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Friday, July 30, 2021

मुस्तफ़ा जैदी | Mustafa Jaidi | Shayari | Love Shayari | Poemgazalshayari.in

July 30, 2021 0 Comments

मुस्तफ़ा जैदी | Mustafa Jaidi | Shayari | Love Shayari


 हम अंजुमन में सबकी तरफ़ देखते रहे 

अपनी तरह से कोई अकेला नहीं मिला 


अब तो चुभती है हवा बर्फ़ के मैदानों की 

इन दिनों जिस्म के एहसास से जलता था बदन


कच्चे घड़े ने जीत ली नद्दी चढ़ी हुई 

मज़बूत क़श्तियों को किनारा नहीं मिला 

ऐ कि अब भूल गया रंगे-हिना भी तेरा 

ख़त कभी ख़ून से तहरीर हुआ करते थे 


कभी झिड़की से कभी प्यार से समझाते रहे 

हम गई रात पे दिल को लिए बहलाते रहे 


रूह के इस वीराने में तेरी याद ही सब कुछ थी 

आज तो वो भी यूँ गुज़री जैसे ग़रीबों का त्यौहार 

सीने में ख़िज़ां आंखों में बरसात रही है 

इस इश्क़ में हर फ़स्ल की सौग़ात रही है 


ढलेगी रात आएगी सहर आहिस्ता- आहिस्ता 

पियो इन अंखड़ियों के नाम पर आहिस्ता- आहिस्ता 


दिखा देना उसे ज़ख़्मे-जिगर आहिस्ता- आहिस्ता 

समझकर, सोचकर, पहचानकर आहिस्ता- आहिस्ता 

अभी तारों से खेलो चांदनी से दिल बहलाओ 

मिलेगी उसके चेहरे की सहर आहिस्ता-आहिस्ता 


सूफ़ी का ख़ुदा और था शायर का ख़ुदा और 

तुम साथ रहे हो तो करामात रही है 


इतना तो समझ रोज़ के बढ़ते हुए फ़ित्ने 

हम कुछ नहीं बोले तो तिरी बात रही है 

किसी जुल्फ़ को सदा दो, किसी आंख को पुकारो

बड़ी धूप पड़ रही है कोई सायबां नहीं है 


इन्हीं पत्थरों से चलकर अगर आ सको तो आओ 

मेरे घर के रास्ते में कोई कहकशां नहीं है 


- मुस्तफ़ा जैदी | Mustafa Jaidi | Shayari | Love Shayari


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Sunday, July 4, 2021

कुछ पहले इन आँखों आगे क्या क्या न नज़ारा गुज़रे था | फ़ैज़ अहमज फ़ैज़ | Faiz Ahamad Faiz | फ़ैज़ अहमज फ़ैज़ shayari| Poemgazalshayari.in

July 04, 2021 0 Comments

फ़ैज़ अहमज फ़ैज़  | Faiz Ahamad Faiz | फ़ैज़ अहमज फ़ैज़ shayari| Poemgazalshayari.in

 

कुछ पहले इन आँखों आगे क्या क्या न नज़ारा गुज़रे था 

क्या रौशन हो जाती थी गली जब यार हमारा गुज़रे था 

थे कितने अच्छे लोग कि जिन को अपने ग़म से फ़ुर्सत थी 

सब पूछें थे अहवाल जो कोई दर्द का मारा गुज़रे था 


अब के ख़िज़ाँ ऐसी ठहरी वो सारे ज़माने भूल गए 

जब मौसम-ए-गुल हर फेरे में आ आ के दोबारा गुज़रे था 

थी यारों की बोहतात तो हम अग़्यार से भी बेज़ार न थे 

जब मिल बैठे तो दुश्मन का भी साथ गवारा गुज़रे था 


अब तो हाथ सुझाई न देवे लेकिन अब से पहले तो 

आँख उठते ही एक नज़र में आलम सारा गुज़रे था 


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आए कुछ अब्र कुछ शराब आए | फ़ैज़ अहमज फ़ैज़ | Faiz Ahamad Faiz | फ़ैज़ अहमज फ़ैज़ shayari Poemgazalshayari.in

