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Monday, March 2, 2020

सोनजुही की बेल नवेली - sonajuhee kee bel navelee -Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत #Poem Gazal Shayari

सोनजुही की बेल नवेली,
एक वनस्पति वर्ष, हर्ष से खेली, फूली, फैली,
सोनजुही की बेल नवेली!
आँगन के बाड़े पर चढ़कर
दारु खंभ को गलबाँही भर,
कुहनी टेक कँगूरे पर
वह मुस्काती अलबेली!
सोनजुही की बेल छबीली!
दुबली पतली देह लतर, लोनी लंबाई,
प्रेम डोर सी सहज सुहाई!
फूलों के गुच्छों से उभरे अंगों की गोलाई,
निखरे रंगों की गोराई
शोभा की सारी सुघराई
जाने कब भुजगी ने पाई!
सौरभ के पलने में झूली
मौन मधुरिमा में निज भूली,
यह ममता की मधुर लता
मन के आँगन में छाई!
सोनजुही की बेल लजीली
पहिले अब मुस्काई!
एक टाँग पर उचक खड़ी हो
मुग्धा वय से अधिक बड़ी हो,
पैर उठा कृश पिंडुली पर धर,
घुटना मोड़ , चित्र बन सुन्दर,
पल्लव देही से मृदु मांसल,
खिसका धूप छाँह का आँचल
पंख सीप के खोल पवन में
वन की हरी परी आँगन में
उठ अंगूठे के बल ऊपर
उड़ने को अब छूने अम्बर!
सोनजुही की बेल हठीली
लटकी सधी अधर पर!
झालरदार गरारा पहने
स्वर्णिम कलियों के सज गहने
बूटे कढ़ी चुनरी फहरा
शोभा की लहरी-सी लहरा
तारों की-सी छाँह सांवली,
सीधे पग धरती न बावली
कोमलता के भार से मरी
अंग भंगिमा भरी, छरहरी!
उदि्भद जग की-सी निर्झरिणी
हरित नीर, बहती सी टहनी!
सोनजुही की बेल,
चौकड़ी भरती चंचल हिरनी!
आकांक्षा सी उर से लिपटी,
प्राणों के रज तम से चिपटी,
भू यौवन की सी अंगड़ाई,
मधु स्वप्नों की सी परछाई,
रीढ़ स्तम्भ का ले अवलंबन
धरा चेतना करती रोहण
आ, विकास पथ पर भू जीवन!
सोनजुही की बेल,
गंध बन उड़ी, भरा नभ का मन!




Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत 

#Poem Gazal Shayari

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