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Monday, March 2, 2020

तप रे, मधुर मन - tap re, madhur man -Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत #Poem Gazal Shayari

तप रे, मधुर मन!

विश्व-वेदना में तप प्रतिपल,
जग-जीवन की ज्वाला में गल,
बन अकलुष, उज्जवल औ\' कोमल
तप रे, विधुर-विधुर मन!

अपने सजल-स्वर्ण से पावन
रच जीवन की पूर्ति पूर्णतम
स्थापित कर जग अपनापन,
ढल रे, ढल आतुर मन!

तेरी मधुर मुक्ति ही बन्धन,
गंध-हीन तू गंध-युक्त बन,
निज अरूप में भर स्वरूप, मन
मूर्तिमान बन निर्धन!
गल रे, गल निष्ठुर मन!


Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत 

#Poem Gazal Shayari

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