सभी से मैं ने विदा ले ली:
घर से,
नदी के हरे कूल से,
इठलाती पगडंडी से
पीले वसंत के फूलों से
पुल के नीचे खेलती
डाल की छायाओं के जाल से।
सब से मैं ने विदा ले ली:
एक उसी के सामने
मुँह खोला भी, पर
बोल नहीं निकले।
sachchidanand hiranand vatsyayan "agay"- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय"
#Poem Gazal Shayari
No comments:
Post a Comment