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Friday, June 12, 2020

नरहरि प्रगटसि नां हो प्रगटसि नां -- narahari pragatasi naan ho pragatasi naan --- रैदास- Raidas #www.poemgazalshayari.in ||Poem|Gazal|Shayari|Hindi Kavita|Shayari|Love||

नरहरि प्रगटसि नां हो प्रगटसि नां।
दीनानाथ दयाल नरहरि।। टेक।।
जन मैं तोही थैं बिगरां न अहो, कछू बूझत हूँ रसयांन।
परिवार बिमुख मोहि लाग, कछू समझि परत नहीं जाग।।१।।
इक भंमदेस कलिकाल, अहो मैं आइ पर्यौ जंम जाल।
कबहूँक तोर भरोस, जो मैं न कहूँ तो मोर दोस।।२।।
अस कहियत तेऊ न जांन, अहो प्रभू तुम्ह श्रबंगि सयांन।
सुत सेवक सदा असोच, ठाकुर पितहि सब सोच।।३।।
रैदास बिनवैं कर जोरि, अहो स्वांमीं तोहि नांहि न खोरि।
सु तौ अपूरबला अक्रम मोर, बलि बलि जांऊं करौ जिनि और।।४।।

- रैदास- Raidas

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