इन्तेज़मात नये सिरे से सम्भाले जायें|
जितने कमज़र्फ़ हैं महफ़िल से निकाले जायें|
मेरा घर आग की लपटों में छुपा है लेकिन,
जब मज़ा है तेरे आँगन में उजाले जायें|
ग़म सलामत है तो पीते ही रहेंगे लेकिन,
पहले मैख़ाने की हालत सम्भाले जायें|
ख़ाली वक़्तों में कहीं बैठ के रोलें यारो,
फ़ुर्सतें हैं तो समन्दर ही खगांले जायें|
ख़ाक में यूँ न मिला ज़ब्त की तौहीन न कर,
ये वो आँसू हैं जो दुनिया को बहा ले जायें|
हम भी प्यासे हैं ये एहसास तो हो साक़ी को,
ख़ाली शीशे ही हवाओं में उछाले जायें|
आओ शहर में नये दोस्त बनायें "राहत"
आस्तीनों में चलो साँप ही पाले जायें|
Dr. Rahat “ Indauri” - डॉ० राहत “इन्दौरी”
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