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Tuesday, March 10, 2020

नाता-रिश्ता -naata-rishta -sachchidanand hiranand vatsyayan "agay"- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय" #Poem Gazal Shayari #Poem_Gazal_Shayari

Part-1
तुम सतत
चिरन्तन छिने जाते हुए
क्षण का सुख हो--
(इसी में उस सुख की अलौकिकता है) :
भाषा की पकड़ में से फिसली जाती हुई
भावना का अर्थ--
(वही तो अर्थ सनातन है) :
वह सोने की कनी जो उस अंजलि भर रेत में थी जो
--धो कर अलग करने में--
मुट्ठियों में फिसल कर नदी में बह गई--
(उसी अकाल, अकूल नदी में जिस में से फिर
अंजलि भरेगी
और फिर सोने की कनी फिसल कर बह जाएगी।)

तुम सदा से
वह गान हो जिस की टेक-भर
गाने से रह गई।
मेरी वह फूस की मड़िया जिस का छप्पर तो
हवा के झोंकों के लिए रह गया
पर दीवारें सब बेमौसम की वर्षा में बह गईं...

यही सब हमारा नाता-रिश्ता है-- इसी में मैं हूँ
और तुम हो :
और इतनी ही बात है जो बार-बार कही गई
और हर बार कही जाने में ही कही जाने से रह गई।

Part-2
   तो यों, इस लिए
     यहीं अकेले में
     बिना शब्दों के
     मेरे इस हठी गीत को जागने दो, गूँजने दो
     मौन में लय हो जाने दो :
     यहीं जहाँ कोई देखता-सुनता नहीं
     केवल मरु का रेत-लदा झोंका
     डँसता है और फिर एक किरकिरी
     हँसी हँसता बढ़ जाता है-
     यहीं जहाँ रवि तपता है
     और अपनी ही तपन से जनी धूल-कनी की
     यवनिका में झपता है-
     यहाँ जहाँ सब कुछ दीखता है
     पर सब रंग सोख लिये गये हैं
     इस लिए हर कोई सीखता है कि
     सब कुछ अन्धा है।
     जहाँ सब कुछ साँय-साँय गूँजता है
     और निरे शोर में संयत स्वर धोखे से
     लड़खड़ा कर झड़ जाता है।

Part-3
यहीं, यहीं और अभी
इस सधे सन्धि-क्षण में
इस नए जन्मे, नए जागे,
अपूर्व, अद्वितीय...अभागे
मेरे पुण्यगीत को
अपने अन्त:शून्य में ही तन्मय हो जाने दो--
यों अपने को पाने दो !

Part-4

वही, वैसे ही अपने को पा ले, नहीं तो
और मैंने कब, कहाँ तुम्हें पाया है?
हाँ-- बातों के बीच की चुप्पियों में
हँसी में उलझ कर अनसुनी हो गई आहों में
तीर्थों की पगडंडियों में
बरसों पहले गुज़रे हुए यात्रियों की
दाल-बाटी की बची-बुझी राखों में !

Part-5
उस राख का पाथेय लेकर मैं चलता हूँ
उस मौन की भाषा में मैं गाता हूँ :
उस अलक्षित, अपरिमेय निमिष में
मैं तुम्हारे पास जाता हूँ, पर
मैं, जो होने में ही अपने को छलता हूँ--
यों अपने अनस्तित्व में तुम्हें पाता हूँ।


sachchidanand hiranand vatsyayan "agay"- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय"

#Poem Gazal Shayari

#Poem_Gazal_Shayari

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