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Monday, September 2, 2019

होती है तेरे नाम से वहशत कभी-कभी - hotee hai tere naam se vahashat kabhee-kabhee - नासिर काज़मी- Nasir Kazmi

होती है तेरे नाम से वहशत कभी-कभी
बरहम हुई है यूँ भी तबीयत कभी-कभी

ऐ दिल किसे नसीब ये तौफ़ीक़-ए-इज़्तिराब 
मिलती है ज़िन्दगी में ये राहत कभी-कभी 

तेरे करम से ऐ अलम-ए-हुस्न-ए-आफ़रीन 
दिल बन गया है दोस्त की ख़िल्वत कभी-कभी 

दिल को कहाँ नसीब ये तौफ़ीक़-ए-इज़्तिराब 
मिलती है ज़िन्दगी में ये राहत कभी-कभी 

जोश-ए-जुनूँ में दर्द की तुग़यानियों के साथ 
अश्कों में ढल गई तेरी सूरत कभी-कभी

तेरे क़रीब रह के भी दिल मुतमईन न था 
गुज़री है मुझ पे भी ये क़यामत कभी-कभी 

कुछ अपना होश था न तुम्हारा ख़याल था 
यूँ भी गुज़र गई शब-ए-फ़ुर्क़त कभी-कभी 

ऐ दोस्त हम ने तर्क-ए-मुहब्बत के बावजूद
महसूस की है तेरी ज़रूरत कभी-कभी

- नासिर काज़मी- Nasir Kazmi


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