कागळ कोण लेई जायरे मथुरामां - kaag ka kon leee jaayare mathuraaman -- मीराबाई- Meera Bai #www.poemgazalshayari.in #Poem #Gazal #Shayari #Hindi Kavita #Shayari #Love shayari
कागळ कोण लेई जायरे मथुरामां वसे रेवासी मेरा प्राण पियाजी॥ध्रु०॥
ए कागळमां झांझु शूं लखिये। थोडे थोडे हेत जणायरे॥१॥
मित्र तमारा मळवाने इच्छे। जशोमती अन्न न खाय रे॥२॥
सेजलडी तो मुने सुनी रे लागे। रडतां तो रजनी न जायरे॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल तारूं त्यां जायरे॥४॥
सामळोजी मारी बात। बाई तमे सामळोजी मारी बात॥ध्रु०॥
राधा सखी सुंदर घरमां। कुबजानें घर जात॥१॥
नवलाख धेनु घरमां दुभाय। घर घर गोरस खात॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमलपर हात॥३॥
बन जाऊं चरणकी दासी रे। दासी मैं भई उदासी॥ध्रु०॥
और देव कोई न जाणूं। हरिबिन भई उदासी॥१॥
नहीं न्हावूं गंगा नहीं न्हावूं जमुना। नहीं न्हावूं प्रयाग कासी॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमलकी प्यासी॥३॥
मागत माखन रोटी। गोपाळ प्यारो मागत माखन रोटी॥ध्रु०॥
मेरे गोपालकू रोटी बना देऊंगी। एक छोटी एक मोटी॥१॥
मेरे गोपालकू बीहा करुंगी। बृषभानकी बेटी॥२॥
मेरे गोपालकू झबला शिवाऊंगी। मोतनकी लड छुटी॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमलपा लोटी॥४॥
मेरो मन हरलियो राज रणछोड। मेरो मन०॥ध्रु०॥
त्रिकम माधव और पुरुषोत्तम ने। कुबेर कल्याणनी जोड॥१॥
राधां रुक्मिणी और सतभामा। जांबुक करणी जोड॥२॥
चार मास रत्नागर गाजे। गोमती करत कलोल॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। हरी मारा दलडाना चोर॥४॥
अजब सलुनी प्यारी मृगया नैनों। तें मोहन वश कीधोरे॥ध्रु०॥
गोकुळमां सौ बात करेरे बाला कां न कुबजे वश लीधोरे॥१॥
मनको सो करी ते लाल अंबाडी अंकुशे वश कीधोरे॥२॥
लवींग सोपारी ने पानना बीदला राधांसु रारुयो कीनोरे॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर चरणकमल चित्त दीनोरे॥४॥
- मीराबाई- Meera Bai
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