लड़कपन का नशा उस पर मुहब्बत और पागलपन,
मेरी इस ज़िंदगी का ख़ूबसूरत दौर पागलपन !
मेरे घरवाले कहते हैं बड़े अब हो चुके हो तुम,
मगर मन फिर भी कहता है करूं कुछ और पागलपन !!
हवा के साथ उड़ने वाले ये आवारगी के दिन,
मेरी मासूमियत के और मेरी संजीदगी के दिन !
कुछेक टीशर्ट, कुछेक जींस और एक कैप छोटी सी,
मेरे लैपटॉप और मोबाइल से ये दोस्ती के दिन !!
अजब सी एक ख़ुशबू फिर भी घर में साथ रहती है,
कोई मासूम सी लड़की सफ़र में साथ रहती है……..!
मेरी बाइक की पिछली सीट जो अब तक अकेली है,
इधर लगता है उसने कोई ख़ुशबू साथ ले ली है !
मगर इस बीच मैं बाइक पे जब-जब बैठता हूं तो,
मुझे लगता है कांधे पर कोई नाज़ुक हथेली है !!
यही एहसास मुझमें सारा सारा दिन महकता है,
मुझे छूने को उसका मख़मली पल्लू सरकता है !
बुलाती है किसी की दालचीनी सी महक मुझको,
मेरा ही नाम ले-लेकर कोई कंगन खनकता है !!
सुबह में रात में और दोपहर में साथ रहती है,
कोई मासूम सी लड़की सफ़र में साथ रहती है…..!
समय जब भागता है रात गहरी होने लगती है,
तो उसकी याद की शम्मा सुनहरी होने लगती है !
मेरी पलकों पे उसके ख़्वाब उगने लगते हैं जैसे ,
अजब ख़ुशबू से तर मेरी मसहरी होने लगती है !
मैं उठकर बैठता हूं और क़लम काग़ज़ उठाता हूं ,
मैं उस काग़ज़ पे अपनी याद का चेहरा बनाता हूं !!
उजाले चुभने लगते हैं मेरी आंखों को कमरे के,
क़लम को चूमता हूं और चराग़ों को बुझाता हूं !
मेरी यादों के इस उठते भंवर में साथ रहती है ,
कोई मासूम सी लड़की सफ़र में साथ रहती है ……. !!
- Mohammad Imran "Prataparh" - मो० इमरान "प्रतापगढ़ी"
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