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Wednesday, March 11, 2020

टेर वंशी की - ter vanshee kee -sachchidanand hiranand vatsyayan "agay"- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय" #Poem Gazal Shayari #Poem_Gazal_Shayari

Part-1
टेर वंशी की
यमुन के पार
अपने-आप झुक आई
कदम की डार।
द्वार पर भर, गहर,
ठिठकी राधिका के नैन
झरे कँप कर
दो चमकते फूल।
फिर वही सूना अंधेरा
कदम सहमा
घुप कलिन्दी कूल !

Part-2
अलस कालिन्दी-- कि काँपी
टेर वंशी की
नदी के पार।
कौन दूभर भार
अपने-आप
झुक आई कदम की डार
धरा पर बरबस झरे दो फूल।

द्वार थोड़ा हिले--
झरे, झपके राधिका के नैन
अलक्षित टूट कर
दो गिरे तारक बूंद।
फिर-- उसी बहती नदी का
वही सूना कूल !--
पार-- धीरज-भरी
फिर वह रही वंशी टेर !

sachchidanand hiranand vatsyayan "agay"- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय"

#Poem Gazal Shayari

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