प्रिय पाठकों! हमारा उद्देश्य आपके लिए किसी भी पाठ्य को सरलतम रूप देकर प्रस्तुत करना है, हम इसको बेहतर बनाने पर कार्य कर रहे है, हम आपके धैर्य की प्रशंसा करते है| मुक्त ज्ञानकोष, वेब स्रोतों और उन सभी पाठ्य पुस्तकों का मैं धन्यवाद देना चाहता हूँ, जहाँ से जानकारी प्राप्त कर इस लेख को लिखने में सहायता हुई है | धन्यवाद!

Saturday, May 30, 2020

क्रमशः जमने लगती है विस्मृति - kramashah jamane lagatee hai vismrti - - अनुराधा महापात्र - Anuradha Mahapatra #www.poemgazalshayari.in

क्रमशः जमने लगती है विस्मृति
क्रमशः झर जाते हैं सारे पंख
क्रमशः हंस भी अकेला विसर्जन के लिए जाता है
क्रमशः भूखे की रिक्तता
एकमात्र सत्य मालूम होती है
क्रमशः मैं छिन्नमस्ता रूप को
ब्रह्माण्ड के अस्तित्व का पहला और अन्तिम
जीवन्त स्वरूप मानने लगती हूँ
क्रमशः यह घना अन्धकार
यह निष्ठुर शून्यता
मातृत्व बन जाते हैं।




 - अनुराधा महापात्र - Anuradha Mahapatra
#www.poemgazalshayari.in

No comments:

Post a Comment

How many Source for online earning : online Earning Money

How many Source for online earning : online Earning Money  Key Content: Freelancing Platforms Online Marketplaces Affiliate Marketing Conten...