अपने सीने से लगाये हुये उम्मीद की लाश - apane seene se lagaaye huye ummeed kee laash - -साहिर लुधियानवी - saahir ludhiyaanavee
अपने सीने से लगाये हुये उम्मीद की लाश
मुद्दतों ज़ीस्त1 को नाशाद2 किया है मैनें
तूने तो एक ही सदमे से किया था दो चार
दिल को हर तरह से बर्बाद किया है मैनें
जब भी राहों में नज़र आये हरीरी मलबूस3
सर्द आहों से तुझे याद किया है मैनें
और अब जब कि मेरी रूह की पहनाई में
एक सुनसान सी मग़्मूम घटा छाई है
तू दमकते हुए आरिज़4 की शुआयेँ5 लेकर
गुलशुदा6 शम्मएँ7 जलाने को चली आई है
मेरी महबूब ये हन्गामा-ए-तजदीद8-ए-वफ़ा
मेरी अफ़सुर्दा9 जवानी के लिये रास नहीं
मैं ने जो फूल चुने थे तेरे क़दमों के लिये
उन का धुंधला-सा तसव्वुर10 भी मेरे पास नहीं
एक यख़बस्ता11 उदासी है दिल-ओ-जाँ पे मुहीत12
अब मेरी रूह में बाक़ी है न उम्मीद न जोश
रह गया दब के गिराँबार13 सलासिल14 के तले
मेरी दरमान्दा15 जवानी की उमन्गों का ख़रोश
-साहिर लुधियानवी - saahir ludhiyaanavee
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