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Wednesday, June 10, 2020

केहि समुझावौ सब जग अन्धा - kehi samujhaavu sab jag andh.कबीर- Kabir #www.poemgazalshayari.in ||Poem|Gazal|Shayari|Hindi Kavita|Shayari|Love||

केहि समुझावौ सब जग अन्धा ॥



इक दुइ होयॅं उन्हैं समुझावौं,

सबहि भुलाने पेटके धन्धा ।

पानी घोड पवन असवरवा,

ढरकि परै जस ओसक बुन्दा ॥ १॥



गहिरी नदी अगम बहै धरवा,

खेवन- हार के पडिगा फन्दा ।

घर की वस्तु नजर नहि आवत,

दियना बारिके ढूँढत अन्धा ॥ २॥



लागी आगि सबै बन जरिगा,

बिन गुरुज्ञान भटकिगा बन्दा ।

कहै कबीर सुनो भाई साधो,

जाय लिङ्गोटी झारि के बन्दा ॥ ३॥

कबीर- Kabir

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