सदियों से इन्सान यह सुनता आया है
दुख की धूप के आगे सुख का साया है
हम को इन सस्ती ख़ुशियों का लोभ न दो
हम ने सोच समझ कर ग़म अपनाया है
झूठ तो कातिल ठहरा उसका क्या रोना
सच ने भी इन्सां का ख़ून बहाया है
पैदाइश के दिन से मौत की ज़द में हैं
इस मक़तल में कौन हमें ले आया है
अव्वल-अव्वल जिस दिल ने बरबाद किया
आख़िर-आख़िर वो दिल ही काम आया है
उतने दिन अहसान किया दीवानों पर
जितने दिन लोगों ने साथ निभाया है
-साहिर लुधियानवी - saahir ludhiyaanavee
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