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Thursday, July 25, 2019

अब के तज्दीद-ए-वफ़ा का नहीं इम्काँ जानाँ - ab ke tajdeed-e-vafa ka nahin imkaan jaanaan - -Ahamad Faraz - अहमद फ़राज़

अब के तज्दीद-ए-वफ़ा का नहीं इम्काँ जानाँ 
याद क्या तुझ को दिलाएँ तेरा पैमाँ जानाँ 

यूँ ही मौसम की अदा देख के याद आया है 
किस क़दर जल्द बदल जाते हैं इन्साँ जानाँ 

ज़िन्दगी तेरी अता थी सो तेरे नाम की है 
हम ने जैसे भी बसर की तेरा एहसाँ जानाँ 

दिल ये कहता है कि शायद हो फ़सुर्दा तू भी 
दिल की क्या बात करें दिल तो है नादाँ जानाँ 

अव्वल-अव्वल की मुहब्बत के नशे याद तो कर
बे-पिये भी तेरा चेहरा था गुलिस्ताँ जानाँ 

आख़िर आख़िर तो ये आलम है कि अब होश नहीं 
रग-ए-मीना सुलग उठी कि रग-ए-जाँ जानाँ 

मुद्दतों से ये आलम न तवक़्क़ो न उम्मीद 
दिल पुकारे ही चला जाता है जानाँ जानाँ 

हम भी क्या सादा थे हम ने भी समझ रखा था 
ग़म-ए-दौराँ से जुदा है ग़म-ए-जानाँ जानाँ 

अब की कुछ ऐसी सजी महफ़िल-ए-याराँ जानाँ 
सर-ब-ज़ानू है कोई सर-ब-गिरेबाँ जानाँ 

हर कोई अपनी ही आवाज़ से काँप उठता है 
हर कोई अपने ही साये से हिरासाँ जानाँ 

जिस को देखो वही ज़न्जीर-ब-पा लगता है 
शहर का शहर हुआ दाख़िल-ए-ज़िन्दाँ जानाँ 

अब तेरा ज़िक्र भी शायद ही ग़ज़ल में आये 
और से और हुआ दर्द का उन्वाँ जानाँ 

हम कि रूठी हुई रुत को भी मना लेते थे 
हम ने देखा ही न था मौसम-ए-हिज्राँ जानाँ 

होश आया तो सभी ख़्वाब थे रेज़ा-रेज़ा 
जैसे उड़ते हुये औराक़-ए-परेशाँ जानाँ 

-Ahamad Faraz - अहमद फ़राज़ 

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