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Friday, September 18, 2020

बुतख़ाना नया है न ख़ुदाख़ाना नया है - butakhaana naya hai na khudaakhaana naya hai -नज़ीर बनारसी - Nazir Banarsi

 बुतख़ाना नया है न ख़ुदाख़ाना नया है

जज़्बा है अक़ीदत का जो रोज़ाना नया है


इक रंग पे रहता ही नहीं रंगे ज़माना

जब देखिए तब जल्वाए जानानां नया है


दम ले लो तमाज़त[3] की सताई हुई रूहो

पलक की घनी छाँव में ख़सख़ाना नया है


रहने दो अभी साया-ए-गेसू ही में इसको

मुमकिन है सँभल जाए ये दीवाना नया है


बेशीशा-ओ-पैमाना भी चल जाती है अक्सर

इक अपना टहलता हुआ मैख़ाना नया है


बुत कोई नया हो तो बता मुझको बरहमन

ये तो मुझे मालूम है बुतख़ाना नया है


जब थोड़ी-सी ले लीजिए, हो जाता है दिल साफ़

जब गर्द हटा दीजिए पैमाना नया है


काशी का मुसलमाँ है 'नज़ीर' उससे भी मिलिए

उसका भी एक अन्दाज़ फ़क़ीराना नया है



नज़ीर बनारसी - Nazir Banarsi


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