पशुओं से मृदु चर्म, पक्षियों से ले प्रिय रोमिल पर - pashuon se mrdu charm, pakshiyon se le priy romil par -Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत #Poem Gazal Shayari
पशुओं से मृदु चर्म, पक्षियों से ले प्रिय रोमिल पर,
ऋतु कुसुमों से सुरँग सुरुचिमय चित्र वस्त्र ले सुंदर,
सुभग रूज़, लिप स्टिक, ब्रौ स्टिक, पौडर से कर मुख रंजित,
अंगराग, क्यूटेक्स अलक्तक से बन नख शिख शोभित;
’सागर तल से ले मुक्ताफल, खानों से मणि उज्वल’,
रजत स्वर्ण में अंकित तुम फिरती अप्सरि सी चंचल।
शिक्षित तुम संस्कृत, युग के सत्याभासों से पोषित,
समकक्षिणी नरों की तुम, निज द्वन्द्व मूल्य पर गर्वित।
नारी की सौन्दर्य मधुरिमा औ’ महिमा से मंडित,
तुम नारी उर की विभूति से, हृदय सत्य से वंचित!
प्रेम, दया, सहृदयता, शील, क्षमा, पर दुख कातरता,
तुममें तप, संयम, सहिष्णुता नहीं त्याग, तत्परता।
लहरी सी तुम चपल लालसा श्वास वायु से नर्तित,
तितली सी तुम फूल फूल पर मँडराती मधुक्षण हित!
मार्जारी तुम, नहीं प्रेम को करती आत्म समर्पण,
तुम्हें सुहाता रंग प्रणय, धन पद मद, आत्म प्रदर्शन!
तुम सब कुछ हो, फूल, लहर, तितली, विहगी, मार्जारी,
आधुनिके, तुम अगर नहीं कुछ, नहीं सिर्फ़ तुम नारी!
Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत
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