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Friday, June 19, 2020

तुम जन-गण को छलो, लहू लीपो-पोतो - yah tum par chhod do, khoon, laipo-poto -- जयप्रकाश त्रिपाठी- Jayprakash Tripathi #www.poemgazalshayari.in ||Poem|Gazal|Shaayari|Hindi Kavita|Shayari|Love||

तुम जन-गण को छलो, लहू लीपो-पोतो,
मैं तेरे क्षण-क्षण से नफ़रत करता हूँ।
तुम अपनी मिट्टी में मुझको मत सानो,
तेरे उस हर कण से नफ़रत करता हूँ।

मैं कायर उद्घो‍षों का लय-ताल नहीं,
कलमकार हूँ, सत्ता का बैताल नहीं,
तुम जी-भर कर करो तिजारत शब्दों की,
मैं चारो चारण से नफ़रत करता हूँ।

तुम ने जो भी कहा, किया उसका उल्टा,
तेरी साथी-सँघाती कुर्सी कुल्टा,
लोकतन्त्र की चादर तुम नोचो-फाड़ो,
तेरे झूठे प्रण से नफ़रत करता हूँ।

चोर-चोर तुम सब मौसेरे भाई हो,
हद से ज़्यादा गिरे हुए हरजाई हो,
जो कुर्सी के लिए लड़े, लूटे-मारे,
मैं तेरे उस रण से नफरत करता हूँ।

- जयप्रकाश त्रिपाठी- Jayprakash Tripathi

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