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Wednesday, March 11, 2020

भोर बेला। सिंची छत से ओस की तिप्-तिप्! पहाड़ी काक - bhor bela. sinchee chhat se os kee tip-tip! pahaadee kaak -sachchidanand hiranand vatsyayan "agay"- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय" #Poem Gazal Shayari



भोर बेला। सिंची छत से ओस की तिप्-तिप्! पहाड़ी काक
की विजन को पकड़ती-सी क्लांत बेसुर डाक-
'हाक्! हाक्! हाक्!'

मत सँजो यह स्निग्ध सपनों का अलस सोना-
रहेगी बस एक मुठ्ठी खाक!
'थाक्! थाक्! थाक्!'



sachchidanand hiranand vatsyayan "agay"- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय"

#Poem Gazal Shayari

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