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Thursday, September 24, 2020

बड़ेन सों जान पहिचान कै रहीम काह - baden son jaan pahichaan kai raheem kaah -Rahim- abdul rahim khan-i-khana रहीम- अब्दुल रहिम खान-ए-ख़ाना

September 24, 2020 0 Comments

 बड़ेन सों जान पहिचान कै रहीम काह,

जो पै करतार ही न सुख देनहार है।

सीत-हर सूरज सों नेह कियो याही हेत,

ताऊ पै कमल जारि डारत तुषार है॥

नीरनिधि माँहि धस्यो, शंकर के सीस बस्यो,

तऊ ना कलंक नस्यो, ससि में सदा रहै।

बड़ो रीझिवार है, चकोर दरबार है,

कलानिधि सो यार, तऊ चाखत अँगार है॥


Rahim- abdul rahim khan-i-khana

रहीम- अब्दुल रहिम खान-ए-ख़ाना



पट चाहे तन, पेट चाहत छदन - pat chaahe tan, pet chaahat chhadan -

September 24, 2020 0 Comments

 पट चाहे तन, पेट चाहत छदन, मन

चाहत है धन, जेती संपदा सराहिबी।

तेरोई कहाय कै ’रहीम’ कहै दीनबंधु

आपनी बिपत्ति जाय काके द्वार काहिबी॥

पेट भर खायो चाहे, उद्यम बनायो चाहे,

कुटुंब जियायो चाहे काढ़ि गुन लाहिबी।

जीविका हमारी जो पै औरन के कर डारो,

ब्रज के बिहारी तौ तिहारी कहाँ साहिबी॥


Rahim- abdul rahim khan-i-khana

रहीम- अब्दुल रहिम खान-ए-ख़ाना



अति अनियारे मानौ सान दै सुधारे - Ati aniyārē mānau sāna dai sudhārē -Rahim- abdul rahim khan-i-khana रहीम- अब्दुल रहिम खान-ए-ख़ाना

September 24, 2020 0 Comments

 अति अनियारे मानौ सान दै सुधारे,

महा विष के विषारे ये करत पर-घात हैं।

ऐसे अपराधी देख अगम अगाधी यहै,

साधना जो साधी हरि हिय में अन्हात हैं॥

बार बार बोरे याते लाल लाल डोरे भये,

तौहू तो ’रहीम’ थोरे बिधि न सकात हैं।

घाइक घनेरे दुखदाइक हैं मेरे नित,

नैन बान तेरे उर बेधि बेधि जात हैं॥


Rahim- abdul rahim khan-i-khana

रहीम- अब्दुल रहिम खान-ए-ख़ाना



Friday, September 18, 2020

हर गाम पे हुशियार बनारस की गली में - har gaam pe hushiyaar banaaras kee galee mein -नज़ीर बनारसी - Nazir Banarsi

September 18, 2020 0 Comments

 हर गाम पे हुशियार बनारस की गली में

फ़ितने भी हैं बेदार बनारस की गली में


ऐसा भी है बाज़ार बनारस की गली में

बिक जाएँ ख़रीदार बनारस की गली में


हुशियारी से रहना नहीं आता जिन्हें इस पार

हो जाते हैं उस पार बनारस की गली में


सड़कों पर दिखाओगे अगर अपनी रईसी

लुट जाओगे सरकार, बनारस की गली में


दुकान पे रुकिएगा तो फिर आपके पीछे

लग जाएँगे दो-चार बनारस की गली में


हैरत का यह आलम है कि हर देखने वाला

है नक़्श ब दीवार बनारस की गली में


मिलता है निगाहों को सुकूँ हृदय को आराम

क्या प्रेम है क्या प्यार बनारस की गली में


हर सन्त के, साधु के, ऋषि और मुनि के

सपने हुए साकार बनारस की गली में


शंकर की जटाओं की तरह साया फ़िगन है

हर साया-ए-दीवार बनारस की गली में


गर स्वर्ग में जाना हो तो जी खोल के ख़रचो

मुक्ति का है व्योपार बनारस की गली में।


नज़ीर बनारसी - Nazir Banarsi


बुझा है दिल भरी महफ़िल में रौशनी देकर - bujha hai dil bharee mahafil mein raushanee dekar -नज़ीर बनारसी - Nazir Banarsi

