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Saturday, February 15, 2020

दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई - din kuchh aise guzaarata hai koee - गुलजार - Gulzar -Poem Gazal Shayari

दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई

आईना देख के तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई

पक गया है शज़र पे फल शायद
फिर से पत्थर उछालता है कोई

फिर नज़र में लहू के छींटे हैं
तुम को शायद मुग़ालता है कोई

देर से गूँजतें हैं सन्नाटे
जैसे हम को पुकारता है कोई

गुलजार - Gulzar

-Poem Gazal Shayari

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