है सजनि- priy chirantan hai sajani- - महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

September 04, 2019 0 Comments
प्रिय चिरंतन है सजनि, क्षण-क्षण नवीन सुहासिनी मै! श्वास में मुझको छिपाकर वह असीम विशाल चिर घन शून्य में जब छा गया उसकी सजीली साध-सा बन, छिप कहाँ उसमें सकी बुझ-बुझ जली चल दामिनी मैं। छाँह को उसकी सजनि, नव आवरण अपना बनाकर धूलि में निज अश्रु बोने में पहर सूने बिताकर, प्रात में हँस छिप गई ले छलकते दृग-यामिनी...

मैं नीर भरी दुख की बदली - main neer bharee dukh kee badalee - महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

September 04, 2019 0 Comments
मैं नीर भरी दुख की बदली! स्पन्दन में चिर निस्पन्द बसा क्रन्दन में आहत विश्व हँसा नयनों में दीपक से जलते, पलकों में निर्झारिणी मचली! मेरा पग-पग संगीत भरा श्वासों से स्वप्न-पराग झरा नभ के नव रंग बुनते दुकूल छाया में मलय-बयार पली। मैं क्षितिज-भृकुटि पर घिर धूमिल चिन्ता का भार बनी अविरल रज-कण पर जल-कण हो...

मेरा सजल मुख देख लेते - mera sajal mukh dekh lete -- महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

September 04, 2019 0 Comments
मेरा सजल मुख देख लेते! यह करुण मुख देख लेता! सेतु शूलों का बना बाँधा विरह-वारीश का जल फूल की पलकें बनाकर प्यालियाँ बाँटा हलाहल! दुखमय सुख सुख भरा दुःख कौन लेता पूछ, जो तुम, ज्वाल-जल का देश देते! नयन की नीलम-तुला पर मोतियों से प्यार तोला, कर रहा व्यापार कब से मृत्यु से यह प्राण भोला! भ्रान्तिमय...

बताता जा रे अभिमानी - bataata ja re abhimaanee -- महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

September 04, 2019 0 Comments
बताता जा रे अभिमानी! कण-कण उर्वर करते लोचन स्पन्दन भर देता सूनापन जग का धन मेरा दुख निर्धन तेरे वैभव की भिक्षुक या कहलाऊँ रानी! बताता जा रे अभिमानी! दीपक-सा जलता अन्तस्तल संचित कर आँसू के बादल लिपटी है इससे प्रलयानिल, क्या यह दीप जलेगा तुझसे भर हिम का पानी? बताता जा रे अभिमानी! चाहा था तुझमें मिटना...

मधुर-मधुर मेरे दीपक जल - madhur-madhur mere deepak jal - - महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

September 04, 2019 0 Comments
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल! युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल प्रियतम का पथ आलोकित कर! सौरभ फैला विपुल धूप बन मृदुल मोम-सा घुल रे, मृदु-तन! दे प्रकाश का सिन्धु अपरिमित, तेरे जीवन का अणु गल-गल पुलक-पुलक मेरे दीपक जल! तारे शीतल कोमल नूतन माँग रहे तुझसे ज्वाला कण; विश्व-शलभ सिर धुन कहता मैं हाय, न जल पाया तुझमें...

मैं बनी मधुमास आली - main banee madhumaas aalee - - महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

September 04, 2019 0 Comments
मैं बनी मधुमास आली! आज मधुर विषाद की घिर करुण आई यामिनी, बरस सुधि के इन्दु से छिटकी पुलक की चाँदनी उमड़ आई री, दृगों में  सजनि, कालिन्दी निराली! रजत स्वप्नों में उदित अपलक विरल तारावली, जाग सुक-पिक ने अचानक मदिर पंचम तान लीं; बह चली निश्वास की मृदु वात मलय-निकुंज-वाली! सजल रोमों में बिछे है पाँवड़े...

विरह का जलजात जीवन, विरह का जलजात - virah ka jalajaat jeevan, virah ka jalajaat! - - महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

September 04, 2019 0 Comments
विरह का जलजात जीवन, विरह का जलजात! वेदना में जन्म करुणा में मिला आवास अश्रु चुनता दिवस इसका; अश्रु गिनती रात; जीवन विरह का जलजात! आँसुओं का कोष उर, दृग अश्रु की टकसाल, तरल जल-कण से बने घन-सा क्षणिक मृदुगात; जीवन विरह का जलजात! अश्रु से मधुकण लुटाता आ यहाँ मधुमास, अश्रु ही की हाट बन आती करुण...

पथ देख बिता दी रैन - path dekh bita dee rain - - महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

September 04, 2019 0 Comments
पथ देख बिता दी रैन मैं प्रिय पहचानी नहीं! तम ने धोया नभ-पंथ सुवासित हिमजल से; सूने आँगन में दीप जला दिये झिल-मिल से; आ प्रात बुझा गया कौन अपरिचित, जानी नहीं! मैं प्रिय पहचानी नहीं! धर कनक-थाल में मेघ सुनहला पाटल सा, कर बालारूण का कलश विहग-रव मंगल सा, आया प्रिय-पथ से प्रात- सुनायी कहानी नहीं! मैं प्रिय...

चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना - chir sajag aankhen uneendee aaj kaisa vyast baana -- महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

September 04, 2019 0 Comments
चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना! जाग तुझको दूर जाना! अचल हिमगिरि के हॄदय में आज चाहे कम्प हो ले! या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले; आज पी आलोक को ड़ोले तिमिर की घोर छाया जाग या विद्युत शिखाओं में निठुर तूफान बोले! पर तुझे है नाश पथ पर चिन्ह अपने छोड़ आना! जाग तुझको दूर जाना! बाँध लेंगे...

बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ - been bhee hoon main tumhaaree raaginee bhee hoon - - महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

September 04, 2019 0 Comments
बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ! नींद थी मेरी अचल निस्पन्द कण कण में, प्रथम जागृति थी जगत के प्रथम स्पन्दन में, प्रलय में मेरा पता पदचिन्‍ह जीवन में, शाप हूँ जो बन गया वरदान बंधन में कूल भी हूँ कूलहीन प्रवाहिनी भी हूँ! बीन भी हूँ मैं... नयन में जिसके जलद वह तृषित चातक हूँ, शलभ जिसके प्राण...

तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या! - tum mujhamen priy, phir parichay kya! - महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

September 04, 2019 0 Comments
तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या! तारक में छवि, प्राणों में स्मृति पलकों में नीरव पद की गति लघु उर में पुलकों की संस्कृति भर लाई हूँ तेरी चंचल और करूँ जग में संचय क्या? तेरा मुख सहास अरूणोदय परछाई रजनी विषादमय वह जागृति वह नींद स्वप्नमय, खेल-खेल, थक-थक सोने दे मैं समझूँगी सृष्टि प्रलय क्या? तेरा अधर...
Page 1 of 399123399Next

UP Free Scooty Scheme 2025 कैसे करें यूपी फ्री स्कूटी के लिए आवेदन यहाँ देखें सम्पूर्ण जानकारी

 UP Free Scooty Scheme 2025 कैसे करें यूपी फ्री स्कूटी के लिए आवेदन यहाँ देखें सम्पूर्ण जानकारी उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य की छात्राओं के ल...