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Saturday, May 30, 2020

वह आ रही है - vah aa rahee hai -- उत्पल बैनर्जी - Utpal Banerjee #www.poemgazalshayari.in

वह आ रही है --

स्मृति में बज उठा है देह का बसन्त
हवा में काँप रहा है तिलककामोद
बाँसवन के पीछे खिला है
फ़ॉस्फ़ोरस लिपटा चाँद,

वह आ रही है।

आँगन में फैली है वनतुलसी की गन्ध
जल में डूबी वनस्पति सुगबुगा रही है
उसकी देह की कोजागरी में
सुन्दर हो उठी है पृथ्वी
गाल पर ठहरा आँसू सूखने लगा है
अन्धकार को चीरकर
जा रही हैं प्रार्थनाएँ ऊर्ध्व की ओर

वह आ रही है....

 - उत्पल बैनर्जी - Utpal Banerjee
#www.poemgazalshayari.in

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