राम-पद-पदुम पराग परी- raam-pad-padum paraag paree-- तुलसीदास- Tulsidas #www.poemgazalshayari.in ||Poem|Gazal|Shayari|Hindi Kavita|Shayari|Love||

राम-पद-पदुम पराग परी।
ऋषि तिय तुरत त्यागि पाहन तनु छबिमय देह धरी॥१॥
प्रबल पाप पति साप दुसह दव दारुन जरनि जरी।
कृपा-सुधा सिंचि बिबुध बेलि ज्यों फिरि सुख फरनि फरी॥२॥
निगम अगम मूरति महेस मति जुबति बराय बरी।
सोइ मूरति भइ जानि नयन पथ इकटकतें न टरी॥३॥
बरनति ह्रदय सरूप सील गुन प्रेम प्रमोद भरी।
तुलसीदास अस केहि आरतकी आरति प्रभु न हरी॥४॥

- तुलसीदास- Tulsidas

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