आज तक नहीं जान पाया हूँ - aaj tak nahin jaan paaya hoon -- जयप्रकाश त्रिपाठी- Jayprakash Tripathi #www.poemgazalshayari.in ||Poem|Gazal|Shaayari|Hindi Kavita|Shayari|Love||
आज तक नहीं जान पाया हूँ।
कितना अपना हूँ मैं, पराया हूँ।
जिसे बुरे वक़्त ने तराशा है,
उसका सबसे हसीन साया हूँ।
शख़्सियत है मेरी अकेलापन,
सिरफिरे शोर का सताया हूँ।
होम में हाथ जले हैं अक्सर,
अन्धड़ों में दिया जलाया हूँ।
खोजने ख़ुद को जब भी निकला,
ख़ुद में बैरंग लौट आया हूँ।
ख़ून के घूँट रोज़ पी-पीकर,
दर्द की नदी में नहाया हूँ ।
- जयप्रकाश त्रिपाठी- Jayprakash Tripathi
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