प्रिय दोस्तों! हमारा उद्देश्य आपके लिए किसी भी पाठ्य को सरलतम रूप देकर प्रस्तुत करना है, हम इसको बेहतर बनाने पर कार्य कर रहे है, हम आपके धैर्य की प्रशंसा करते है| मुक्त ज्ञानकोष, वेब स्रोतों और उन सभी पाठ्य पुस्तकों का मैं धन्यवाद देना चाहता हूँ, जहाँ से जानकारी प्राप्त कर इस लेख को लिखने में सहायता हुई है | धन्यवाद!

Saturday, February 29, 2020

मिट्टी का गहरा अंधकार - mittee ka gahara andhakaar -Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत #Poem_Gazal_Shayari

February 29, 2020 0 Comments
मिट्टी का गहरा अंधकार डूबा है उसमें एक बीज,-- वह खो न गया, मिट्टी न बना, कोदों, सरसों से क्षुद्र चीज! उस छोटे उर में छिपे हुए हैं डाल-पात औ’ स्कन्ध-मूल, गहरी हरीतिमा की संसृति, बहु रूप-रंग, फल और फूल! वह है मुट्ठी में बंद किए वट के पादप का महाकार, संसार एक! आश्चर्य एक! वह एक बूँद, सागर अपार! बन्दी उसमें जीवन-अंकुर जो...

अँधियाली घाटी में सहसा - andhiyaalee ghaatee mein sahasa -Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत #Poem_Gazal_Shayari

February 29, 2020 0 Comments
अँधियाली घाटी में सहसा हरित स्फुलिंग सदृश फूटा वह! वह उड़ता दीपक निशीथ का,-- तारा-सा आकर टूटा वह! जीवन के इस अन्धकार में मानव-आत्मा का प्रकाश-कण जग सहसा, ज्योतित कर देता मानस के चिर गुह्य कुंज-वन! Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत  #Poem_Gazal_Shayar...

तुम मांस-हीन, तुम रक्तहीन - tum maans-heen, tum raktaheen -Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत #Poem_Gazal_Shayari

February 29, 2020 0 Comments
तुम मांस-हीन, तुम रक्तहीन, हे अस्थि-शेष! तुम अस्थिहीन, तुम शुद्ध-बुद्ध आत्मा केवल, हे चिर पुराण, हे चिर नवीन! तुम पूर्ण इकाई जीवन की, जिसमें असार भव-शून्य लीन; आधार अमर, होगी जिस पर भावी की संस्कृति समासीन! तुम मांस, तुम्ही हो रक्त-अस्थि, निर्मित जिनसे नवयुग का तन, तुम धन्य! तुम्हारा नि:स्व-त्याग है विश्व-भोग...

सुन्दर हैं विहग, सुमन सुन्दर, - sundar hain vihag, suman sundar, - Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत #Poem_Gazal_Shayari

February 29, 2020 0 Comments
सुन्दर हैं विहग, सुमन सुन्दर, मानव! तुम सबसे सुन्दरतम, निर्मित सबकी तिल-सुषमा से तुम निखिल सृष्टि में चिर निरुपम! यौवन-ज्वाला से वेष्टित तन, मृदु-त्वच, सौन्दर्य-प्ररोह अंग, न्योछावर जिन पर निखिल प्रकृति, छाया-प्रकाश के रूप-रंग! धावित कृश नील शिराओं में मदिरा से मादक रुधिर-धार, आँखें हैं दो लावण्य-लोक, स्वर...

हाय! मृत्यु का ऐसा अमर, अपार्थिव पूजन? - haay! mrtyu ka aisa amar, apaarthiv poojan? - Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत #Poem_Gazal_Shayari

February 29, 2020 0 Comments
हाय! मृत्यु का ऐसा अमर, अपार्थिव पूजन? जब विषण्ण, निर्जीव पड़ा हो जग का जीवन! संग-सौध में हो शृंगार मरण का शोभन, नग्न, क्षुधातुर, वास-विहीन रहें जीवित जन? मानव! ऐसी भी विरक्ति क्या जीवन के प्रति? आत्मा का अपमान, प्रेत औ’ छाया से रति!! प्रेम-अर्चना यही, करें हम मरण को वरण? स्थापित कर कंकाल, भरें जीवन का प्रांगण? शव...

Friday, February 28, 2020

नीली, पीली औ’ चटकीली - neelee, peelee au’ chatakeelee - Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत #Poem_Gazal_Shayari

February 28, 2020 0 Comments
नीली, पीली औ’ चटकीली पंखों की प्रिय पँखड़ियाँ खोल, प्रिय तिली! फूल-सी ही फूली तुम किस सुख में हो रही डोल? चाँदी-सा फैला है प्रकाश, चंचल अंचल-सा मलयानिल, है दमक रही दोपहरी में गिरि-घाटी सौ रंगों में खिल! तुम मधु की कुसुमित अप्सरि-सी उड़-उड़ फूलों को बरसाती, शत इन्द्र चाप रच-रच प्रतिपल किस मधुर गीति-लय में जाती? तुमने...

