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Tuesday, October 6, 2020

दुनिया दूषती है - फणीश्वर नाथ रेणु - Phanishwar Nath Renu

 दुनिया दूषती है

हँसती है

उँगलियाँ उठा कहती है ...

कहकहे कसती है -

राम रे राम!

क्या पहरावा है

क्या चाल-ढाल

सबड़-झबड़

आल-जाल-बाल

हाल में लिया है भेख?

जटा या केश?

जनाना-ना-मर्दाना

या जन .......

अ... खा... हा... हा.. ही.. ही...

मर्द रे मर्द

दूषती है दुनिया

मानो दुनिया मेरी बीवी

हो-पहरावे-ओढ़ावे

चाल-ढाल

उसकी रुचि, पसंद के अनुसार

या रुचि का

सजाया-सँवारा पुतुल मात्र,

मैं

मेरा पुरुष

बहुरूपिया।


फणीश्वर नाथ रेणु - Phanishwar Nath Renu

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