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Sunday, April 5, 2020

उड़ती है धूल, कहती : "थे आए - udatee hai dhool, kahatee : "the aae -रवीन्द्रनाथ टैगोर - Rabindranath tagore, #poemgazalshayari.in




उड़ती है धूल, कहती : "थे आए,
चैतरात,लौट गए, बिना कुछ बताए ।"
आए फिर, लगा यही, बैठा एकाकी ।
वन-वन में तैर रही तेरी ही झाँकी ।।
नए-नए किसलय ये, लिए लय पुरानी,
इसमें तेरी सुगंध, पैठी, समानी ।।
उभरे तेरे आखर, पड़े तुम दिखाई ।
हाँ,हाँ, वह उभरी थी तेरी परछाईं ।।
डोला माधवी-कुंज,तड़पन के साथ ।
लगा यही छू लेगा, तुम्हें बढ़ा हाथ ।।


रवीन्द्रनाथ ठाकुर - Rabindranath Thakur,
रवीन्द्रनाथ टैगोर - Rabindranath tagore,

#poemgazalshayari.in

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