कहो, तुम रूपसि कौन? - kaho, tum roopasi kaun? -Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत #Poem_Gazal_Shayari

February 28, 2020 0 Comments
कहो, तुम रूपसि कौन? व्योम से उतर रही चुपचाप छिपी निज छाया-छबि में आप, सुनहला फैला केश-कलाप,-- मधुर, मंथर, मृदु, मौन! मूँद अधरों में मधुपालाप, पलक में निमिष, पदों में चाप, भाव-संकुल, बंकिम, भ्रू-चाप, मौन, केवल तुम मौन! ग्रीव तिर्यक, चम्पक-द्युति गात, नयन मुकुलित, नत मुख-जलजात, देह छबि-छाया में दिन-रात, कहाँ...

द्वाभा के एकाकी प्रेमी, - Dvābhā kē ēkākī prēmī, -Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत #Poem_Gazal_Shayari

February 28, 2020 0 Comments
द्वाभा के एकाकी प्रेमी, नीरव दिगन्त के शब्द मौन, रवि के जाते, स्थल पर आते कहते तुम तम से चमक--कौन? सन्ध्या के सोने के नभ पर तुम उज्ज्वल हीरक सदृश जड़े, उदयाचल पर दीखते प्रात अंगूठे के बल हुए खड़े! अब सूनी दिशि औ’ श्रान्त वायु, कुम्हलाई पंकज-कली सृष्टि; तुम डाल विश्व पर करुण-प्रभा अविराम कर रहे प्रेम-वृष्टि! ओ...

खोलो, मुख से घूँघट खोलो - kholo, mukh se ghoonghat kholo -Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत #Poem_Gazal_Shayari

February 28, 2020 0 Comments
खोलो, मुख से घूँघट खोलो, हे चिर अवगुंठनमयि, बोलो! क्या तुम केवल चिर-अवगुंठन, अथवा भीतर जीवन-कम्पन? कल्पना मात्र मृदु देह-लता, पा ऊर्ध्व ब्रह्म, माया विनता! है स्पृश्य, स्पर्श का नहीं पता, है दृश्य, दृष्टि पर सके बता! पट पर पट केवल तम अपार, पट पर पट खुले, न मिला पार! सखि, हटा अपरिचय-अंधकार खोलो रहस्य के मर्म...

चींटी को देखा? - cheentee ko dekha? - Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत #Poem_Gazal_Shayari

February 28, 2020 0 Comments
चींटी को देखा? वह सरल, विरल, काली रेखा तम के तागे सी जो हिल-डुल, चलती लघु पद पल-पल मिल-जुल, यह है पिपीलिका पाँति! देखो ना, किस भाँति काम करती वह सतत, कन-कन कनके चुनती अविरत। गाय चराती, धूप खिलाती, बच्चों की निगरानी करती लड़ती, अरि से तनिक न डरती, दल के दल सेना संवारती, घर-आँगन, जनपथ बुहारती। चींटी है प्राणी...

मैने छुटपन मे छिपकर पैसे बोये थे - maine chhutapan me chhipakar paise boye the -Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत #Poem_Gazal_Shayari

February 28, 2020 0 Comments
मैने छुटपन मे छिपकर पैसे बोये थे सोचा था पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे , रुपयों की कलदार मधुर फसलें खनकेंगी , और, फूल फलकर मै मोटा सेठ बनूगा ! पर बन्जर धरती में एक न अंकुर फूटा , बन्ध्या मिट्टी ने एक भी पैसा उगला । सपने जाने कहां मिटे , कब धूल हो गये । मै हताश हो , बाट जोहता रहा दिनो तक , बाल कल्पना के अपलक पांवड़े...

मैं चिर श्रद्धा लेकर आई - main chir shraddha lekar aaee -Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत #Poem_Gazal_Shayari

February 28, 2020 0 Comments
मैं चिर श्रद्धा लेकर आई वह साध बनी प्रिय परिचय में, मैं भक्ति हृदय में भर लाई, वह प्रीति बनी उर परिणय में। जिज्ञासा से था आकुल मन वह मिटी, हुई कब तन्मय मैं, विश्वास माँगती थी प्रतिक्षण आधार पा गई निश्चय मैं ! प्राणों की तृष्णा हुई लीन स्वप्नों के गोपन संचय में संशय भय मोह विषाद हीन लज्जा करुणा में निर्भय...

