Part-1
ऊपर तुम, नंदा!
नीचे तरु-रेखा से
मिलती हरियाली पर
बिखरे रेवड़ को
दुलार से टेरती-सी
गड़रिए की बाँसुरी की तान:
और भी नीचे
कट गिरे वन की चिरी पट्टियों के बीच से
नए खनि-यंत्र की
भठ्ठी से उठे धुएँ का फंदा।
नदी की घेरती-सी वत्सल कुहनी के मोड़ में
सिहरते-लहरते शिशु धान।
चलता ही जाता है यह
अंतहीन, अन-सुलझ
गोरख-धंधा!
दूर, ऊपर तुम, नंदा!
Part-2
तुम
वहाँ से
मंदिर तुम्हारा
यहाँ है।
और हम-
हमारे हाथ, हमारी सुमिरनी-
यहाँ से-
और हमारा मन
वह कहाँ है?
sachchidanand hiranand vatsyayan "agay"- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय"
#Poem Gazal Shayari
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