वो भी सरहाने लगे अरबाबे-फ़न के बाद ।
दादे-सुख़न मिली मुझे तर्के-सुखन के बाद ।
दीवानावार चाँद से आगे निकल गए
ठहरा न दिल कहीं भी तेरी अंजुमन के बाद ।
एलाने-हक़ में ख़तरा-ए-दारो-रसन तो है
लेकिन सवाल ये है कि दारो-रसन के बाद ।
होंटों को सी के देखिए पछताइयेगा आप
हंगामे जाग उठते हैं अकसर घुटन के बाद ।
गुरबत की ठंडी छाँव में याद आई है उसकी धूप
क़द्रे-वतन हुई हमें तर्के-वतन के बाद
इंसाँ की ख़ाहिशों की कोई इंतेहा नहीं
दो गज़ ज़मीन चाहिए, दो गज़ कफ़न के बाद ।
- कैफ़ी आज़मी - Kaifi Azmi
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