एक धूप का हँसमुख टुकड़ा - ek dhoop ka hansamukh tukada -Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत #Poem Gazal Shayari
एक धूप का हँसमुख टुकड़ा
तरु के हरे झरोखे से झर
अलसाया है धरा धूल पर
चिड़िया के सफ़ेद बच्चे सा!
उसे प्यार है भू-रज से
लेटा है चुपके!
वह उड़ कर
किरणों के रोमिल पंख खोल
तरु पर चढ़
ओझल हो सकता फिर अमित नील में!
लोग समझते
मैं उसको व्यक्तित्व दे रहा
कला स्पर्श से!
मुझको लगता
वही कला को देता निज व्यक्तित्व
स्वयं व्यक्तिवान्
ज्योतिर्मय जो!
भूरज में लिपटा
श्री शुभ्र धूप का टुकड़ा
वह रे स्वयंप्रकाश
अखंड प्रकाशवान!
Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत
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