अब आधा जल निश्चल, पीला - ab aadha jal nishchal, peela- Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत #Poem_Gazal_Shayari

February 28, 2020 0 Comments
अब आधा जल निश्चल, पीला,-- आधा जल चंचल औ’, नीला-- गीले तन पर मृदु संध्यातप सिमटा रेशम पट सा ढीला। ... ... ... ... ऐसे सोने के साँझ प्रात, ऐसे चाँदी के दिवस रात, ले जाती बहा कहाँ गंगा जीवन के युग क्षण,-- किसे ज्ञात! विश्रुत हिम पर्वत से निर्गत, किरणोज्वल चल कल ऊर्मि निरत, यमुना, गोमती आदी से मिल होती यह सागर...

निर्वाणोन्मुख आदर्शों के अंतिम दीप शिखोदय! - nirvaanonmukh aadarshon ke antim deep shikhoday! -Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत #Poem_Gazal_Shayari

February 28, 2020 0 Comments
निर्वाणोन्मुख आदर्शों के अंतिम दीप शिखोदय!-- जिनकी ज्योति छटा के क्षण से प्लावित आज दिगंचल,-- गत आदर्शों का अभिभव ही मानव आत्मा की जय, अत: पराजय आज तुम्हारी जय से चिर लोकोज्वल! मानव आत्मा के प्रतीक! आदर्शों से तुम ऊपर, निज उद्देश्यों से महान, निज यश से विशद, चिरंतन; सिद्ध नहीं, तुम लोक सिद्धि के साधक बने महत्तर, विजित...

बिदा हो गई साँझ, विनत मुख पर झीना आँचल धर - bida ho gaee saanjh, vinat mukh par jheena aanchal dhar - Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत #Poem_Gazal_Shayari

February 28, 2020 0 Comments
बिदा हो गई साँझ, विनत मुख पर झीना आँचल धर, मेरे एकाकी आँगन में मौन मधुर स्मृतियाँ भर! वह केसरी दुकूल अभी भी फहरा रहा क्षितिज पर, नव असाढ़ के मेघों से घिर रहा बराबर अंबर! मैं बरामदे में लेटा, शैय्या पर, पीड़ित अवयव, मन का साथी बना बादलों का विषाद है नीरव! सक्रिय यह सकरुण विषाद,--मेघों से उमड़ उमड़ कर भावी के...

प्राण! तुम लघु लघु गात! - praan! tum laghu laghu gaat! -Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत #Poem_Gazal_Shayari

February 28, 2020 0 Comments
प्राण! तुम लघु लघु गात! नील नभ के निकुंज में लीन, नित्य नीरव, नि:संग नवीन, निखिल छवि की छवि! तुम छवि हीन अप्सरी-सी अज्ञात! अधर मर्मरयुत, पुलकित अंग चूमती चलपद चपल तरंग, चटकतीं कलियाँ पा भ्रू-भंग थिरकते तृण; तरु-पात! हरित-द्युति चंचल अंचल छोर सजल छवि, नील कंचु, तन गौर, चूर्ण कच, साँस सुगंध झकोर, परों में...

नभ की है उस नीली चुप्पी पर - nabh kee hai us neelee chuppee par -Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत #Poem_Gazal_Shayari

February 28, 2020 0 Comments
नभ की है उस नीली चुप्पी पर घंटा है एक टंगा सुन्दर, जो घडी घडी मन के भीतर कुछ कहता रहता बज बज कर। परियों के बच्चों से प्रियतर, फैला कोमल ध्वनियों के पर कानों के भीतर उतर उतर घोंसला बनाते उसके स्वर। भरते वे मन में मधुर रोर "जागो रे जागो, काम चोर! डूबे प्रकाश में दिशा छोर अब हुआ भोर, अब हुआ भोर!" "आई सोने की...

अपने ही सुख से चिर चंचल - apane hee sukh se chir chanchal - Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत #Poem_Gazal_Shayari

February 28, 2020 1 Comments
अपने ही सुख से चिर चंचल हम खिल खिल पडती हैं प्रतिपल, जीवन के फेनिल मोती को ले ले चल करतल में टलमल! छू छू मृदु मलयानिल रह रह करता प्राणों को पुलकाकुल; जीवन की लतिका में लहलह विकसा इच्छा के नव नव दल! सुन मधुर मरुत मुरली की ध्वनी गृह-पुलिन नांध, सुख से विह्वल, हम हुलस नृत्य करतीं हिल हिल खस खस पडता उर से...

जीवन का श्रम ताप हरो हे! - jeevan ka shram taap haro he! -Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत #Poem_Gazal_Shayari

February 28, 2020 0 Comments
जीवन का श्रम ताप हरो हे! सुख सुषुमा के मधुर स्वर्ण हे! सूने जग गृह द्वार भरो हे! लौटे गृह सब श्रान्त चराचर नीरव, तरु अधरों पर मर्मर, करुणानत निज कर पल्लव से विश्व नीड प्रच्छाय करो हे! उदित शुक्र अब, अस्त भनु बल, स्तब्ध पवन, नत नयन पद्म दल तन्द्रिल पलकों में, निशि के शशि! सुखद स्वप्न वन कर विचरो हे! Sumitra...

