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Tuesday, March 10, 2020

हर किसी के भीतर - har kisee ke bheetar -sachchidanand hiranand vatsyayan "agay"- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय" #Poem Gazal Shayari #Poem_Gazal_Shayari

हर किसी के भीतर
एक गीत सोता है
जो इसी का प्रतीक्षमान होता है
कि कोई उसे छू कर जगा दे
जमी परतें पिघला दे
और एक धार बहा दे।

पर ओ मेरे प्रतीक्षित मीत
प्रतीक्षा स्वयं भी तो है एक गीत
जिसे मैने बार बार जाग कर गाया है
जब-जब तुम ने मुझे जगाया है।

उसी को तो आज भी गाता हूँ
क्यों कि चौंक- चौंक कर रोज़
तुम्हें नया पहचानता हूँ-
यद्यपि सदा से ठीक वैसा ही जानता हूँ।



sachchidanand hiranand vatsyayan "agay"- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय"

#Poem Gazal Shayari

#Poem_Gazal_Shayari

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