September 18, 2020 0 Comments

 बुझा है दिल भरी महफ़िल में रौशनी देकर

मरूँगा भी तो हज़ारों को ज़िन्दगी देकर


क़दम-क़दम पे रहे अपनी आबरू का ख़याल

गई तो हाथ न आएगी जान भी देकर


बुज़ुर्गवार ने इसके लिए तो कुछ न कहा

गए हैं मुझको दुआ-ए-सलामती देकर


हमारी तल्ख़-नवाई को मौत आ न सकी

किसी ने देख लिया हमको ज़हर भी देकर


न रस्मे दोस्ती उठ जाए सारी दुनिया से

उठा न बज़्म से इल्ज़ामे दुश्मनी देकर


तिरे सिवा कोई क़ीमत चुका नहीं सकता

लिया है ग़म तिरा दो नयन की ख़ुशी देकर



नज़ीर बनारसी - Nazir Banarsi


ख़मे मेहराबे हरम भी ख़मे अबू तो नहीं - khame meharaabe haram bhee khame aboo to nahin -नज़ीर बनारसी - Nazir Banarsi

September 18, 2020 0 Comments

 ख़मे मेहराबे हरम भी ख़मे अबू तो नहीं

कहीं काबे में भी काशी के सनम तू तो नहीं


तिरे आँचल में गमकती हुई क्या शै है बहार

उनके गेसू की चुराई हुई ख़ुशबू तो नहीं


कहते हैं क़तरा-ए-शबनम जिसे ऐ सुबह चमन

रात की आँख से टपका हुआ आँसू तो नहीं


इसको तो चाहिए इक उम्र सँवरने के लिए

ज़िन्दगी है तिरा उलझा हुआ गेसू तो नहीं


हिन्दुओं को तो यक़ीं हैं कि मुसलमाँ है 'नज़ीर'

कुछ मुसलमाँ हैं जिन्हें शक है कि हिन्दू तो नहीं ।



नज़ीर बनारसी - Nazir Banarsi


इक रात में सौ बार जला और बुझा हूँ - ik raat mein sau baar jala aur bujha hoon -नज़ीर बनारसी - Nazir Banarsi

September 18, 2020 0 Comments

 इक रात में सौ बार जला और बुझा हूँ

मुफ़लिस का दिया हूँ मगर आँधी से लड़ा हूँ


जो कहना हो कहिए कि अभी जाग रहा हूँ

सोऊँगा तो सो जाऊँगा दिन भर का थका हूँ


कंदील समझ कर कोई सर काट न ले जाए

ताजिर हूँ उजाले का अँधेरे में खड़ा हूँ


सब एक नज़र फेंक के बढ़ जाते हैं आगे

मैं वक़्त के शोकेस में चुपचाप खड़ा हूँ


वो आईना हूँ जो कभी कमरे में सजा था

अब गिर के जो टूटा हूँ तो रस्ते में पड़ा हूँ


दुनिया का कोई हादसा ख़ाली नहीं मुझसे

मैं ख़ाक हूँ, मैं आग हूँ, पानी हूँ, हवा हूँ


मिल जाऊँगा दरिया में तो हो जाऊँगा दरिया

सिर्फ़ इसलिए क़तरा हूँ कि मैं दरिया से जुदा हूँ


हर दौर ने बख़्शी मुझे मेराजे मौहब्बत

नेज़े पे चढ़ा हूँ कभी सूलह पे चढ़ा हूँ


दुनिया से निराली है 'नज़ीर' अपनी कहानी

अंगारों से बच निकला हूँ फूलों से जला हूँ



नज़ीर बनारसी - Nazir Banarsi


बुतख़ाना नया है न ख़ुदाख़ाना नया है - butakhaana naya hai na khudaakhaana naya hai -नज़ीर बनारसी - Nazir Banarsi

September 18, 2020 0 Comments

 बुतख़ाना नया है न ख़ुदाख़ाना नया है

जज़्बा है अक़ीदत का जो रोज़ाना नया है


इक रंग पे रहता ही नहीं रंगे ज़माना

जब देखिए तब जल्वाए जानानां नया है


दम ले लो तमाज़त[3] की सताई हुई रूहो

पलक की घनी छाँव में ख़सख़ाना नया है


रहने दो अभी साया-ए-गेसू ही में इसको

मुमकिन है सँभल जाए ये दीवाना नया है


बेशीशा-ओ-पैमाना भी चल जाती है अक्सर

इक अपना टहलता हुआ मैख़ाना नया है


बुत कोई नया हो तो बता मुझको बरहमन

ये तो मुझे मालूम है बुतख़ाना नया है


जब थोड़ी-सी ले लीजिए, हो जाता है दिल साफ़

जब गर्द हटा दीजिए पैमाना नया है


काशी का मुसलमाँ है 'नज़ीर' उससे भी मिलिए

उसका भी एक अन्दाज़ फ़क़ीराना नया है



नज़ीर बनारसी - Nazir Banarsi


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