July 04, 2021 1 Comments

फ़ैज़ अहमज फ़ैज़  | Faiz Ahamad Faiz | फ़ैज़ अहमज फ़ैज़ shayari Poemgazalshayari.in


 आए कुछ अब्र कुछ शराब आए 

इस के बा'द आए जो अज़ाब आए 

बाम-ए-मीना से माहताब उतरे 

दस्त-ए-साक़ी में आफ़्ताब आए 


हर रग-ए-ख़ूँ में फिर चराग़ाँ हो 

सामने फिर वो बे-नक़ाब आए 

उम्र के हर वरक़ पे दिल की नज़र 

तेरी मेहर-ओ-वफ़ा के बाब आए 


कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब 

आज तुम याद बे-हिसाब आए 

न गई तेरे ग़म की सरदारी 

दिल में यूँ रोज़ इंक़लाब आए 


जल उठे बज़्म-ए-ग़ैर के दर-ओ-बाम 

जब भी हम ख़ानुमाँ-ख़राब आए 

इस तरह अपनी ख़ामुशी गूँजी 

गोया हर सम्त से जवाब आए 


'फ़ैज़' थी राह सर-ब-सर मंज़िल 

हम जहाँ पहुँचे कामयाब आए 


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अब जो कोई पूछे भी तो उस से क्या शरह-ए-हालात करें | फ़ैज़ अहमज फ़ैज़ | Faiz Ahamad Faiz | फ़ैज़ अहमज फ़ैज़ shayari Poemgazalshayari.in

July 04, 2021 0 Comments

फ़ैज़ अहमज फ़ैज़  | Faiz Ahamad Faiz | फ़ैज़ अहमज फ़ैज़ shayari Poemgazalshayari.in


 अब जो कोई पूछे भी तो उस से क्या शरह-ए-हालात करें 

दिल ठहरे तो दर्द सुनाएँ दर्द थमे तो बात करें 

शाम हुई फिर जोश-ए-क़दह ने बज़्म-ए-हरीफ़ाँ रौशन की 

घर को आग लगाएँ हम भी रौशन अपनी रात करें 


क़त्ल-ए-दिल-ओ-जाँ अपने सर है अपना लहू अपनी गर्दन पे 

मोहर-ब-लब बैठे हैं किस का शिकवा किस के साथ करें 

हिज्र में शब भर दर्द-ओ-तलब के चाँद सितारे साथ रहे 

सुब्ह की वीरानी में यारो कैसे बसर औक़ात करें 

 

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July 04, 2021 0 Comments

 फ़ैज़ अहमज फ़ैज़  | Faiz Ahamad Faiz | फ़ैज़ अहमज फ़ैज़ shayari 


अब के बरस दस्तूर-ए-सितम में क्या क्या बाब ईज़ाद हुए 


जो क़ातिल थे मक़्तूल हुए जो सैद थे अब सय्याद हुए 


पहले भी ख़िज़ाँ में बाग़ उजड़े पर यूँ नहीं जैसे अब के बरस 


सारे बूटे पत्ता पत्ता रविश रविश बर्बाद हुए 


पहले भी तवाफ़-ए-शम्-ए-वफ़ा थी रस्म मोहब्बत वालों की 


हम तुम से पहले भी यहाँ 'मंसूर' हुए 'फ़रहाद' हुए 


इक गुल के मुरझाने पर क्या गुलशन में कोहराम मचा 


इक चेहरा कुम्हला जाने से कितने दिल नाशाद हुए 


'फ़ैज़' न हम 'यूसुफ़' न कोई 'याक़ूब' जो हम को याद करे 


अपनी क्या कनआँ में रहे या मिस्र में जा आबाद हुए 


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