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Thursday, September 5, 2019

हालाते जिस्म, सूरती—जाँ और भी ख़राब -haalaate jism, sooratee—jaan aur bhee kharaab - दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar -

हालाते जिस्म, सूरती—जाँ और भी ख़राब

चारों तरफ़ ख़राब यहाँ और भी ख़राब


नज़रों में आ रहे हैं नज़ारे बहुत बुरे

होंठों पे आ रही है ज़ुबाँ और भी ख़राब


पाबंद हो रही है रवायत से रौशनी

चिमनी में घुट रहा है धुआँ और भी ख़राब


मूरत सँवारने से बिगड़ती चली गई

पहले से हो गया है जहाँ और भी ख़राब


रौशन हुए चराग तो आँखें नहीं रहीं

अंधों को रौशनी का गुमाँ और भी ख़राब


आगे निकल गए हैं घिसटते हुए क़दम

राहों में रह गए हैं निशाँ और भी ख़राब


सोचा था उनके देश में मँहगी है ज़िंदगी

पर ज़िंदगी का भाव वहाँ और भी ख़राब

- दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar

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