जग के उर्वर-आँगन में - jag ke urvar-aangan mein - Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत #Poem_Gazal_Shayari

February 28, 2020 0 Comments
जग के उर्वर-आँगन में बरसो ज्योतिर्मय जीवन! बरसो लघु-लघु तृण, तरु पर हे चिर-अव्यय, चिर-नूतन! बरसो कुसुमों में मधु बन, प्राणों में अमर प्रणय-धन; स्मिति-स्वप्न अधर-पलकों में, उर-अंगों में सुख-यौवन! छू-छू जग के मृत रज-कण कर दो तृण-तरु में चेतन, मृन्मरण बाँध दो जग का, दे प्राणों का आलिंगन! बरसो सुख बन, सुखमा...

छंद बंध ध्रुव तोड़, फोड़ कर पर्वत कारा - chhand bandh dhruv tod, phod kar parvat kaara - Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत #Poem_Gazal_Shayari

February 28, 2020 0 Comments
छंद बंध ध्रुव तोड़, फोड़ कर पर्वत कारा अचल रूढ़ियों की, कवि! तेरी कविता धारा मुक्त अबाध अमंद रजत निर्झर-सी नि:सृत-- गलित ललित आलोक राशि, चिर अकलुष अविजित! स्फटिक शिलाओं से तूने वाणी का मंदिर शिल्पि, बनाया,-- ज्योति कलश निज यश का घर चित्त। शिलीभूत सौन्दर्य ज्ञान आनंद अनश्वर शब्द-शब्द में तेरे उज्ज्वल जड़ित हिम...

प्रेम की बंसी लगी न प्राण! - prem kee bansee lagee na praan! - Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत #Poem_Gazal_Shayari

February 28, 2020 0 Comments
प्रेम की बंसी लगी न प्राण! तू इस जीवन के पट भीतर कौन छिपी मोहित निज छवि पर? चंचल री नव यौवन के पर, प्रखर प्रेम के बाण! प्रेम की बंसी लगी न प्राण! गेह लाड की लहरों का चल, तज फेनिल ममता का अंचल, अरी डूब उतरा मत प्रतिपल, वृथा रूप का मान! प्रेम की बंसी लगी न प्राण! आए नव घन विविध वेश धर, सुन री बहुमुख पावस के स्वर, रूप...

मैंने छुटपन में छिपकर पैसे बोये थे - mainne chhutapan mein chhipakar paise boye the -Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत #Poem_Gazal_Shayari

February 28, 2020 0 Comments
मैंने छुटपन में छिपकर पैसे बोये थे, सोचा था, पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे, रुपयों की कलदार मधुर फसलें खनकेंगी और फूल फलकर मै मोटा सेठ बनूँगा! पर बंजर धरती में एक न अंकुर फूटा, बन्ध्या मिट्टी नें न एक भी पैसा उगला!- सपने जाने कहाँ मिटे, कब धूल हो गये! मैं हताश हो बाट जोहता रहा दिनों तक बाल-कल्पना के अपलर पाँवडडे...

खिल उठा हृदय - khil utha hrday - Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत #Poem_Gazal_Shayari

February 28, 2020 0 Comments
खिल उठा हृदय, पा स्पर्श तुम्हारा अमृत अभय! खुल गए साधना के बंधन, संगीत बना, उर का रोदन, अब प्रीति द्रवित प्राणों का पण, सीमाएँ अमिट हुईं सब लय। क्यों रहे न जीवन में सुख दुख क्यों जन्म मृत्यु से चित्त विमुख? तुम रहो दृगों के जो सम्मुख प्रिय हो मुझको भ्रम भय संशय! तन में आएँ शैशव यौवन मन में हों विरह मिलन...

परिवर्तन - parivartan -Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत #Poem_Gazal_Shayari

February 28, 2020 0 Comments
अहे निष्ठुर परिवर्तन! तुम्हारा ही तांडव नर्तन विश्व का करुण विवर्तन! तुम्हारा ही नयनोन्मीलन, निखिल उत्थान, पतन! अहे वासुकि सहस्र फन! लक्ष्य अलक्षित चरण तुम्हारे चिन्ह निरंतर छोड़ रहे हैं जग के विक्षत वक्षस्थल पर ! शत-शत फेनोच्छ्वासित,स्फीत फुतकार भयंकर घुमा रहे हैं घनाकार जगती का अंबर ! मृत्यु तुम्हारा गरल...
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UP Free Scooty Scheme 2025 कैसे करें यूपी फ्री स्कूटी के लिए आवेदन यहाँ देखें सम्पूर्ण जानकारी

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