घंटियों की आवाज़ कानों तक पहुँचती है- ghantiyon kee aavaaz kaanon tak pahunchatee hai-- दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar
घंटियों की आवाज़ कानों तक पहुँचती है
एक नदी जैसे दहानों तक पहुँचती है
अब इसे क्या नाम दें, ये बेल देखो तो
कल उगी थी आज शानों तक पहुँचती है
खिड़कियां, नाचीज़ गलियों से मुख़ातिब है
अब लपट शायद मकानों तक पहुँचती है
आशियाने को सजाओ तो समझ लेना,
बरक कैसे आशियानों तक पहुँचती है
तुम हमेशा बदहवासी में गुज़रते हो,
बात अपनों से बिगानों तक पहुँचती है
सिर्फ़ आंखें ही बची हैं चँद चेहरों में
बेज़ुबां सूरत, जुबानों तक पहुँचती है
अब मुअज़न की सदाएं कौन सुनता है
चीख़-चिल्लाहट अज़ानों तक पहुँचती है
- दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar
एक नदी जैसे दहानों तक पहुँचती है
अब इसे क्या नाम दें, ये बेल देखो तो
कल उगी थी आज शानों तक पहुँचती है
खिड़कियां, नाचीज़ गलियों से मुख़ातिब है
अब लपट शायद मकानों तक पहुँचती है
आशियाने को सजाओ तो समझ लेना,
बरक कैसे आशियानों तक पहुँचती है
तुम हमेशा बदहवासी में गुज़रते हो,
बात अपनों से बिगानों तक पहुँचती है
सिर्फ़ आंखें ही बची हैं चँद चेहरों में
बेज़ुबां सूरत, जुबानों तक पहुँचती है
अब मुअज़न की सदाएं कौन सुनता है
चीख़-चिल्लाहट अज़ानों तक पहुँचती है
- दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar
Comments
Post a Comment