पन्द्रह बोरी गाजर आए,
ग्यारह बोरी शक्कर।
पाँच कनस्तर घी आ जाए,
काजू बोरी भरकर।
और दूध?
माँ, आ सकता क्या,
पूरा एक टैकर?
ढेर-ढेर गाजर का हलवा,
बने हमारे घर पर।
कई दिनों तक
तुमको भी फिर
हो रसोई से फुर्सत।
बैठे धूप में स्वेटर बुनना
फिक्र कोई रखना मत।
हलवा खूब,
उड़ाएंगे हम,
सुबह-शाम या दुपहर।
देखा, जाड़े के मौसम में,
खूब बिक रही गाजर।
- उषा यादव- Usha Yadav
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