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Tuesday, October 27, 2020

ज़ुबाँ को बन्द करें या मुझे असीर करें - zubaan ko band karen ya mujhe aseer karen - बृज नारायण चकबस्त - brij naaraayan chakabast

 ज़ुबाँ को बन्द करें या मुझे असीर करें

मेरे ख़याल को बेड़ी पिन्हा नहीं सकते ।


ये कैसी बज़्म है और कैसे इसके साक़ी हैं

शराब हाथ में है और पिला नहीं सकते ।


ये बेकसी भी अजब बेकसी है दुनिया में

कोई सताए हमें हम सता नहीं सकते ।


कशिश वफ़ा की उन्हें खींच लाई आख़िरकार

ये था रक़ीब को दावा वे आ नहीं सकते ।


जो तू कहे तो शिकायत का ज़िक्र कम कर दें

मगर यक़ीं तेरे वादों पै ला नहीं सकते ।


चिराग़ क़ौम का रोशन है अर्श पर दिल के

इसे हवा के फ़रिश्ते बुझा नहीं सकते ।


बृज नारायण चकबस्त - brij naaraayan chakabast


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