"सब अभी से बदल गया माँ, क्योँ अभी से बदल गया माँ?
साँझी धूप मुझको रखते मुझको भी जलने देते,
कच्ची,पक्की डगर पे सँग सँग कुछ दिन चलने देते ,
डाँट डपट और लडना झगडना लाड मेँ ढल गया माँ!
कच्ची,पक्की डगर पे सँग सँग कुछ दिन चलने देते ,
डाँट डपट और लडना झगडना लाड मेँ ढल गया माँ!
सब अभी से बदल गया माँ ॥
वो ही बाहरी द्वार खिडकियाँ तू बदली ना बदली मैँ दिन भर उथल पुथल कर करती तेरी बिटिया पगली मैँ लाड चाव की थी मै कल तक आज लाड को सलती हूँ अपने आँगन के अपनो मे मेहमानो सी रहती हूँ आते आते कल आयेगा आज फिर सल गया माँ ।
सब अभी से बदल गया माँ ॥
छोटू का तो मुझसे जैसे जनम का बैर पुराना था, रक्षा बँधन के दिन तक भी मुझे रुला कर आना था,
मेरे हाथो कल उसका मिट्टी का गुल्लक टूट गया ,मै डरते बोली की जाने कैसे हाथ से छूट गया ,खूब झगडना था उसके चुपचाप निकल गया माँ ।
सब अभी से बदल गया माँ ॥
मेरे हँसने और गाने पर चिढकर कहती थी दादी, ऊँट सरीखी हुई है फिर भी अक्ल अभी तक है आधी, हुवा उसे क्या मुझको अब तो बिटिया बिटिया कहती है, लाड लडाती हँसती है पर आँखे भीगी रहती है, धागा जलना है बाकी,मोम पिघल गया माँ ।
सब अभी से बदल गया माँ ॥
पहले पापा बात बात पर हाथ है तँग बताते थे ,
मेरी माँगी चीजे कितने-कितने दिन नही लाते थे, अनचाही बिन माँगी चीजे अब तो घर मेँ आती है, लेकिन भैया की फरमाईश पापा से छुप जाती है ,भैया को साईकिल देना,फिर से टल गया माँ ।
सब अभी से बदल गया माँ ॥
Kavi Ramesh Sharma- कवि रमेश शर्मा
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