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Saturday, July 13, 2019

यहीं पर नहीं ज़िंदगी ख़त्म होती - yaheen par nahin zindagee khatm hotee - -Imran "Prataparh" - इमरान "प्रतापगढ़ी"

यहीं पर नहीं ज़िंदगी ख़त्म होती,

गर अपना कोई बेवफ़ा हो गया है,
समझ लो कि इक हादसा हो गया है।
नहीं इससे हर इक ख़ुशी ख़त्म होती। यहीं पर…….

ख़ता दूसरे की सज़ा ख़ुद को मत दो,
ज़हर जिसमें हो वो दवा ख़ुद को मत दो।
न देखो कि कुछ लोग क्या कर रहे हैं,
हैं एकाध तो जो दुआ कर रहे हैं।
भुला दो वो गुज़री हुई सारी बातें,
समझ लो अंधेरे भरी थी वो रातें।
और इससे नहीं रौशनी ख़त्म होती। यहीं पर……

हुआ जो भी वो सब यकायक नहीं था,
यही सच है वो तेरे लायक नहीं था।
न टपके ज़मीं पर कोई अश्क बह के,
दिखा दो ये उसका दिया ग़म भी सह के।
ये आंसू हैं मोती इन्हें मत लुटाओ,
तुम्हें है कसम तुम ज़रा मुस्कुराओ।
नहीं बांटने से हंसी ख़त्म होती। यहीं पर……….

तुम इस तरह ख़ुद को अकेले न छोड़ो,
ये दुनिया, ये दुनिया के मेले न छोड़ो।
अगर उसकी यादें हैं दिल से भुलाना,
मेरा गीत ये साथ लेकर के जाना।
तुम्हें बीते दिन याद बरबस दिलाकर,
तेरे टूटे दिल को यूं ढांढस बंधाकर।
है इमरान की शायरी ख़त्म होती। यहीं पर……..

-Imran "Prataparh" - इमरान "प्रतापगढ़ी"

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