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Wednesday, September 4, 2019

तेरी सुधि बिन क्षण क्षण सूना - teree sudhi bin kshan kshan soona - - महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

तेरी सुधि बिन क्षण क्षण सूना। 

कम्पित कम्पित, 
पुलकित पुलकित, 
परछा‌ईं मेरी से चित्रित, 
रहने दो रज का मंजु मुकुर, 
इस बिन श्रृंगार-सदन सूना! 
तेरी सुधि बिन क्षण क्षण सूना। 

सपने औ' स्मित, 
जिसमें अंकित, 
सुख दुख के डोरों से निर्मित; 
अपनेपन की अवगुणठन बिन 
मेरा अपलक आनन सूना! 
तेरी सुधि बिन क्षण क्षण सूना। 

जिनका चुम्बन 
चौंकाता मन, 
बेसुधपन में भरता जीवन, 
भूलों के सूलों बिन नूतन, 
उर का कुसुमित उपवन सूना! 
तेरी सुधि बिन क्षण क्षण सूना। 

दृग-पुलिनों पर 
हिम से मृदुतर, 
करूणा की लहरों में बह कर, 
जो आ जाते मोती, उन बिन, 
नवनिधियोंमय जीवन सूना! 
तेरी सुधि बिन क्षण क्षण सूना। 

जिसका रोदन, 
जिसकी किलकन, 
मुखरित कर देते सूनापन, 
इन मिलन-विरह-शिशु‌ओं के बिन 
विस्तृत जग का आँगन सूना! 
तेरी सुधि बिन क्षण क्षण सूना।

- महादेवी वर्मा -mahadevi Verma

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