मेरी छाती पर - meree chhaatee par -sachchidanand hiranand vatsyayan "agay"- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय" #Poem Gazal Shayari #Poem_Gazal_Shayari

मेरी छाती पर
हवाएं लिख जाती हैं
महीन रेखाओं में
अपनी वसीयत
और फिर हवाओं के झोंकों ही
वसीयतनामा उड़ाकर
कहीं और ले जाते हैं।

बहकी हवाओ !
वसीयत करने से पहले
हल्‍फ उठाना पड़ता है
कि वसीयत करने वाले के
होश-हवाश दुरूस्‍त हैं:
और तुम्‍हें इसके लिए
गवाह कौन मिलेगा
मेरे ही सिवा ?

क्‍या मेरी गवाही
तुम्‍हारी वसीयत से ज्‍यादा
टिकाऊ होगी ?


sachchidanand hiranand vatsyayan "agay"- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय"

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