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Thursday, August 8, 2019

जो चंद लम्हों में बन गया था वो सिलसिला ख़त्म हो गया है - jo chand lamhon mein ban gaya tha vo silasila khatm ho gaya hai - -Mahshar afridi - महशर आफ़रीदी

जो चंद लम्हों में बन गया था वो सिलसिला ख़त्म हो गया है 

ये तुम ने कैसा यक़ीं दिलाया मुग़ालता ख़त्म हो गया है 

ज़बान होंटों पे जा के फीकी ही लौट आती है कुछ दिनों से 

नमक नहीं है तिरे लबों में या ज़ाइक़ा ख़त्म हो गया है 

गुमान गाँव से मैं चला था यक़ीन की मंज़िलों की जानिब 

मगर तवहहुम के जंगलों में ही रास्ता ख़त्म हो गया है 

वो गुफ़्तुगूओं के नर्म चश्मे कहीं फ़ज़ा में ही जम गए हैं 

वो सारे मैसेज वो शाइ'री का तबादला ख़त्म हो गया है 

कल एक सदमा पड़ा था हम पर के जिस ने दिल को हिला दिया था 

चलो के सीने का जाएज़ा लें कि ज़लज़ला ख़त्म हो गया है 

मिरे तसव्वुर में इतनी वुसअ'त नहीं के तेरा बदन समाए 

मैं तुझ को सोचूँ तो ऐसा लगता है हाफ़िज़ा ख़त्म हो गया है 

मैं तुझ को पा कर ही मुतमइन हूँ अब और कोई तलब नहीं है 

जो आज तक था नसीब से वो मुतालबा ख़त्म हो गया है 


-Mahshar afridi - महशर आफ़रीदी

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