नहीं बिश्रांम लहूँ धरनींधर।
जाकै सुर नर संत सरन अभिअंतर।। टेक।।
जहाँ जहाँ गयौ, तहाँ जनम काछै, तृबिधि ताप तृ भुवनपति पाछै।।१।।
भये अति छीन खेद माया बस, जस तिन ताप पर नगरि हतै तस।।२।।
द्वारैं न दसा बिकट बिष कारंन, भूलि पर्यौ मन या बिष्या बन।।३।।
कहै रैदास सुमिरौ बड़ राजा, काटि दिये जन साहिब लाजा।।४।
- रैदास- Raidas
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