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Friday, June 5, 2020

आया था हरे भरे वन में पतझर, पर वह भी बीत चला - aaya tha hare bhare van mein patajhar, par vah bhee beet chala - - नरेन्द्र शर्मा - Narendra Sharma #www.poemgazalshayari.in

आया था हरे भरे वन में पतझर, पर वह भी बीत चला।
कोंपलें लगीं, जो लगीं नित्य बढ़नें, बढ़ती ज्यों चन्द्रकला॥

चम्पई चाँदनी भी बीती, अनुराग-भरी ऊषा आई।
जब हरित-पीत पल्लव वन में लौ-सी पलाश-लाली छाई॥

पतझर की सूखी शाखों में लग गयी आग, शोले लहके।
चिनगी सी कलियाँ खिली और हर फुनगी लाल फूल दहके॥

सूखी थीं नसें, बहा उनमें फिर बूँद-बूँद कर नया खून।
भर गया उजाला ड़ालों में खिल उठे नये जीवन-प्रसून॥

अब हुई सुबह, चमकी कलगी, दमके मखमली लाल शोले।
फूले टेसू-बस इतना ही समझे पर देहाती भोले॥

लो, डाल डाल से उठी लपट! लो डाल डाल फूले पलाश।
यह है बसंत की आग, लगा दे आग, जिसे छू ले पलाश॥

लग गयी आग; बन में पलाश, नभ में पलाश, भू पर पलाश।
लो, चली फाग; हो गयी हवा भी रंगभरी छू कर पलाश॥

आते यों, आएँगे फिर भी वन में मधुऋतु-पतझड़ कई।
मरकत-प्रवाल की छाया में होगी सब दिन गुंजार नयी॥

- नरेन्द्र शर्मा - Narendra Sharma
#www.poemgazalshayari.in

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