री, मेरे पार निकस गया सतगुर मार्या तीर।
बिरह-भाल लगी उर अंदर, व्याकुल भया सरीर॥
इत उत चित्त चलै नहिं कबहूं, डारी प्रेम-जंजीर।
कै जाणै मेरो प्रीतम प्यारो, और न जाणै पीर॥
कहा करूं मेरों बस नहिं सजनी, नैन झरत दोउ नीर।
मीरा कहै प्रभु तुम मिलियां बिन प्राण धरत नहिं धीर॥
शब्दार्थ = री = अरी सखी। पार =आर-पार। तीर-मार्या =रहस्य के शब्द द्वारा इशारे से बता दिया। चले नहिं = विचलित नहीं होता है। डारी = डाल दी। नीर =जल, आंसुओं से तात्पर्य है।
- मीराबाई- Meera Bai
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