प्रिय दोस्तों! हमारा उद्देश्य आपके लिए किसी भी पाठ्य को सरलतम रूप देकर प्रस्तुत करना है, हम इसको बेहतर बनाने पर कार्य कर रहे है, हम आपके धैर्य की प्रशंसा करते है| मुक्त ज्ञानकोष, वेब स्रोतों और उन सभी पाठ्य पुस्तकों का मैं धन्यवाद देना चाहता हूँ, जहाँ से जानकारी प्राप्त कर इस लेख को लिखने में सहायता हुई है | धन्यवाद!

Monday, July 15, 2019

कारवां गुज़र गया गुबार देखते रहे- kaaravaan guzar gaya gubaar dekhate rahe- Gopaldas "Neeraj" - गोपालदास "नीरज"

स्वप्न झरे फूल से
मीत चुभे शूल से
लुट गए सिंगार सभी बाग़ के बबूल से
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे
कारवां गुज़र गया गुबार देखते रहे!

नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गयी
पाँव जब तलक उठें कि ज़िन्दगी फिसल गयी
पात-पात झर गए कि शाख-शाख जल गयी
चाह तो सकी निकल न पर उमर निकल गयी
गीत अश्क़ बन गए
छंद हो हवन गए
साथ के सभी दिए, धुआँ पहन-पहन चले
और हम झुके-झुके
मोड़ पर रुके-रुके
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे!

क्या शबाब था कि फूल-फूल प्यार कर उठा
क्या सरूप था कि देख आइना सिहर उठा
इस तरफ़ ज़मीन और आसमां उधर उठा
थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा
एक दिन मगर यहाँ
ऐसी कुछ हवा चली
लुट गयी कली-कली कि घुट गयी गली-गली
और हम दबी नज़र
देह की दुकान पर,
साँस की शराब का खुमार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे!

आँख थी मिली मुझे कि अश्रु-अश्रु बीन लूं
होंठ थे खुले कि चूम हर नज़र हसीन लूं
दर्द था दिया गया कि प्यार से यकीन लूँ
और गीत यूँ कि रात से चिराग छीन लूं
हो सका न कुछ मगर
शाम बन गई सहर,
वह उठी लहर कि ढह गए किले बिखर-बिखर
और हम लुटे-पिटे,
वक्त से पिटे-पिटे,
दाम गाँठ के गँवा, बाज़ार देखते रहे!
कारवां गुज़र गया गुबार देखते रहे

माँग भर चली कि एक जब नयी-नयी किरण
ढोलकें धुनुक उठीं ठुमुक उठे चरण-चरण
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन, चली दुल्हन
गाँव सब उमड़ पडा बहक उठे नयन-नयन
पर तभी ज़हर भारी
गाज एक वह गिरी
पुंछ गया सिन्दूर तार-तार हुई चूनरी
और हम अजान से
दूर के मकान से
पालकी लिए हुए कहार देखते रहे
कारवां गुज़र गया गुबार देखते रहे

एक रोज़ एक गेह चांद जब नया उगा
नौबतें बजीं, हुई छटी, डठौन, रतजगा
कुण्डली बनी कि जब मुहूर्त पुण्यमय लगा
इसलिए कि दे सके न मृत्यु जन्म को दग़ा
एक दिन न पर हुआ
उड़ गया पला सुआ
कुछ न कर सके शकुन, न काम आ सकी दुआ
और हम डरे-डरे
नीर नैन में भरे
ओढ़कर कफ़न पड़े मज़ार देखते रहे
चाह थी न किन्तु बार-बार देखते रहे
कारवां गुज़र गया गुबार देखते रहे

Gopaldas "Neeraj" - गोपालदास "नीरज"

No comments:

Post a Comment

Describe the difference between a public network and a private network @PoemGazalShayari.in

 Describe the difference between a public network and a private network Topic Coverd: Private Network: Access Restriction Security Scalabili...