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Monday, July 15, 2019

गगन बजाने लगा जल-तरंग फिर यारों - gagan bajaane laga jal-tarang phir yaaron - Gopaldas "Neeraj" - गोपालदास "नीरज"

गगन बजाने लगा जल-तरंग फिर यारों,
कि भीगें हम भी ज़रा संग-संग फिर यारों.

यह रिमझिमाती निशा और ये थिरकता सावन,
है याद आने लगा इक प्रसंग फिर यारों.

किसे पता है कि कबतक रहेगा ये मौसम,
रख है बाँध के क्यूँ मन-कुरंग फिर यारों.

घुमड़-घुमड़ के जो बादल घिरा अटारी पर,
विहंग बन के उडी इक उमंग फिर यारों.

कहीं पे कजली कहीं तान उठी बिरहा की,
ह्रदय में झांक गया इक अनंग फिर यारों.

पिया की बांह में सिमटी है इस तरह गोरी,
सभंग श्लेष हुआ है अभंग फिर यारों.

जो रंग गीत का बलबीर जी के साथ गया
न हमने देखा कहीं वैसा रंग फिर यारों.

Gopaldas "Neeraj" - गोपालदास "नीरज"

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